तमिलनाडु में 79% आरक्षण विकास के साथ सामाजिक न्याय की गारंटी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 06 जुलाई 2024 | जयपुर :  विकास के साथ सामाजिक न्याय का केंद्रीय विचार ब्राह्मण विरोधी आंदोलन – जो आत्म-सम्मान आंदोलन में विकसित हुआ – एक समावेशी द्रविड़ पहचान के निर्माण का स्थल बन गया जिससे विभिन्न जाति समूहों में “समानताओं की श्रृंखला” का निर्माण संभव हो सका।

तमिलनाडु में 79% आरक्षण विकास के साथ सामाजिक न्याय की गारंटी

इसी ने ऊंची जाति की राजनीतिक सत्ता को चुनौती देने में शुरुआती सफलताओं के बाद निचली जाति के गठबंधनों को तेजी से टूटने से रोका, जिसका अभाव उत्तर भारत के हिंदी भाषी प्रदेशों ‘काउ बेल्ट’ में अब भी है। आलेख के अगले हिस्से में इसे काउ बेल्ट से ही अभिहित / संबोधित करेंगे।

तमिलनाडु में सामाजिक न्याय के वास्तविक पैरोकार सामाजिक न्याय, समानता, आस्था की समान प्रकृति और भाईचारे के उत्कृष्ट सिद्धांतों पर राज्य को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण सभी के लिए समृद्धि को बढ़ावा दे रहा है।

यदि कांग्रेसनीत इंडिया गठबंधन  सत्ता में आती है, तो उसने संवैधानिक संशोधन पारित करने का संकल्प कर काउ बेल्ट सहित देश भर में आरक्षण कि सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने का संकल्प लिया है। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इंडिया गठबंधन इस लक्ष्य को कितनी सिद्दत से हासिल करता है या वहीं ढाक के तीन पात साबित होता है।

तमिलनाडु (टीएन) भारत के एक बड़े राज्य के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत बढ़ाया, जहां पिछड़ी जातियों (ओबीसी),  एससी और एसटी के लिए 69 प्रतिशत आरक्षण है। जो कि सुप्रीमकोर्ट के इंदा साहनी केस कि निर्धारित सीमा 50 प्रतिशत से अधिक है और राज्य के बड़े शैक्षणिक संस्थान और कॉलेजों में ईमानदारी से लागू होने के कारण इसके बेहतरीन परिणाम देखने को मिले हैं। 

जाहिर है, महाराष्ट्र, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इस विचार के बारे में कुछ आशंकाएं हैं, उन्होंने मुख्य रूप से आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने का प्रयास किया है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय (एससी) द्वारा इस पर रोक लगा दी गई है।

इस प्रस्ताव के विरोध की दो मुख्य बातें हैं – कानूनी और आर्थिक। कानूनी तर्क यह है कि आधे से अधिक अवसरों को आरक्षित करना संविधान का अक्षरश: उल्लंघन है। आर्थिक तर्क यह है कि उत्पीड़ित जातियों के लिए पद आरक्षित करना प्रतिभा, कौशल और योग्यता पर एक समझौता होगा जो अनिवार्य रूप से खराब आर्थिक परिणामों को जन्म देगा।

इस लेख में कानूनी तर्क को एक तरफ रखते हुए, अनुभवजन्य साक्ष्य और उदाहरणों के साथ आर्थिक विरोध को आसानी से कैसे हासिल किया जा सकता है। इस पर चर्चा व्यापक करेंगे। “नैसर्गिक प्रयोग” एक मजबूत अनुसंधान पद्धति है जिसका उपयोग अर्थशास्त्री वास्तविक जीवन में नीतिगत परिवर्तनों के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए करते हैं।

