Trending News:Decoding Aryan’s Claim ‘The Story Of Our Ancestors And Where We Came From’न्यूजीलैंड ने दक्षिण अफ्रीका को हराकर आईसीसी T20 महिला विश्व कप का खिताब जीतासाक्षी मलिक ने आत्मकथा ‘विटनेस’ में किये कई खुलासे, बचपन में ट्यूशन देने वाले शिक्षक द्वारा यौन शोषणSOG की नाकामी छिपाने के लिए एसआई भर्ती परीक्षा 2021 रद्द करने की कवायद तेजभरतपुर रेंज आईजी राहुल प्रकाश ने सायबर ठगी की कमर थोड़ीकलेक्टर टीना डाबी ने स्पा-सेंटर का गेट तुड़वाया, संदिग्धावस्था में 5 लड़कियां मिलींभारत के सबसे बड़े दानवीर, नेक दिल कारोबारी रतन टाटा को अंतिम जोहारतस्कर गैंग ने 25 से ज्यादा परिजन-रिश्तेदार बेटा-बेटी के लिए 20 लाख रुपए में खरीदा एसआई पेपरलैंड फॉर जॉब केस में लालू परिवार समेत सभी 9 आरोपियों को जमानतसुखद संयोग : आईएएस बेटे कनिष्क कटारिया ने संभागीय आयुक्त पिता के रिटायरमेंट से जुड़े आदेश किये साइनACB की छापेमारी के बाद कोटा संभागीय आयुक्त आईएएस राजेंद्र विजय APOनग्नता का नंगा नाच करते सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्सराजस्थान चतुर्थ श्रेणी और वाहन चालक पदों की भर्ती, संभावित सिलेबस और एग्जाम पैटर्नगोविंदा को 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के बाद अब सोलर सिस्टम में धमाकेREET पेपरलीक के आरोपी शेर सिंह की गर्लफ्रेंड अनीता की संपत्ति कुर्क‘अडाणी ग्रुप से जुड़े 6 स्विस बैंक अकाउंट से 2602 करोड़ फ्रीज’ हिंडनबर्ग रिसर्चसंविधान के घर को आग लगी घर के चिराग से, जज लोया को नमनसुप्रीमकोर्ट से केजरीवाल को शराब नीति से जुड़े CBI केस में जमानत‘बुलडोजर एक्शन देश के संविधान और कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा’ सुप्रीम कोर्टराजस्थान में दो लाख स्कूल शिक्षकों के पद खाली भर्ती का इंतजारनगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद पहुंचे ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना‘भारत में हर दिन लाखों-करोड़ों एकलव्य की कहानियां सामने आती हैं’ राहुल गाँधीShahu Maharaj’s 1902 historic reservation order had protested by Tilak‘डरी हुई माँ’ कहानी संग्रह जातिवादी दुनिया में जी रही बेटी की चिंता में एक दलित माँअमृतलाल मीणा बिहार की ब्यूरोक्रेसी के बॉस, उनका बेटा सफल उद्यमीप्रशासकों के तबादले क्या सुशासन की गारंटी हैसुंदरता से ज्यादा महत्व अच्छे विचारों और सकारात्मक व्यक्तित्व का होता हैयुवराज सिंह बन सकते हैं दिल्ली कैपिटल्स के कोचआदिवासी इलाकों में फैली सिकल सेल एनीमिया खतरनाक बीमारीरूस पर यूक्रेन का अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 जैसा हमलायूनिफाइड पेंशन स्कीम को केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सिरे से नकारागलत UPI ID पर पैसे ट्रांसफर हो जायें तो वापसी के लिए क्या करेंइंसानों के लिए सांप से ज्यादा खतरनाक हैं मच्छरकोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्टRAS का एग्जाम छोड़ पहुंची KBC की हॉट सीट पर नरेशी मीणासुप्रीम कोर्ट की एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिशACB कार्रवाई में JDA तहसीलदार जेईएन सहित 7 लोग रिश्वत लेते गिरफ्तारअनिल अंबानी शेयर बाजार से 5 साल के लिए बैन, 25 करोड़ रुपए का जुर्मानामनुवादी अफसरों से परेशान होकर, हेड कॉन्स्टेबल बाबूलाल बैरवा ने की आत्महत्याराजस्थान में हुआ भारत बंद का व्यापक असर, बीकानेर-जोधपुर में