सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 अगस्त 2024 |  जयपुरमाननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए इस निर्णय से संविधान में SC/ST को दिए आरक्षण की मूल भावना का ही खात्मा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में दिए निर्णय को ही उच्च बेंच के माध्यम से बदल दिया। आखिरी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे कौन हैं?

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को एक संविधान विरोधी दुर्भाग्यपूर्ण फैसला दिया। इसमें कहा गया कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

जब आरएसएस-बीजेपी और तमाम मनुवादी ताकतें उनकी मंशा ठीक नहीं है, एससी और एसटी को दिए गए आरक्षण को खुद खत्म करने के बजाय, वे इसे कोर्ट के जरिए से खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं और अब वे इसमें अधिकांशत: सफल भी हो गये हैं। 

सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदम

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अमानवीय निर्णय से पेशवा राज की ओर पहला कदम बाधा दिया है। इसी तरह का एक क्रूर नियम पेशवाई और त्रावणकोर के ब्राह्मण शासकों द्वारा दलितों और आदिवासियों पर थोपा गया था। दलितों को सड़क पर चलते वक्त अपने पीछे एक झाडू बांध कर चलना होता था ताकि वे जिस रास्ते से गुजर रहे हों उसे साफ करते चलें। इन सभी बातों को आप बी आर अंबेडकर की किताब “एनहिलेशन ऑफ कास्ट” में पढ़ सकते हैं।

बता दें कि पेशवा के शासन में दलितों पर कई अमानवीय नियम थोपे गए थे। इस दौर में सार्वजनिक जगहों पर चलते समय दलितों को गले में हांडी लटकाकर चलना पड़ता था। उनके लिए ये नियम बनाए गए थे कि वे कहीं खुले में थूक नहीं सकते हैं और अगर उन्हे थूकना है तो वे अपने गले में लटकती हांडी में थूकें।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से भी कमोवेश वैसी ही हालात बनेंगे क्योंकि एससी-एसटी में जो लोग थोड़े सक्षम हैं। वे कमजोर लोगों के साथ खड़े नहीं हो सकेंगे और मनुवादी ताकतें कमजोर लोगों पर पेशवाई राज चलायेंगे। साथ ही सरकारी नौकरियों में न्यूनतम अर्हताएँ लागू कर कमजोर वर्गों से उनके अवसर छीन लेंगे।

आज भी अधिकांश नौकरियों में एनएफएस (NFS) किया जा रहा है। क्या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कभी कोई संज्ञान लिया ? जैसे कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर लिया था जिसमें बिना किसी डेटा के आरक्षण को वैध ठहरा दिया गया है। 

अब सुप्रीम कोर्ट के दिए इस निर्णय के बाद राज्य सरकारें SC/ST/OBC के आरक्षण की राजनीतिक लाभ के लिए धज्जियाँ उड़ायेंगे। मतलब साफ है सुप्रीम कोर्ट के संविधान की मूल भावना के खिलाफ दिए इस निर्णय से आरक्षण के खात्मे की शुरुआत है।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद राज्य सरकारें अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस निर्णय का पूरी तरह दुरुपयोग करेंगी। मुझे लगता है इसकी शुरुआत आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश से होने वाली है। जहां OBC के आरक्षण में categorisation होना तय है। यहां से शुरुआत होगी फिर देश भर मे कई राज्य सरकारों के द्वार खुल जायेंगे।

उसके बाद एक एक करके राज्य सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए SC/ST/OBC के आरक्षण में Categorisation करने लगेंगे। तब सुप्रीम कोर्ट को भी समझ आयेगा कि बहुत गलत निर्णय हो गया है। वंचितों का आरक्षण तो संविधान में सामाजिक भेदभाव के कारण दिया गया था..ना कि शैक्षिक और गरीबी से पिछड़ेपन के कारण…फिर ये कैसा निर्णय दिया है, समझ से बिल्कुल परे हैं।