कनाडाई-अमेरिकी अर्थशास्त्री डेविड कार्ड ने सीमा पार दो अमेरिकी पड़ोसों की एक दूसरे से तुलना करके, न्यू जर्सी राज्य में एक के साथ, न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के रोजगार पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 2021 में नोबेल पुरस्कार जीता, जहां न्यूनतम वेतन बढ़ाया गया था, और दूसरा पेंसिल्वेनिया राज्य में, जहां नहीं बढ़ाया गया था। ऐसे ” नैसर्गिक प्रयोग”, नियंत्रित या प्रयोगशाला प्रयोगों के विपरीत, लोगों और समाजों पर नीतिगत प्रभावों का अध्ययन करने के लिए बेहतर उपकरण माने जाते हैं।

भारत में 1990 में टीएन द्वारा अपना आरक्षण कोटा बढ़ाकर 69 प्रतिशत करना एक ” नैसर्गिक प्रयोग” था। 1992 में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी पहचान-आधारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा लगा दी। अपने 69 प्रतिशत आरक्षण को SC के फैसले से बचाने के लिए, तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने, तत्कालीन प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समर्थन से, तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से सहमति प्राप्त की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तमिलनाडु के आरक्षण विधेयक को नौवीं अनुसूची के तहत रखा जाये।  ताकि इसे न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा जा सके। इस प्रकार, टीएन भारत में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण वाला एकमात्र बड़ा राज्य बन गया।

तमिलनाडु में तीन दशकों के अधिक आरक्षण ने अन्य राज्यों की तुलना में इसके आर्थिक विकास और प्रगति को कैसे प्रभावित किया? यह “नैसेगिक प्रयोग” आलोचकों की परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए उपयुक्त है कि अधिक आरक्षण योग्यता और दक्षता का त्याग करता है जो तब निजी क्षेत्र के निवेश, आर्थिक विकास और समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

आइए टीएन की तुलना अन्य बड़े राज्यों से करें जहां अधिक आरक्षण नहीं है, जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश। 1993 और 2023 के बीच, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में कर्नाटक के बाद तमिलनाडु की दूसरी सबसे अधिक वृद्धि हुई। सरलीकृत जीडीपी के लाइन माप के अनुसार, तमिलनाडु में उत्पीड़ित जातियों के लिए उच्च आरक्षण ने स्पष्ट रूप से कम आरक्षण वाले अन्य राज्यों से बेहतर प्रदर्शन करने की इसकी क्षमता में बाधा नहीं डाली है।

कोई यह देखने के लिए और गहराई से अध्ययन कर सकता है कि क्या टीएन की जीडीपी वृद्धि केवल केरल जैसे विदेशी प्रेषण का एक कार्य है या निवेश, उत्पादन और रोजगार की वास्तविक आर्थिक गतिविधियों से प्रेरित है।

1993 से 2023 की अवधि में, तमिलनाडु में कारखानों की संख्या दोगुनी हो गई, जो गुजरात के बाद दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि है, जबकि बिहार में कारखानों की संख्या में गिरावट आई है। इस अवधि में टीएन में मध्यम और छोटे निजी क्षेत्र के उद्यमों द्वारा निवेश राज्यों के इस समूह में सबसे अधिक था और टीएन में उत्पादन महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे अधिक था।

इन सभी राज्यों में से तमिलनाडु में कुल नियोजित श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है। टीएन न केवल अधिकतम संख्या में श्रमिकों को रोजगार देता है बल्कि उन्हें सबसे अधिक भुगतान भी करता है, गैर-कृषि मजदूरों के लिए मजदूरी महाराष्ट्र की तुलना में लगभग 70 प्रतिशत अधिक है (डेटा भारतीय रिज़र्व बैंक की राज्यों की वार्षिक हैंडबुक से प्राप्त किया गया है)।

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईफ़ोन विनिर्माण की वैश्विक हिस्सेदारी में भारत की तेजी से वृद्धि के बारे में सभी दावों के बावजूद, देश का 40 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन अकेले टीएन से आता है। इसके अलावा, भारत का लगभग आधा स्मार्टफोन निर्यात तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले से होता है, जहां की एक तिहाई आबादी दलित है।