हिंसक घटनाएँभारत बंद का राजस्थान सहित देशभर में व्यापक असरकोलकाता रेप मर्डर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारीलेटरल एंट्री के बहाने RSS के लोग सीधा IAS बनाये जा रहे हैंविनेश फोगाट का सारे रास्ते जगह-जगह ग्रैंड वेलकमविनेश फोगाट की वतन वापसी भव्य स्वागत और रोड शोगर्ल्स स्टूडेंट को हर साल 30 हजार की स्कॉलरशिप देगा अजीज प्रेमजी फाउंडेशन‘आजादी की लड़ाई में वकालत छोड़ने वालों को सलाम’ सीज़ेआईWHO की चेतावनी इयरबड्स से हो सकता है बहरापनट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर केस की जांच कलकत्ता हाईकोर्ट ने CBI को सौंपीखेलों के रोल मॉडल हरियाणा से सबक लें केंद्र सरकार, अकेला हरियाणा 134 देशों से आगेREET2021 पेपर लीक पूरी कहानी : प्रदीप पाराशर को रामकृपाल ने 3 लाख बैंक खाते में और एक लाख दिया कैशअथ अडाणी कथा ‘सेबी प्रमुख के साथ मिलकर लूटा देश’ हिंडनबर्ग की नई रिपोर्टहिंडनबर्ग न्यू रिपोर्ट में सेबी अध्यक्ष और उनके पति पर गंभीर आरोप‘होली-दीवाली से भी बड़ा त्योहार है आदिवासी दिवस’ सांसद राजकुमार रोतअमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बनें‘आदिवसियों के अधिकारों का समर्थन और संरक्षण’, 2024 विश्व आदिवासी दिवस की विषयवस्तुमनीष सिसोदिया को जमानत, 17 महीने बाद तिहाड़ जेल से बाहरइंडियन टीम ने पेरिस ओलिंपिक में लगातार ब्रॉन्ज मेडल जीताउत्कृष्ट खेल भावना, नीरज की मां बोलीं स्वर्ण विजेता पाकिस्तानी अरशद भी मेरा लड़कानीरज चोपड़ा ने पेरिस ओलिंपिक जेवलिन थ्रो में भारत को पहला सिल्वर मेडल दिलायासुप्रीम कोर्ट का आरक्षण में वर्गीकरण, पेशवाई राज की ओर पहला कदमइंडियन हॉकी के अभेद किले में सेंध नहीं लगा पाया इंग्लैंडओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम सेमीफाइनल में पहुंचीSSC CHSL की परीक्षा GK Questions in Hindiप्रतियोगी परीक्षा | जनरल साइंस क्वेश्चन आंसर | Science Gk Questionsप्रसिद्ध पुस्तकें और उनके लेखक | Famous Books And Authors ऋषिकेश भागवत कथा सुन लौट रहे 4 की मौत, राजस्थान में एक्सप्रेस-वे पर ट्रक से टकराई कारपेरिस ओलिंपिक भारत बनाम ब्रिटेन मेंस हॉकी पहला क्वार्टर फाइनलराजस्थान में 24797 पदों पर सफाई कर्मचारियों की भर्ती होगी रद्दलक्ष्य सेन पेरिस ओलिंपिक के बैडमिंटन, भारत को मेडल दिलाने की इकलौती उम्मीदकोटे में कोटा के वोट हासिल करने के लिए, राजनीतिक पार्टियाँ एससी एसटी में वैमनस्यता बढ़ायेंगीजयपुर में भारी बारिस से हाहाकार, अंडरपास में पिकअप डूबीकमला हैरिस होंगी डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति उम्मीदवारवायनाड में 4 घंटे में 3 लैंडस्लाइड125 मौतें, केरल में भारी बारिश का अलर्टइंडियन ऑयल को पहली तिमाही में ₹2643 करोड़ का मुनाफाछात्र संघ चुनाव के लिए अनशन पर बैठे शुभम रेवड़ की तबीयत 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मूकनायक मीडिया : डॉ अंबेडकर-मिशन की बुलंद आवाज का दस्तावेज
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1920 में दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों की पैरवी के लिए 'मूकनायक' नामक समाचार पत्र शुरू किया। यह समाचार पत्र सामाजिक अन्याय के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दलित सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
'मूकनायक' के शताब्दी (स्थापना वर्ष1920) वर्ष में सामाजिक समानता की लड़ाई हेतु अंबेडकर की विरासत को जारी रखने के लिए इसके डिजिटल संस्करण को 2020 में लॉन्च किया गया है।