इस निर्णय के लिए कई ताकतें कई वर्षों से प्रयास कर रही थी लेकिन सफल अब हुए हैं। सबको पता है कि वो कौनसी ताकतें हैं जो यह निर्णय पूरी शिद्दत से चाहती थी। सच कहूँ तो इस निर्णय के बाद संविधान में वंचितों के लिए कुछ नहीं बचा है।

जब संविधान में आरक्षण की मूल भावना ही खत्म हो जाए तो वंचितों के लिए आरक्षण खत्म ही मानिये। वंचितों को तो हर कोई अपने मौकों के हिसाब से मारना ही चाहता है आज तो वंचितों का संविधानिक खात्मा ही कर डाला है।

यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया है। इसके जरिए 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया। बता दें कि 2004 के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।

2004 में ईवी चिन्नैया मामले के प्रमुख बिंदु:

पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति वर्ग में सभी अनुसूचित जातियों का समान प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने के लिये कुछ को अधिमान्य उपचार देने के पक्ष का समर्थन किया है।
वर्ष 2005 ‘ई. वी. चिनैय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (E V Chinnaiah v State of Andhra Pradesh and Others) मामले में पाँच न्यायाधीशों की एक पीठ ने निर्णय दिया था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने की कोई शक्ति नहीं है।

कोर्ट ने उप-वर्गीकरण को समानता के अधिकार का उल्लंघन माना। तर्क दिया कि संविधान कुछ जातियों को एक अनुसूची में वर्गीकृत करता है जिनसे अतीत में छूआ-छूत के कारण भेदभाव हुआ। इसलिए इस समूह में एक-दूसरे से अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 341 का भी हवाला दिया…जो आरक्षण के उद्देश्य से एससी समुदायों को सूचीबद्ध करने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को देता है। पीठ ने इसी आधार पर व्यवस्था दी थी कि इस सूची में किसी तरह के हस्तक्षेप या बदलाव करने का राज्यों को कोई अधिकार नहीं है।

यह भी पढ़ें : कोटे में कोटा के वोट हासिल करने के लिए, राजनीतिक पार्टियाँ एससी एसटी में वैमनस्यता बढ़ायेंगी

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के फैसले के जरिये ‘‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’’ मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया। फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं।

वस्तुत: इस सारे षड्यंत्र की शुरुआत 2020 से हुई जब जस्टिस अरुण मिश्रा बैंच ने कहा कि चूंकि समान शक्ति (इस मामले में पाँच न्यायाधीश) की एक पीठ पिछले निर्णय को रद्द नहीं कर सकती, अत: मामले में निर्णय लेने के लिये इसे एक बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा गया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्थापित की गई बड़ी खंडपीठ दोनों निर्णयों (अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने तथा इस संबंध में राज्यों को अधिकार) पर पुनर्विचार करेगी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ से एससी एसटी उप वर्गीकरण पर कुछ सवाल:-

1. सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में उप-वर्गीकरण के लिए याचिका डाली गई थी, तो फिर अनुसूचित जनजाति (ST) में उप-वर्गीकरण का फैसला किस आधार पर दिया गया है?

2. अनुसूचित जनजाति (ST) में आर्थिक और सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ी जनजातियों के लिए उप-वर्गीकरण, जैसा कि अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह (PVGT) विकास और कल्याण के लिए पहले से लागू है, जिसमें 750 में से लगभग 75 जनजातियां शामिल हैं। फिर नए उप-वर्गीकरण का क्या औचित्य है?

3. उप-वर्गीकरण के माध्यम से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के भीतर विभाजन पैदा करना इस उद्देश्य के विपरीत है। यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी कमजोर करता है। क्या आप संविधान पर हमला नहीं कर रहे हैं?

4. संविधान का अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियों (SC) की सूचियों और अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूचियों से संबंधित है। इन सूचियों को केवल राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है और इसमें राज्यों को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है। आप राष्ट्रपति की शक्तियों का अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?