डेटा का विश्लेषण चाहे किसी भी तरीके से किया जाये, यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु ने आर्थिक विकास, समृद्धि और विकास की गुणवत्ता में अधिकांश अन्य राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। जाहिर है, उत्पीड़ित जातियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार करने से योग्यता कम नहीं होती है और आर्थिक विकास में बाधा नहीं आती है। न ही इसने निवेशकों, उद्यमियों या श्रमिकों को डरा दिया है। यदि कुछ भी हो, तो यह शायद आर्थिक विकास की एक निश्चित समावेशी प्रकृति को मजबूर करता है जिसकी दुनिया के अधिकांश देश आकांक्षा करते हैं।

बढ़ती सकारात्मक कार्रवाई के कारण आर्थिक प्रगति धीमी होने का डर फैलाना एक संकीर्ण और विक्षिप्त मानसिकता का द्योतक है। साक्ष्य, कम से कम भारतीय संदर्भ में, ऐसी आशंकाओं को स्पष्ट रूप से खारिज करते हैं। कोई वैध रूप से यह तर्क दे सकता है कि क्या आरक्षण व्यापक सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए अपने आप में पर्याप्त – या यहां तक कि एकमात्र नीतिगत उपकरण है।

कोई भी उचित रूप से इस पर बहस कर सकता है कि क्या “जितनी आबादी, उतना हक” (जनसंख्या के अनुपात में अधिकार) प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है। लेकिन यह तर्क देना कि अधिक आरक्षण से आर्थिक प्रगति बाधित होगी, स्पष्ट रूप से अंधा और वैचारिक रूप से पक्षपातपूर्ण है।

धन और विरासत करों जैसे विचारों के संदर्भ में, मैंने पहले तर्क दिया है कि भारत आर्थिक क्षेत्र को बड़े पैमाने पर और इतनी तेजी से बढ़ा सकता है कि हर कोई इसमें भाग ले सके और पश्चिमी विकसित देशों की तरह “पैरेटो इष्टतम” स्थिति में न फंसे। आर्थिक विकास धीमा है और लोगों के एक समूह की हालत दूसरे समूह की हालत खराब किए बिना बेहतर नहीं हो सकती।

इसलिए, ऐसे “अमीरों पर कर” विचार भारत के लिए अनुपयुक्त हैं। ओबीसी, एससी और एसटीएस के लिए उच्च आरक्षण से दूसरों की प्रगति और अवसरों में बाधा नहीं आनी चाहिए। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था सभी को समायोजित करते हुए अधिक तेजी से विकसित और बड़ी हो सकती है। साथ ही विश्व की सिरमौर अर्थव्यवस्था भी।

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SOG की नाकामी छिपाने के लिए एसआई भर्ती परीक्षा 2021 रद्द करने की कवायद तेज

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 अक्टूबर 2024 | जयपुर : प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा का कहना है कि भजनलाल सरकार ने SOG की नाकामी छिपाने के लिए एसआई भर्ती परीक्षा 2021 रद्द करने की कवायद तेज कर दी है। एसओजी लम्बे समय से पेपर लीक की जाँच कर रही है और मात्र 5% फर्जी थानेदारों की पहचान कर पायी है। इसमें में मुख्य आरोपी और बड़ी मछलियाँ जाँच के दायरे से बाहर है। एसआई भर्ती को रद्द करना प्रतिभाशाली युवाओं के साथ धोखा होगा। 

SOG की नाकामी छिपाने के लिए एसआई भर्ती परीक्षा 2021 रद्द करने की कवायद तेज

प्रोफ़ेसर मीणा ने कहा कि संपूर्ण सिलेक्शन प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया गया जाना चाहिए। जाँच की प्रक्रिया को तेज करके फर्जी तरीके से सिलेक्ट हुए अभ्यर्थी जेल में डाले जाने चाहिए। SOG जांच अंतिम छोर तक की जाये ताकि बड़ी मछलियाँ पकड़ी जाये। जाँच में अब तक पकडे गये फर्जी अभ्यर्थियों के स्थान पर मेरिट में नीचे वालों को लिया जाये। अब इस भर्ती को निरस्त करने का अर्थ है, योग्य व ईमानदार को सजा देना।  