‘मूकनायक-मीडिया’ विश्वविद्यालयों के पूर्व प्रोफेसरों, वरिष्ठ पत्रकारों की बाबासाहब के मिशन; दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिश है क्योंकि जब मुख्यधारा का मीडिया देख-सुन ना सके, गोद में खेल रहा हो, लोभ-लालच में हो या भयातुर हो, तब संपूर्ण सत्यता के लिए ‘मूकनायक’ आपका नायक बनेगा, आपकी आवाज बनेगा, और बहुजन-न्याय का टूटा-भटका सिलसिला फिर से शुरू होगा। ताकि, आप लें सकें सही फ़ैसला क्योंकि महात्मा बुद्ध ने कहा है "सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में जानो !
बिरसा अंबेडकर फुले फ़ातिमा मिशन से जुड़े सिपाहियों और भीम-सैनिकों एवं पाठकों से हमारी बस इतनी-ही गुजारिश है कि हमें पढ़ें, सोशल-मीडिया प्लेटफार्मों पर शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें, हो सके तो अपने जज्बातों को लिखकर हम तक पहुँचावे, हम उसे भी छापेंगे।
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मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 25 जुलाई 2024 | जयपुर : प्रदेशभर के वाल्मीकि सफाई कर्मचारी सफाई कर्मचारी भर्ती मस्टररोल के आधार पर ही करने सहित पांच मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। पहले दिन करीब 5800 सफाईकर्मियों ने काम नहीं कियाद्ध। संयुक्त वाल्मीकि एवं सफाई श्रमिक संघ के बैनर तले कर्मचारियों ने जयपुर सहित प्रदेशभर में बुधवार को न तो घर-घर कचरा उठाया और न ही सड़कें साफ कीं।
हड़ताल : सफाई कर्मचारी 26 को निकालेंगे मुख्य बाजारों से जुलूस
इन कर्मचारियों ने न तो गली-मोहल्लों में हूपर चलाए और न ही घर-घर कचरा उठाया। सड़कों और बाजारों से भी कचरा नहीं उठाया और न ही झाडू लगाई। नगर निगम के कार्यालयों में भी वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मचारियों ने सफाई कार्य नहीं किया। सड़कों पर जगह-जगह कचरा बिखरा रहा।
दूसरी ओर, गैर वाल्मीकि समाज के 2200 सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल का बहिष्कार किया। जयपुर में पहले दिन सभी हड़ताली कर्मचारियों ने सभी वार्डों में हाजिरीगाहों पर एकत्र होकर प्रदर्शन किया। इसके बाद संयोजक समिति व विभिन्न सफाई कर्मचारी संगठनों ने बैठक की। बैठक में सर्वसम्मति से 26 जुलाई को मुख्य बाजारों से सुबह 10 बजे जुलूस रैली निकालने का निर्णय लिया।
लॉटरी के आधार पर हो रही भर्ती का विरोध
हड़ताली कर्मचारियों ने कहा कि स्वायत्त शासन विभाग की ओर से प्रदेश के 186 निकायों में जो 24797 पदों पर सफाई कर्मचारी भर्ती लॉटरी के आधार पर वर्ष 2018 की तर्ज पर कराई जा रही है। इसका सभी पुरजोर विरोध करते हैं। भर्ती समझौते के तहत मस्टररोल के आधार पर ही कराई जाए।
ग्रेटर निगम ने यह की वैकल्पिक व्यवस्था
स्वास्थ्य उपायुक्त नवीन भारद्वाज ने बताया कि हड़ताल के पहले दिन ग्रेटर नगर निगम क्षेत्र में निगम के 100 हूपर डोर-टू-डोर कचरा उठाने गए। इसके अलावा कॉन्ट्रेक्ट की 500 गाड़ियां भी कचरा लेंगी। कुछ वार्ड में इन गाड़ियों को रोकने की शिकायत मिली थी, इस पर समझाइश करके वापस सुचारू कर दिया गया। साथ ही लोडर डम्पर ने भी जगह-जगह डिपो से कचरा उठाया।
दोनों निगमों में गैर वाल्मीकि कर्मियों ने की सफाई
