मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 15 जुलाई 2024 | धौलपुर : राजस्थान पुलिस सेवा से पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हरिराम मीणा हिंदी कथा साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनका अधिकांश लेखन पुलिस सेवा के अंतर्गत हुए उनके अनुभवों और सच्ची घटनाओं पर आधारित है। जब वे धौलपुर में नियुक्त थे, तो उन्होंने एक लड़की को वेश्या बनाने वाले गिरोह से मुक्त करवाया था। उसी लड़की पर यह मार्मिक उपन्यास आधारित है।
‘ब्लैक होल में स्त्री’ उपन्यास चंबल एरिया में वेश्यावृति अपनाने के तौर-तरीकों की सटीक पड़ताल
राजस्थान पुलिस सेवा से पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हरिराम मीणा हिन्दी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनका अधिकांश लेखन पुलिस सेवा के अंतर्गत हुए उनके अनुभवों और सच्ची घटनाओं पर आधारित है।
हरिराम मीणा कहते हैं, ‘‘कथा की इस समस्त सृजन यात्रा में मुझे ऐसी अनुभूति हुई जैसे मानव यात्रा में आद्यांत, दैहिक शोषण के उत्पीड़न को भोगते हुए स्त्री की पहचान, अस्मिता, गरिमा और मनुष्य के रूप में उसका अस्तित्व घनीभूत अंधकार में विलीन होता रहा हो। उसी अँधेरे में जीते रहने के लिए उसे विवश किया जाता रहा हो। उसका सम्पूर्ण जीवन जैसे एक ब्लैक होल में गुज़रता रहा हो।’’
ब्लैक होल में स्त्री
राजस्थान पुलिस सेवा से पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए हरिराम मीणा हिन्दी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनका अधिकांश लेखन पुलिस सेवा के अंतर्गत हुए उनके अनुभवों और सच्ची घटनाओं पर आधारित है।
कथा का प्रस्थान बिंदु राजस्थान के धौलपुर में अवस्थित होपपुरा गाँव है जिसका संबंध बेड़िया आदिम समुदाय से है। यहाँ जिस्म फ़रोशी का धंधा होता रहा है. देश भर में धौलपुर यह जिला उन गिने चुने जिलों में शामिल है। जहाँ लिंगानुपात सबसे अधिक असंतुलित रहा है। इस दशा के एकाधिक कारण रहे हैं। यहाँ का पठारी व बीहड़ी जीवन कठोर है।
वैसे तो “स्वतंत्र साधनों वाली महिला” वेश्या समाज के धनी और कुलीन पुरुषों की प्रेमिका होती है। वह अपने ग्राहकों को न केवल अपनी सुंदरता और आकर्षक गुणों से, बल्कि अपनी शिक्षा, प्रतिभा और आकर्षण से भी लुभाती है। उच्च शुल्क के लिए, वेश्या अपने साथ रहने वाले पुरुष का मनोरंजन करने के साथ-साथ उसे सामाजिक कार्यक्रम में उसकी पत्नी की जगह साथ देने जैसी सहभागिता भी प्रदान करती है।
ये महिलाएँ विभिन्न पृष्ठभूमियों से आती हैं। कुछ गरीबी में पली-बढ़ीं और एक ऐसे शहर में चली गईं जहाँ उन्होंने खुद को “बेचना” सीखा, न केवल सेक्स के लिए, बल्कि एक ऐसी महिला के रूप में जो बहुत कुछ दे सकती थी।
हर बाप अपनी बेटी को समतल इलाकों में ब्याहना चाहता है। दूसरी तरफ कोई समतली बाप अपनी बेटी को इस इलाके में नहीं देना चाहता। यहाँ सामंतवाद के चलते कन्या-वध की कुप्रथा रही है। दिल्ली, आगरा, ग्वालियर एवं सीमावर्ती राजस्थान जिस्म फ़रोशी के लिए भी बदनाम रहा है।
जैसे-जैसे महिलाओं को वेश्या बनने की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की डिग्री का एहसास होने लगा, विधवाएँ, तलाकशुदा और यहाँ तक कि उच्च वर्ग की महिलाएँ भी वेश्या जीवन शैली अपनाने लगीं।
कालांतर में इन्हीं कारणों के यहाँ औरतों की ख़रीद फ़रोख का धंधा पनपता रहा। मुख्य धारा के मीडिया में ‘धौलपुर को औरतों की खुली मंडी’ तक प्रचारित कर दिया गया। मुम्बई की अधिकतर बारबालाएं इसी क्षेत्र से पहुँचती रहीं।