SOG की नाकामी छिपाने के लिए एसआई भर्ती परीक्षा 2021 रद्द करने की कवायद तेज

एसआई भर्ती परीक्षा 2021 को लेकर आज बड़ी संख्या में ट्रेनी एसआई के परिवार जन शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। परिजनों की मांग है कि सरकार इस परीक्षा को निरस्त न करें। जो लोग गलत तरीके से इस परीक्षा को पास कर ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनके खिलाफ सरकार कड़ा एक्शन ले, लेकिन जो लोग मेहनत कर के इस परीक्षा को पास कर ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनके भविष्य के साथ कोई खिलवाड़ न हो।

शहीद स्मारक पर बड़ी संख्या में ट्रेनिंग कर रहे एसआई के परिजन और रिश्तेदार पहुंच कर सरकार से वार्ता करने का समय मांग रहे हैं। परिजनों का कहना है कि अगर सरकार ने यह परीक्षा रद्द की तो उन के बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा। ऐसे में सरकार को सोच समझ कर एक्शन लेना चाहिए। ट्रेनिंग कर रहे एसआई दो दिन पहले किरोड़ी लाल मीणा से भी उनके आवास पर मिले थे। यहां पर उन्होंने अपनी परेशानी बताई थी। 

मंत्रियों की कमेटी को करना है फैसला

SI भर्ती परीक्षा 2021 को रद्द होगी या नहीं इस पर 6 मंत्रियों की कमेटी को अभी फैसला करना है। वहीं, कमेटी बनने के बाद से ही ट्रेनिंग कर रहे एसआई परेशान हो गए हैं। जो परीक्षा पास कर अभी ट्रेनिंग कर रहे हैं। उनका कहना है कि एसआई भर्ती परीक्षा 2021 में कुल 809 अभ्यर्थी पास हुए। इनकी ट्रेनिंग जयपुर आरपीए, किशनगढ़ और जोधपुर ट्रेनिंग सेंटर में चल रही हैं। इनमें से 50 ट्रेनी एसआई को गिरफ्तार किया जा चुका है। जो कुल पास अभ्यर्थियों का 5% है।

अगर परीक्षा रद्द होती है तो 95% ट्रेनी एसआई का भविष्य खराब हो जाएगा। जीवन के चार साल खत्म हो जाएंगे। ये ट्रेनी एसआई कुछ सामाजिक संगठनों के जरिए अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

ट्रेनी सब इंस्पेक्टरों का कहना है कि कुछ लोगों के फर्जी तरीके से जॉइनिंग लेने से सभी के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता। प्रशिक्षु सब इंस्पेक्टर ने सालों मेहनत करके इस पद को हासिल किया है। एक साल से अधिक का समय ट्रेनिंग करते हुए हो गया है। अगर यह भर्ती रद्द की गई तो ईमानदार और मेहनत से बने एसआई के साथ यह गलत होगा।

अगर इस भर्ती को रद्द किया गया तो 95 प्रतिशत पर पड़ेगा बड़ी मार,आरोपियों की हो जायेगी मौज

भर्ती रद्द करने से वो लोग बच जाएंगे। जो गलत रास्ते से इसमें आए हैं। वे चाहतें हैं कि भर्ती रद्द हो जाए। उनका नाम उजागर न हो। न्याय तभी होगा, जब अंतिम कड़ी तक जांच होकर उन गलत तरीके से आए लोगों को इस भर्ती से अलग किया जाए। इस भर्ती में प्रत्येक उस अभ्यर्थी को बाहर किया जाना चाहिए। जिसका फर्जी तरीके से चयन हुआ है। उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी सबक ले सके।