दूसरी ओर, गैर वाल्मीकि समाज के 2200 सफाई कर्मचारियों ने हड़ताल का बहिष्कार किया और काम पर रहे। कर्मचारी नेता राकेश मीणा ने बताया कि ग्रेटर नगर निगम के 1300 और हेरिटेज के 900 गैर वाल्मीकि कर्मचारी हड़ताल में शामिल नहीं हुए हैं। सफाई व्यवस्था में शामिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि शहर की जनता को परेशान नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि समाज के नेता और कर्मचारी भर्ती में जो मांग कर रहे हैं, वह संवैधानिक रूप से गलत है। संयुक्त वाल्मीकि एवं सफाई श्रमिक संघ के अध्यक्ष को सभी सफाई कर्मचारियों के हित की बात करनी चाहिए।
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‘डरी हुई माँ’ कहानी संग्रह जातिवादी दुनिया में जी रही बेटी की चिंता में एक दलित माँ
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 08 सितंबर 2024 | जयपुर : अंजलि काजल की लंबे समय से प्रतीक्षित अंग्रेजी में पहली किताब, मा इज स्केयर्ड पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित लघु कथाओं का एक संग्रह है, जो हमें दलित दृष्टिकोण से उत्तरी भारत की महिलाओं के साधारण जीवन में ले जाती है।
‘डरी हुई माँ’ कहानी संग्रह जातिवादी दुनिया में जी रही बेटी की चिंता में एक दलित माँ
यह पुस्तक भारत में हाशिए पर पड़े समुदायों की वास्तविकताओं और दैनिक जीवन को दर्शाती है, इसलिए यह पुस्तक लिंग, जाति और सबसे महत्वपूर्ण रूप से प्रतिरोध की खोज है। शीर्षक कहानी ‘मा इज स्केयर्ड’ में, एक माँ अपनी बेटी के काम से लौटने का बेसब्री से इंतजार करती है, जबकि आलोचनात्मक पड़ोसियों की टिप्पणियों को टालती है।
अपनी रचनाओं में, हिंदी लेखिका अंजलि काजल ने लगातार इस बात की खोज की है कि कैसे महिलाएँ पितृसत्ता और जातिवाद का विरोध करती हैं और साथ ही उसे पुष्ट भी करती हैं। मूल रूप से लुधियाना की रहने वाली अंजलि अब दिल्ली में रहती हैं। मा इज़ स्केयर्ड उनकी पहली किताब है जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है।
अंजलि काजल की कहानियाँ उनके ढाई दशक के लेखन करियर को दर्शाती हैं। हालाँकि उनका गद्य काफी हद तक अलंकृत नहीं है, लेकिन यह आधुनिक भारत में विभिन्न पहचानों के चौराहे पर नारीत्व और मातृत्व के भावपूर्ण, सच्चे-से-जीवन के चित्र प्रस्तुत करता है, जो अभी भी परंपरा के नाम पर पुरानी धारणाओं और विचारों को पकड़े हुए है।
स्त्री-द्वेष की विरासत
“डेल्यूज” और “मा इज स्केयर्ड” जैसी कहानियाँ स्त्री-द्वेष और लैंगिक भेदभाव की रोजमर्रा की जिंदगी को खौफनाक तरीके से घर तक पहुँचाती हैं। दोनों ही समाज में इस कदर समाए हुए हैं कि सार्वजनिक स्थान पर किसी भी महिला के जाने पर उसे पुरुषों के अधिकार, दुर्व्यवहार और सबसे बुरे मामलों में, सीधे-सीधे दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। “डेल्यूज” में, पम्मी उन पुरुषों से आहत है जिन्हें वह भेड़ियों के रूप में देखती है जो “झपटने के लिए तैयार हैं”।
उसके पिता का स्पर्श “पम्मी को अपने जीवन में किसी पुरुष से प्राप्त एकमात्र सहनीय स्पर्श था”। अपरिहार्य विवाह के जाल से बचने के लिए, वह उन्नीस वर्ष की आयु में घर से भाग जाती है, लेकिन एक नए बंधन में फँस जाती है जब वह अपने बहुत बड़े ट्यूशन शिक्षक के साथ रहना शुरू करती है जो लगातार उसे नियंत्रित करने लगता है।