कथाकार ने इस अंचल के भरतपुर एवं धौलपुर जिलों में करीब एक दशक तक की अवधि फील्ड पुलिस अफसर के रूप में गुजारी है। यहाँ के कतिपय गाँवों में कन्या वध की प्रथा को लेकर सन अस्सी के दशक में राजस्थान विधान सभा में हंगामा हुआ था।
उससे पहले जब दिल्ली का एक पत्रकार कमला नाम की लड़की को यहीं से ख़रीद कर ले गया तब देश भर में धौलपुर इलाके की बदनामी हुई थी। इन दोनों सनसनीखेज़ मुद्दों को लेकर पुलिस की उच्च स्तरीय जाँच करवाई गयी थी। उन जाँचों में लेखक ने सक्रीय भूमिका का निर्वहन किया था।
बीआर अंबेडकर ने 1916 में अपने कोलंबिया विश्वविद्यालय की थीसिस में सती, जबरन विधवापन, जाति की सजातीयता, और जिसे उन्होंने हिंदू समाज में ‘अधिशेष (Surplus) महिलाओं’ की समस्या कहा था, के बारे में लिखा था। “सती, जबरन वैधव्य, और बालिका विवाह ऐसी प्रथाएं हैं जो मुख्य रूप से एक जाति में अधिशेष पुरुष और अधिशेष महिला की समस्या को हल करने और अपनी सगोत्रता को बनाए रखने के लिए थीं…।”
शायद इसीलिए कहा गया है कि एक खूबसूरत महिला दो बार मरती (A Beautiful Woman Dies Twice) है। कन्या वध, औरतों की ख़रीद फ़रोख्त एवं जिस्म फ़रोशी के अपराधों का गहरा व व्यापक अनुभव इस औपन्यासिक कृति को आधिकारिकता देता है। लेखक ने स्त्री के दैहिक शोषण को लेकर गहन व व्यापक शोध-अध्ययन किया है।
जैसे बंगाल में अकाल और गरीबी से त्रस्त महिलाओं, अपहरण की गई और बलात्कार पीड़िता महिलाओं, और, सबसे महत्वपूर्ण, कुलीन ब्राह्मण परिवारों की विधवाओं को, जिन्हें भार मानकर अस्वीकार कर दिया गया था, ’19वीं सदी के बंगाल की बाजार अर्थव्यवस्था की औपनिवेशिक दुनिया में वेश्याओं की पहली पीढ़ी बनीं’ ठीक वैसे ही ‘ब्लैक हॉल में स्त्री’ हरिराम मीणा की धौलपुर और विशेष रूप से चंबल एरिया में वेश्यावृति अपनाने के तौर-तरीकों की सटीक पड़ताल हुई है।
आदिम युग में स्त्री-पुरुष की समानता से कालांतर में स्त्री पर पुरुष के वर्चस्व की स्थापना और उसी के साथ सती प्रथा, बालिका वध, विधवाओं की दुर्दशा, महिलाओं की ख़रीद-फ़रोख्त जैसी अमानवीयताओं तक की पड़ताल इस कृति में की गयी है। चंबल के इर्द गिर्द औरतों की ख़रीदफ़रोख्त, जिसमें सवर्ण लोग भी शामिल रहते आये।
बेड़िया समुदाय में व्याप्त जिस्मफ़रोशी के धंधा से आरंभ होने वाली इस कथा के विस्तार में एक तरफ क्षैतिजीय स्तर पर पृथ्वी के समस्त भूगोल, तो दूसरी ओर लंबवत दृष्टि से काल के आयतन में समायी पौराणिक पुरंदरी (इंद्र-संबंधी) परी-कथाओं, प्राचीन गणिकाओं, मध्ययुगीय देवदासियों, तवायफ़, गंधर्व-प्रसंगों से लेकर आधुनिक वेश्याओं, कॉल गर्ल्स, चकलाघर एवं बारबालाओं तक के यथार्थ को सायास और कदाचित अनायास समेटने का प्रयास किया है।
इस कृति के केंद्र में उमा उर्फ़ निशा नाम की स्त्री है। यह वह पात्र है जिसे लेखक ने पुलिस अफसर की हैसियत से बेड़िया बस्ती के एक चकलाघर से मुक्त कराया। जिसे पूनम नाम की महिला चलाया करती थी। पूनम ने निशा नाम की उस किशोरी को उमा का नाम दिया।
लेखक द्वारा अनुभूत स्त्री की ऐसी त्रासद घटना ने उसे लंबे समय तक बेचैन किये रखा। यही इस पुस्तक की रचना का प्रेरणा स्रोत है। अनंत काल से उपभोग की वस्तु बनायी जाती रही नारी के उत्पीड़न के विभिन्न आयामों को इस कथा में समेटने का प्रयास किया है।
परकाया प्रवेश तो असंभव होता है, फिर भी अनुभूत यथार्थ किसी सीमा तक लेखक को आधिकारिक अभिव्यक्ति तक अवश्य ले जाता है। लेखक की दृष्टि में ‘यह दुनिया स्त्री के लिए किसी ब्लेक होल से कम नहीं!’