5. एससी एसटी के लोगों के आर्थिक रूप से संपन्न हो जाने के बावजूद उनके जातीय उत्पीड़न को नहीं रोका जा सका है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स की महत्ती भूमिकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। एपेक्स कोर्ट इन वर्गों के लोगों को न्याय मुहैया करवाने में आज भी कन्नी काट रहे हैं।

6. आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। फिर आपके द्वारा उप-वर्गीकरण आर्थिक स्थिति को आधार बनाकर किया जाना गलत नहीं है?

क्रीमी लेयर की अवधारणा:

  • सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि आरक्षण का लाभ ‘सबसे कमज़ोर लोगों को’ (Weakest of the Weak) प्रदान किया जाना चाहिये। 
  • वर्ष 2018 में ‘जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले‘ में अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा के निर्णय को कायम रखा गया।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने ही 12 वर्ष पुराने ‘एम. नागराज बनाम भारत’ सरकार मामले में दिये गए पूर्ववर्ती निर्णय पर सहमति व्यक्त की गई थी।
    • एम. नागराज मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) को मिलने वाला लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल सके इसके लिये आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा का प्रयोग करना आवश्यक है।
  • वर्ष 2018 में पहली बार अनुसूचित जातियों की पदोन्नति में क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू किया गया था।
  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 के जरनैल सिंह मामले में निर्णय की समीक्षा की मांग की है और मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क: अनुसूचित जातियाँ  एक वर्ग

  • 1976 के ‘केरल राज्य बनाम एन. एम. थॉमस मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि ‘अनुसूचित जातियाँ (SC) कोई जाति नहीं हैं, अपितु वे वर्ग हैं।
  • इस मामले में यह तर्क दिया गया कि ‘सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन’ की शर्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • अस्पृश्यता के कारण सभी अनुसूचित जातियों को विशेष उपचार दिया जाना चाहिये। 

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क: वोट बैंक की राजनीति संभव

  • आरक्षण के उप-वर्गीकरण में सरकार द्वारा लिये जाने वाले निर्णय वोट बैंक की राजनीति के आधार पर हो सकते हैं।
  • इस तरह के संभावित मनमाने बदलाव से बचने के लिये अनुच्छेद- 341 में राष्ट्रपति की सूची की परिकल्पना की गई थी। 

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जयपुर में MNIT और महारानी कॉलेज की दो दलित छात्राओं ने की आत्महत्या

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 फरबरी 2025 | जयपुर : जयपुर में एक और कॉलेज गर्ल ने सुसाइड किया है। करीब दस दिन पहले मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमएनआईटी) कैंपस में एक छात्रा ने हॉस्टल की छत से कूद कर जान दे दी थी। अब राजस्थान विश्वविद्यालय के कैंपस में बने माही छात्रावास में रहने वाली एक छात्रा ने सुसाइड कर लिया।

जयपुर में MNIT और महारानी कॉलेज की दो दलित छात्राओं ने की आत्महत्या

गांधी नगर पुलिस को शनिवार शाम को घटना की जानकारी मिली। पुलिस मौके पर पहुंची तो देखा कि हॉस्टल के पहली मंजिल पर बने कमरे में छात्रा फंदे से लटक रही थी। छात्रा को उतार कर अस्पताल पहुंचाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

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जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने शनिवार को हॉस्टल में सुसाइड कर लिया। छात्रा का शव हॉस्टल के कमरे में फंदे से लटका मिला। छात्रा फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी। छात्रा के आत्महत्या की खबर सामने आते ही पूरे कैंपस में सनसनी फैल गई। तुरंत स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची और छानबीन शुरू की। मिली जानकारी के अनुसार सुसाइड की यह घटना राजस्थान यूनिवर्सिटी के माही हॉस्टल में हुई।

माही हॉस्टल में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट ने की सुसाइड