शीर्षक कहानी एक आशंकित माँ की है जो अपनी बेटी जसबीर के कॉलेज से वापस आने का इंतज़ार करती है। जसबीर को समुदाय में घुटन भरे माहौल और शहर की कामुकता से नफ़रत है, लेकिन मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित होने के कारण वह इसका डटकर मुकाबला करने में सक्षम है। महिलाओं के प्रति घृणा की विरासत ऐसी है कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती जाती है, जिसमें महिलाएँ धीरे-धीरे पितृसत्तात्मक मानदंडों को आत्मसात करके उत्पीड़न को स्वीकार करती हैं।
“अच्छे परिवारों” की लड़कियों से कुछ सामाजिक अपेक्षाएँ होती हैं। एक महिला से शादी के बाद काम और घर दोनों को संतुलित करने की उम्मीद की जाती है, अगर उसे पहले से ही नौकरी करने की “अनुमति” है। फिर उन्हें मशीन के दाँतों में सिमटते देखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिर भी, वे विद्रोही बनी हुई हैं।
विवाह और मातृत्व
चाहे शहरी हो या ग्रामीण, महिलाओं के पास सीमित विकल्प होते हैं। एक सख्त (लिंग-मानक) समय-सीमा होती है जिसका उन्हें पालन करना होता है, जहाँ सब कुछ शादी और बच्चों पर आकर खत्म होता है। “रेन” में, काम्या और पलाश की शादी हो जाती है क्योंकि उनके दूसरे रिश्ते “सफल” नहीं रहे: “सच तो यह है कि उन्हें कभी समझ ही नहीं आया कि शादी करना इतना ज़रूरी क्यों है।”
बाद में, जब काम्या को पता चलता है कि पलाश के पुराने प्यार से फिर से जुड़ने से वह असहज है, तो वह कहती है: “क्या आपको नहीं लगता कि शादी एक तंग ढाँचे की तरह है जिसमें हम अपनी पूरी ज़िंदगी फिट होने की कोशिश में बिता देते हैं? जब दो लोग एक साथ आते हैं, तो उन्हें दुनिया द्वारा उनके लिए बनाए गए सभी ढाँचों को तोड़ देना चाहिए।”
“तारू, जीनत और बकवास से भरी दुनिया” एक दृष्टिहीन महिला तारू की कहानी है, जो प्रेम विवाह में है और बच्चे पैदा करने में असमर्थ है और गोद लेने का फैसला करती है। कई बार ऐसा लगता है कि वह बच्चा चाहती ही नहीं है, खासकर जब उसे अपनी सास की लगातार तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन जीनत जल्दी ही उसका दिल जीत लेती है।
“घुटन” में, सुषमा का जीवन शांति या आराम के बिना खाली है और उसकी बड़ी बेटी उसे “खाली घोंसला सिंड्रोम” से पीड़ित बताती है। अपने पति की दूसरी जगह पोस्टिंग के कारण, उसे अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिए घर पर रहना पड़ा। बहुत बाद में दोनों आखिरकार साथ रहने लगते हैं। हालांकि सुषमा और उनके पति इस चक्र को तोड़ना चाहते हैं, लेकिन नाराजगी सतह पर उबलती है।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जातिवाद
जातिगत पदानुक्रम के आधार पर भेदभाव भारत में एक सर्वव्यापी वास्तविकता है। काजल ने जाति की अनुभवजन्यता को इस तरह से दर्शाया है कि यह इसकी अस्पष्ट प्रकृति को दर्शाता है। आरक्षण विशेष रूप से एक कांटेदार विषय है। सवर्ण पात्र इसे एक “अनुचित लाभ” या “उलटा भेदभाव” के रूप में देखते हैं जो उनके बच्चों को “उनके माता-पिता और दादा-दादी के पापों” के लिए “उनकी सीटें छीनने” के लिए दंडित करता है।
“इतिहास” में, महिला कथाकार एक पुराने कॉलेज के दोस्त से मिलती है, जो उस समय की याद दिलाती है जब उसे अपनी जाति के कारण सहपाठियों और शिक्षकों दोनों द्वारा नियमित रूप से धमकाया और अपमानित किया जाता था।
“टू बी रिकॉग्नाइज्ड” में, लड़कियों के कॉलेज में दलित शिक्षिका किरण एक दलित छात्रा को अपने संरक्षण में लेती है और उसे एक कविता पाठ कार्यक्रम के लिए मार्गदर्शन करती है जहाँ गीता साबित करती है कि जाति प्रतिभा का निर्धारण नहीं करती है।