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पूरी भर्ती प्रक्रिया निरस्त नहीं होनी चाहिए। क्योंकि चयनित हुए प्रत्येक योग्य उम्मीदवार ने अपने जीवन के चार साल इस भर्ती को दिए हैं। 2021 से 2024 के बीच अन्य भर्ती की तैयारी भी नहीं की। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी NEET परीक्षा के बारे में नकल से सिलेक्ट हुए अभ्यर्थियों को ही बाहर किया।

ट्रेनी एसआई की अपील

  1. इस भर्ती में 65% अभ्यर्थी केंद्र और राज्य सरकार की नौकरी छोड़ कर SI पद पर नियुक्त हुए हैं। इनमें अधिकतर का प्रोबेशन पीरियड भी पूरा नहीं हुआ है। उनका क्या होगा वे पुनः उस नौकरियों में भी नहीं जा सकते।
  2. 4 साल इसमें खर्च करने के बाद अगर बाहर कर दिए जाते हैं। योग्य व ईमानदार अभ्यर्थियों के भविष्य का क्या होगा? उनका परिवार, यहां तक का उनकी पीढ़ियां भी प्रभावित होंगी उनका क्या होगा ?
  3. SI पद अनुरूप शादी तय हुई या शादी हो गयी उनका क्या होगा ?
  4. परीक्षा के समय जो अभ्यर्थी TSP वर्ग में था। अब उसकी शादी होने से NON TSP में चला गया। कोई महिला विधवा कोटे से लगी थी। अब उसने शादी कर ली उनका क्या होगा ?
  5. 2021 के समय जो लिखित व फिजिकल परीक्षा उसने पास की थी। क्या 4 वर्ष बाद अब वह संभव हो पाएंगी ?
  6. SOG ने शक के आधार पर एक ट्रेनी सब इंस्पेक्टर हरिओम पाटीदार मेरिट क्रमांक 645 को उठा लिया था। कोर्ट में पेश कर जेल भी भेज दिया गया था। लेकिन जब जांच में निर्दोष पाया गया तो स्वयं SOG ने इसकी हाईकोर्ट से जमानत करवाई थी। अभी वह वर्तमान में पुनः प्रशिक्षण में शामिल है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि SOG दोषी और निर्दोष की पहचान कर सकती है। SOG चाहे तो प्रत्येक ट्रेनी सब इंस्पेक्टर को एक बार अपनी कस्टडी में लेकर नार्को/ पॉलीग्राफ़ टेस्ट के मार्फत पूछताछ कर ले। हम सभी प्रकार के नार्को एवं पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए भी तैयार हैं। यदि उसकी जांच में दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ चाहे जैसी कार्रवाई करें। किसी को कोई आपत्ति नहीं रहेगी और निर्दोष है तो वापस ट्रेनिंग सेंटर भेज दिया जाए।

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भारत के सबसे बड़े दानवीर, नेक दिल कारोबारी रतन टाटा को अंतिम जोहार

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 10 अक्टूबर 2024 | मुंबई : भारत के सबसे पुराने कारोबारी समूह के मुखिया रतन टाटा का निधन हो गया है। वे टाटा संस के मानद चेयरमैन थे। उन्होंने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। उन्हें बुधवार को ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 7 अक्टूबर को भी उन्हें अस्पताल जाने की खबर आई थी, लेकिन उन्होंने पोस्ट करके कहा था कि वे ठीक हैं और चिंता की कोई बात नहीं है।

भारत के सबसे बड़े दानवीर, नेक दिल कारोबारी रतन टाटा को अंतिम जोहार

पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा की अगुआई में ही टाटा ग्रुप ने देश की सबसे सस्ती कार लॉन्च की, तो हाल ही में कर्ज में फंसी एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ की कैश डील में खरीदा था। बिजनेस में बेहद कामयाब रतन टाटा निजी जिंदगी में बेहद सादगी पसंद थे और मुंबई में अपने छोटे से फ्लैट में रहते थे।