माही छात्रावास राजस्थान यूनिवर्सिटी की छात्राओं के लिए आवंटित है। यहां शनिवार को दोपहर बाद एक छात्रा के आत्महत्या की जानकारी सामने आई। सुसाइड करने वाली छात्रा की पहचान महारानी कॉलेज के फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट के रूप में हुई है। छात्रा ने अपने कमरे में पंखे से कपड़े का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।

सुसाइड के कारणों की नहीं मिली जानकारी

पुलिस मामले की छानबीन में जुटी है। इधर छात्रा की खुदकुशी पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। छात्रा ने सुसाइड क्यों किया, इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है। मालूम हो कि बीते दिनों माही हॉस्टल में वॉर्डन के व्यवहार सहित अन्य मुद्दों पर छात्राओं ने प्रदर्शन भी किया था।

महारानी कॉलेज में पढ़ाई करती थी छात्रा

माही हॉस्टल में सुसाइड करने वाली छात्रा की पहचान सारिका बुनकर के रूप में हुई है। सारिका महारानी कॉलेज में बीएससी फर्स्ट ईयर की छात्रा थी। सारिका मूल रूप से दिल्ली रोड स्थित मनोहरपुर की रहने वाली थी। बताया जाता है कि छात्रा ने सुसाइड से पहले परिवार को फोन भी किया था।

युवती का मोबाइल लॉक, परिजनों की दी गई सूचना

घटना के बारे में गांधी नगर थानाधिकारी आशुतोष ने बताया- सुसाइड की घटना की जानकारी मिलने पर मौके पर पहुंचे। परिवार को घटना की जानकारी दी है. युवती का मोबाइल लॉक है। परिवार के आने के बाद अन्य चीजों पर काम किया जायेगा। हॉस्टल में सारिका के साथ रहने और पढ़ने वाली छात्राओं से भी पूछताछ की जा रही है।

कमरे से नहीं मिला कोई सुसाइड नोट

बताया गया कि शाम करीब 4 बजे सारिका के कमरे का गेट नहीं खोलने पर दूसरी छात्राओं ने वॉर्डन को जानकारी दी। इस पर वॉर्डन ममता जैन गार्ड को लेकर कमरे में पहुंची और गेट तोड़कर अंदर गए तो सारिका फंदे से लटकी मिली। कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. मामले की जांच जारी है।

राजस्थान विश्वविद्यालय की छात्राओं का धरना-प्रदर्शन जारी है. गुरुवार रात भी छात्राएं कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे प्रदर्शन करती नजर आई। अब छात्राओं का यह प्रदर्शन और तेज हो सकता है, क्योंकि गुरुवार रात NSUI के प्रदेशाध्यक्ष विनोद जाखड़ ने आंदोलनरत छात्राओं से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद विनोद जाखड़ ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगाये। साथ ही कहा कि विवि प्रशासन का रवैया तानाशाही है।

दरअसल राजस्थान विश्वविद्यालय के माही गर्ल्स हॉस्टल में नई वार्डन की नियुक्ति के मुद्दे पर छात्राएं कड़ाके की सर्दी में कुलपति सचिवालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। छात्राओं का कहना है कि यह नियुक्ति उनके हितों और भावनाओं के खिलाफ है।

पाली की लड़की ने किया था सुसाइड

दस दिन पहले जवाहर लाल नेहरू मार्ग स्थित एमएनआईटी में पढ़ने वाली छात्रा ने हॉस्टल की छत से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट भी मिला। उसमें लिखा था कि ‘गलती मेरी ही है। मैं ही इस दुनिया में नहीं जी सकती। सबसे ज्यादा खुश मैं या तो बचपन में या नींद में थी।’ मृतक छात्रा 21 वर्षीय दिव्या राज मेघवाल थी जो कि पाली जिले की रहने वाली थी। वह एमएनआईटी में बीआर्क (आर्किटेक्चर) फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी।

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संविधान बदलने की माँग करने वाले बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण, क्रिकेटर आर अश्विन को पद्मश्री