यहां तक कि अच्छी भावनाएं भी आकस्मिक जातिवाद से रंगी जा सकती हैं। “पाथवेज़” में, उच्च वर्ग की माला सक्सेना अपने बेटे के दलित सहपाठी, संजय की शिक्षा को प्रायोजित करने की पेशकश करती है, जिसके पिता एक सब्जी की दुकान चलाते हैं, लेकिन वह उसकी मदद से इनकार कर देता है।
उसका आंतरिक एकालाप खुलासा करता है: ” वह अभिमानी है। ये लोग खुद को बहुत बड़ा समझते हैं… गांव में, वे किसी तरह गुजारा कर लेते थे – हमारे खेतों की जुताई करते थे, जो कुछ भी हम उन्हें देते थे, खा लेते थे। ” बाद में, जब वह अपने पिता की दुकान में काम करना शुरू करता है, तो वह कहती है: “ठीक है, यह सबसे अच्छा है।
संजय ने एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में खुद के साथ क्या किया होगा?… हमारे समाज में व्यवस्था एक कारण से बनाई गई थी।” जब उसके पिता संजय के वर्षों की बचत के बाद आखिरकार दाखिला लेने पर मिठाई बांटते हैं, तो माला उम्मीद के मुताबिक उन्हें छूने से भी इनकार कर देती है।
कविता भनोट ने पुस्तक के अंत में एक संक्षिप्त अनुवादकीय नोट में लिखा है कि वह अनुवाद के बारे में किस तरह आलोचनात्मक ढंग से सोचती हैं। उनका उद्देश्य “अंजलि के पाठ को पश्चिमी संदर्भ में ढालना नहीं था, बल्कि मूल भाषा और संदर्भ के कुछ स्वाद को बनाए रखना था।”
वह ज़्यादातर सफल रही हैं, हालाँकि कुछ अनुवाद विकल्प अंग्रेजी में अजीब लगते हैं। काजल महिलाओं और दलित लोगों के रोज़मर्रा के जीवन के साथ-साथ समान प्रतिनिधित्व और करियर पाने के लिए उन्हें जिन बाधाओं का सामना करना पड़ता है, उनकी एक स्थिर समझ प्रदर्शित करती है। इन सबके बीच, ये पात्र आत्मा की अद्भुत शक्ति प्रदर्शित करते हैं।
यह भारत में एक गर्म विषय है और इस पर बहस बहुत तीखी है, न केवल इस बात पर कि “आरक्षण” होना चाहिए या नहीं, बल्कि किसके लिए, और सकारात्मक कार्रवाई के लिए अन्य किस तरह के विकल्प हैं। उदाहरण के लिए, निजी निगम, आम तौर पर, अभिजात्य वर्ग बने हुए हैं।
देश के कुछ हिस्सों में, कुछ पुराने और निश्चित रूप से पुराने रीति-रिवाजों को नए सिरे से समर्थन दिया जा रहा है, जिसमें राजनीतिक दल अपने एजेंडे के अनुकूल परंपराओं का चयन करते हैं। उस संदर्भ में, उत्पीड़ित समुदायों के प्रति सम्मान की कमी और महिलाओं के प्रति सम्मान का अभाव एक साथ चलते हैं। काजल ने स्पष्ट रूप से यह परिकल्पना नहीं की है, लेकिन उनके नायक अपनी परिस्थितियों में अपमान और अन्याय से प्रेरित होकर एक स्टैंड लेते हैं।
यह उनकी कल्पना में आशापूर्ण तत्व है, जब लोग लिंग और जाति की सीमाओं के पार एक-दूसरे को समझना और उनका समर्थन करना शुरू करते हैं। ऐसा करने के लिए, उन्हें अपने स्वयं के परिवारों, दोस्तों या कार्यालय के कबीलों के निहित पूर्वाग्रहों को अस्वीकार करना होगा।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक की अंतिम कहानी, “सैनिटाइज़र”, जो पहली कोविड-19 लहर में सेट है, सबसे कम उम्र की पीढ़ी, स्कूल जाने वाले, सोचने के लिए समय निकालते हैं और विभाजन के पार एक-दूसरे का साथ देते हैं। यहीं भविष्य निहित है।
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सुप्रीम कोर्ट की एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिश
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के नये फैसले ने एससी-एसटी एक्ट कानून के प्रावधानों को फिर से कमजोर किया है। इससे देश एससी एसटी समुदायों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी अनुसूचित जाति-जनजाति के व्यक्ति को उसकी जाति का नाम लिए बगैर अपमानित किया गया है, तो यह मामला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत अपराध नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट की एससी-एसटी एक्ट कमजोर करने की एक और कोशिश