भारत के सबसे बड़े दानवीर, नेक दिल कारोबारी रतन टाटा को अंतिम जोहार

माता-पिता बचपन में अलग हुए, दादी ने परवरिश की

  • 28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर जन्मे रतन टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा के परपोते थे। उनका परिवार पारसी धर्म से है। उनके माता पिता बचपन में ही अलग हो गए थे और दादी ने उनकी परवरिश की थी। 1991 में उन्हें टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था।
  • रतन टाटा की चार बार शादी होते-होते रह गई। टाटा बताते हैं कि एक बार तो शादी हो ही गई होती, जब वो अमेरिका में थे। उसी समय उनकी दादी ने उन्हें फोन करके बुला लिया। उसी समय भारत-चीन युद्ध छिड़ जाने की वजह से वे अमेरिका नहीं जा के। कुछ समय बाद उस लड़की ने किसी और से शादी कर ली।

21 साल चेयरमैन रहे, टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना बढ़ा

  • 1962 में फैमिली बिजनेस जॉइन किया था। शुरुआत में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया। इसके बाद वे मैनेजमेंट पोजीशन्स पर लगातार आगे बढ़े। 1991 में, जे.आर.डी. टाटा ने पद छोड़ दिया और ग्रुप की कमान रतन टाटा को मिली।
  • 2012 में 75 वर्ष के होने पर, टाटा ने एग्जीक्यूटिव फंक्शन छोड़ दिए। उनके 21 वर्षों के दौरान, टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना बढ़ गया। इसमें अधिकांश रेवेन्यू जगुआर-लैंडरोवर व्हीकल्स और टेटली जैसे पॉपुलर टाटा उत्पादों की विदेशों में बिक्री से आया।
  • चेयरमैन का पद छोड़ने के बाद उन्होंने 44 साल के साइरस मिस्त्री को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका परिवार ग्रुप में सबसे बड़ा इंडिविजुअल शेयरहोल्डर था। हालांकि, अगले कुछ वर्षों में, मिस्त्री और टाटा के बीच तनाव बढ़ गया।
  • अक्टूबर 2016 में, चार साल से भी कम समय के बाद, मिस्त्री को रतन टाटा के पूर्ण समर्थन के साथ टाटा के बोर्ड से बाहर कर दिया गया। फरवरी 2017 में नए उत्तराधिकारी का नाम घोषित होने तक टाटा ने चेयरमैन के रूप में अपना पद वापस ले लिया।

कम बात करते थे, बुक लवर और कारों के शौकीन

  • टाटा को बचपन से ही कम बातचीत पसंद थी। वे केवल औपचारिक और जरूरी बात ही करते थे। वे बुक लवर थे और उन्हें सक्सेस स्टोरीज पढ़ना बहुत पसंद था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद वे अपने इस शौक को समय दे रहे हैं।
  • वे 60-70 के दशक के गाने सुनना पसंद करते थे। वे कहते थे, ‘मुझे बड़ी संतुष्टि होगी अगर मैं शास्त्रीय संगीत बजा पाऊं। मुझे शॉपेन पसंद है। सिम्फनी भी अच्छी लगती है। बिथोवन, चेकोस्की पसंद हैं, पर मुझे लगता है कि काश मैं खुद इन्हें पियानो पर बजा सकता।’
  • कारों के बारे में पूछने पर टाटा ने बताया था कि मुझे कारों से बहुत लगाव है। उन्होंने कहा था ‘मुझे पुरानी और नई दोनों तरह की कारों का शौक है। खासतौर पर उनकी स्टाइलिंग और उनके मैकेनिज्म के प्रति गहरा रुझान है। इसलिए मैं उन्हें खरीदता हूं, ताकि उन्हें पढ़ सकूं।’