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 जनवरी 2025 | जयपुर : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को पद्म पुरस्कारों का एलान कर दिया गया है। इसके तहत पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित किए जाने वाली हस्तियों के नामों का एलान किया गया। इस बार राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति ने 139 पद्म पुरस्कारों को मंजूरी दी है।

संविधान बदलने की माँग करने वाले बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण, क्रिकेटर आर अश्विन को पद्मश्री

देर रात जारी सूची में सात पद्म विभूषण, 19 पद्म भूषण शामिल हैं। इसके अलावा 113 पद्म श्री पुरस्कारों का भी एलान किया गया है। पुरस्कार पाने वालों में 23 महिलाएं हैं। सूची में 10  विदेशी,  एनआरआई, पीआईओ, ओसीआई श्रेणी के व्यक्ति शामिल हैं।

संविधान बदलने की माँग करने वाले बिबेक देबरॉय को मरणोपरांत पद्म भूषण, क्रिकेटर आर अश्विन को पद्मश्री

वहीं, 13 मरणोपरांत पुरस्कार भी दिए जाने का एलान किया गया है। इसमें भोजपुरी गायिका शारदा सिन्हा (मरणोपरांत), जस्टिस (सेवानिवृत्त) जगदीश सिंह खेहर और सुजुकी कंपनी के ओसामु सुजुकी (मरणोपरांत)  बिबेक देबरॉय, सुशील मोदी और मनोहर जोशी (मरणोपरांत) के नाम शामिल हैं।

नए संविधान की मांग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएएसी-पीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में नए संविधान की मांग करते हुए लेख लिखा था। इसे लेकर पर विवाद बढ़ा तो प्रधानमंत्री पैनल से सफ़ाई पेश करते हुए ख़ुद को और केंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया था। देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज़ 17 साल होता है। भारत के वर्तमान संविधान को उन्होंने “औपनिवेशिक विरासत” बताया था।

विवादित लेख में दूसरी बार कहा था कि “ये पूछना चाहिए कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हमें ख़ुद को एक नया संविधान देना होगा। देबरॉय इससे पहले यह कहा था कि “मैंने पहले भी ऐसे मुद्दे पर इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए लिखा है। मामला बहुत आसान है। मुझे लगता है कि हमें संविधान पर दोबारा विचार करना चाहिए।”

केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को 2025 के लिए 139 पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया। शारदा सिन्हा, ओसामु सुजुकी समेत 7 हस्तियों को पद्म विभूषण सम्मान दिया गया है।

वहीं पूर्व हॉकी गोलकीपर पीआर श्रीजेश, पंकज उधास और सुशील मोदी समेत 19 हस्तियों को पद्म भूषण के लिए चुना गया। इनके अलावा, राजस्थान की लोक गायिका बतूल बेगम, दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीरजा भटला समेत 113 हस्तियों को इस बार पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा।

पद्म पुरस्कार विजेताओं में से 23 महिलाएं हैं। इनमें 10 विदेशी/NRI/PIO/OCI कैटेगरी के लोग भी हैं। 13 हस्तियां ऐसी हैं, जिन्हें मरणोपरांत पुरस्कार दिए जा रहे हैं।

पद्म पुरस्कारों की पूरी लिस्ट 

4 हस्तियों को मरणोपरांत पद्म भूषण

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, मनोहर जोशी, संविधान बदलने की माँग करने वाले विवादित अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय, गजल गायक पंकज उधास को मरणोपरांत पद्म भूषण दिया गया है।

पद्मश्री पुरस्कार में कई गुमनाम हस्तियां, क्रिकेटर आर अश्विन का नाम भी

पद्मश्री पुरस्कार ऐसे 113 लोगों को दिया जा रहा है, जिनमें कई गुमनाम हैं। कुवैत की योगा ट्रेनर और ब्राजील के मैकेनिकल इंजीनियर से हिंदू आध्यात्मिक और वेदांत गुरु बने जोनास मासेटी का नाम भी है। 100 साल की लीबिया लोबो सरदेसाई को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