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एक ऑनलाइन मलयालम न्यूज चैनल के एडिटर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया। स्कारिया पर 1989 एक्ट की धारा 3(1)(R) और 3(1)(U) के तहत केस दर्ज हुआ था।
उन पर आरोप था कि उन्होंने SC समुदाय से आने वाले कुन्नाथुनाड के CPM विधायक पीवी श्रीनिजन को माफिया डॉन कहा था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने कहा- वीडियो में अपमान जैसा कुछ नहीं मिला
आरोपी स्कारिया की तरफ से एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और गौरव अग्रवाल ने दलीलें रखीं। जिसे मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- SC/ST समुदाय के किसी सदस्य का जानबूझकर किया गया हर अपमान और उसे दी गई धमकी जाति आधारित अपमान नहीं माना जाएगा।
हमें ऐसा कुछ नहीं मिला जो साबित करे कि स्कारिया ने यूट्यूब वीडियो में SC/ST समुदाय के खिलाफ दुश्मनी या नफरत को बढ़ावा देने की कोशिश की है। वीडियो का SC या ST के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका निशाना केवल शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) ही था।
तो फिर किसे जातिगत अपमान माना जायेगा
70 पेज का फैसला लिखते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि केवल उन मामलों में जानबूझकर अपमान या धमकी दी जाती है, जो छुआछूत की प्रथा या ऊंची जातियों के निचली जातियों/अछूतों पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए होते हैं। इन्हें 1989 एक्ट में अपमान या धमकी कहा जा सकता है।
बेंच ने कहा कि अपमानित करने का इरादा वही है, जिसे कई विद्वानों ने हाशिए पर पड़ी जातियों के लिए बताया है। यह कोई साधारण अपमान या धमकी नहीं है जिसे अपमान माना जाए और जिसे 1989 के अधिनियम के तहत दंडनीय बनाने की मांग की गई है।
कोर्ट की सलाह- श्रीनिजन चाहे तो मानहानि का मुकदमा कर सकते हैं
माफिया डॉन के संदर्भ का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा- निंदनीय आचरण और अपमानजनक बयानों को देखते हुए, अपीलकर्ता (स्कारिया) के बारे में केवल यह कहा जा सकता है कि उसने IPC की धारा 500 के तहत मानहानि का अपराध किया है। यदि ऐसा है, तो शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) के लिए अपीलकर्ता (स्कारिया) के खिलाफ मुकदमा चलाने के रास्ते हमेशा खुले रहेंगे।
हालांकि, शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) केवल इस आधार पर 1989 एक्ट के तहत केस दर्ज करने की अपील नहीं कर सकता, क्योंकि वह अनुसूचित जाति से है और वीडियो की कॉपी में भी यह साबित नहीं हुआ कि स्कारिया का श्रीनिजन का अपमान करना उसकी जाति से प्रेरित था।
पहले भी हुई थी साजिश
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी एक्ट के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया था। इसके विरोध में 3 मार्च को भारत बंद बुलाया गया था। प्रदर्शन के दौरान 10 से ज्यादा राज्यों में हिंसा हुई थी और 15 लोगों की मौत हो गई थी।
कोर्ट के फैसले से देश में गुस्सा और असहजता
सरकार ने लिखित जवाब दायर कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर जो फैसला दिया, उससे देशभर में लोगों के बीच हलचल, गुस्सा और असहजता बढ़ी है। इसके अलावा कोर्ट के आदेश से जो भ्रम की स्थिति पैदा हुई है, उसे ठीक करने के लिए फैसले पर पुनर्विचार जरूरी है।
कोर्ट को लिखित जवाब में केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों को न्यायिक कानून से संशोधित किया है, जबकि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के अपने अधिकार हैं और उनका उल्लंघन नही किया जा सकता।
एससी-एसटी एक्ट: टाइमलाइन
12 अप्रैल: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने फैसले पर पुनर्विचार करें, क्योंकि इस फैसले ने एक्ट के कानूनी प्रावधानों को कमजोर किया है।
4 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की। करीब एक घंटे तक चली सुनवाई में बेंच ने कहा कि कोर्ट के आदेश ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर नहीं किया। कोर्ट ने फैसले पुनर्विचार याचिका पर 10 दिन में सुनवाई करने की बात कही।
3 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया। प्रदर्शन हिंसा में बदला 10 राज्यों में 14 लोगों की मौत हुई।
– केंद्र ने भी इसी दिन सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने इस पर फौरन सुनवाई से इनकार कर दिया था।
20 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसले के साथ आदेश दिया कि एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती।
एससी/एसटी एक्ट के मामले में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं:
1) एससी/एसटी कानून में कहां पुलिस से शिकायत हुई थी
– महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोर कीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। स्टोर कीपर ने शिकायत में आरोप लगाया था कि महाजन ने अपने अधीनस्थ उन दो अिधकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी है, जिन्होंने उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी।
2) पुलिस से शिकायत होने के बाद कैसे आगे बढ़ा मामला
– पुलिस ने जब दोनों आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी, तो वह नहीं दी गई। इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्ज कर लिया। महाजन का तर्क था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।
3) एफआईआर के बाद हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में केस कब से
– 5 मई 2017 को काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने हाईकोर्ट पहुंचे। पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। एफआईआर खारिज नहीं हुई तो महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को उन पर एफआईआर हटाने का आदेश दिया।
4) सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को फैसले में क्या कहा था
– सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के साथ आदेश दिया कि एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती।
5) क्यों फैसले का विरोध शुरू हुआ, सरकार ने क्या किया
– इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दलित संगठनों और विपक्ष ने केंद्र से रुख स्पष्ट करने को कहा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की।
6) आखिर इस फैसले के विरोध क्यों हो रहा है
– दलित संगठनों का तर्क है कि 1989 का एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है।
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