पश्चिम बंगाल के 57 साल के गोकुल चंद्र दास को यह अवॉर्ड मिला है। इन्होंने 150 महिलाओं को ढाक बजाने की ट्रेनिंग दी। राजस्थान की लोक गायिका बतूल बेगम, दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीरजा भटला, सामाजिक कार्यकर्ता भीम सिंह भावेश, दक्षिण भारतीय संगीतकार पी. दत्चनमूर्ति, नगालैंड के फल किसान एल. हैंगथिंग का भी पद्मश्री की लिस्ट में नाम है।

SBI की पूर्व अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य और हाल ही में रिटायर हुए क्रिकेटर आर अश्विन को पद्म श्री दिया गया है।

अल सबाह ने गल्फ में योग को तो मैसेट ने ब्राजील में भारतीय दर्शन को फैलाया

  • शेख एजे अल सबा: कुवैत की योग प्रैक्टिशनर अल सबाह को योग मेडिसिन में पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया। इन्होंने अपने देश में पहला लाइसेंस प्राप्त योग स्टूडियो की स्थापना की। इसके जरिए अल सबा ने गल्फ देशों में आधुनिक विधियों से योग को बढ़ावा दिया। साथ ही शेम्स यूथ योगा डेवलप किया।
  • जोनास मैसेट: ब्राजील के मैकेनिकल इंजीनियर से हिंदू आध्यात्मिक गुरु बने जोनास ने भारतीय अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति को बढ़ावा दिया। साथ ही उन्होंने वेदांत ज्ञान पर वैश्विक स्तर पर शिक्षा आसान बनाई। मैसेट ‘विश्वनाथ’ के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने 2014 में विश्व विद्या की स्थापना की। इसका कार्यालय रियो डी जनेरियो में है।

3 श्रेणियों में दिया जाता है पद्म पुरस्कार

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल पद्म पुरस्कार तीन श्रेणियों- पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण में प्रदान किए जाते हैं। ये पुरस्कार कला, समाज सेवा, साइंस, इंजीनियरिंग, बिजनेस, इंडस्ट्री, चिकित्सा, साहित्य, शिक्षा, खेल और सिविल सेवा जैसे विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए दिए जाते हैं।

पहले जानें पद्म पुरस्कारों के बारे में

  • भारत सरकार ने देश के दो सर्वोच्च नागरिक सम्मान – भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1954 में की थी। 
  • इन पुरस्कारों से देश-विदेश के उन लोगों को सम्मानित किया जाता है, जिन्होंने किसी क्षेत्र में कोई प्रतिष्ठित व असाधारण कार्य किया हो, जिसमें लोक सेवा का तत्व जुड़ा हो।
  • हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर इन पुरस्कारों की घोषणा की जाती है। फिर मार्च या अप्रैल में होने वाले समारोह में राष्ट्रपति द्वारा विजेताओं को सम्मानित किया जाता है।
  • सामान्यत: मरणोपरांत ये पुरस्कार दिए जाने का प्रावधान नहीं है। लेकिन कुछ विशिष्ट मामलों में सरकार के पास ये निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।
  • नियम के अनुसार, किसी को अगर वर्तमान में पद्मश्री दिया गया है, तो फिर उसे पद्म भूषण या पद्म विभूषण अब से पांच साल बाद ही दिया जा सकता है। लेकिन यहां भी कुछ विशिष्ट मामलों में पुरस्कार समिति छूट दे सकती है।
  • जिस दिन समारोह में राष्ट्रपति द्वारा सम्मान दिया जाता है, उसके बाद सभी विजेताओं के नाम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किए जाते हैं।

पिछले साल चिरंजीवी, वैजयंती माला को मिला था सम्मान

पिछले साल पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, साउथ फिल्म एक्टर चिरंजीवी, एक्ट्रेस वैजयंतीमाला, भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम पद्म विभूषण प्राप्त करने वाली कुछ प्रमुख हस्तियां थीं। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला जज एम फातिमा बीबी को मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

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