50 साल छोटे दोस्त को खुद ड्राइव कर डिनर पर ले गए

शांतनु नायडू (बाएं) रतन टाटा के सबसे करीबी दोस्त रहे। वे टाटा ग्रुप के जनरल मैनेजर हैं।

शांतनु नायडू (बाएं) रतन टाटा के सबसे करीबी दोस्त रहे। वे टाटा ग्रुप के जनरल मैनेजर हैं।
  • रतन टाटा के सबसे करीबी माने जाने वाले 30 साल के शांतनु नायडू ने भास्कर से बातचीत में उनके व्यक्तित्व के कई पहलू साझा किए थे। शांतनु टाटा ग्रुप के जनरल मैनेजर हैं। उन्होंने बताया कि मैं टाटा के साथ डिनर करने गया था। वे खुद कार चलाकर मुझे मुंबई के ‘थाई पवेलियन’ ले गए थे। डिनर के दौरान मैंने टाटा से कहा, जब मैं ग्रेजुएट हो जाऊंगा, तो क्या आप मेरे दीक्षांत समारोह में आएंगे? इस पर टाटा ने कहा कि मैं पूरी कोशिश करूंगा और वे आए भी।
  • शांतनु ने कहा कि मैं कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में MBA करने अमेरिका जा रहा था, तब उनसे पहली बार मिला। उन्होंने मेरी चोट देखकर मजाक में कहा था ‘किसी डॉग ने काट लिया?’ तुरंत ही माफी मांगने लगे और कहा, बहुत खराब जोक था।

COVID-19 महामारी के समय 500 करोड़ रुपए दान दिये

रतन टाटा, ग्रुप की परोपकारी शाखा, टाटा ट्रस्ट में गहराई से शामिल थे। टाटा ग्रुप की यह आर्म शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास जैसे सेक्टर्स में काम करती है।

अपने पूरे करियर के दौरान, रतन टाटा ने यह तय किया कि टाटा संस के डिविडेंड का 60-65% चैरिटेबल कॉज के लिए इस्तेमाल हो। रतन टाटा ने COVID-19 महामारी से लड़ने के लिए 500 करोड़ रुपए का दान दिया था।

रतन टाटा ने एक एग्जीक्यूटिव सेंटर की स्थापना के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को 50 मिलियन डॉलर का दान दिया था। वे यहीं से पढ़े थे। उनके योगदान ने उन्हें विश्व स्तर पर सम्मान दिलाया, एक परोपकारी और दूरदर्शी के रूप में उनकी विरासत को और बढ़ाया है।

रतन टाटा की 7 तस्वीरें

1945 की तस्वीर रतन टाटा (बाएं) अपने भाई जिम्मी के साथ। यह तस्वीर उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर 10 जनवरी 2023 को शेयर करते हुए लिखा था- वो खुशी के दिन थे।

1945 की तस्वीर रतन टाटा (बाएं) अपने भाई जिम्मी के साथ। यह तस्वीर उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर 10 जनवरी 2023 को शेयर करते हुए लिखा था- वो खुशी के दिन थे।

यह तस्वीर तब ली गई थी जब रतन टाटा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में छात्र थे। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में, उन्होंने लिखा था कि वे यूनिवर्सिटी में अपने समय के दौरान सीखे लेसन्स से उत्साहित हैं।

यह तस्वीर तब ली गई थी जब रतन टाटा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में छात्र थे। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में, उन्होंने लिखा था कि वे यूनिवर्सिटी में अपने समय के दौरान सीखे लेसन्स से उत्साहित हैं।

JRD टाटा ने करीब 50 साल तक ग्रुप का नेतृत्व करने के बाद रतन नवल टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

JRD टाटा ने करीब 50 साल तक ग्रुप का नेतृत्व करने के बाद रतन नवल टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

रतन टाटा ने "भारत की पहली स्वदेशी कार, द टाटा इंडिका" की लॉन्चिंग के दौरान तस्वीरें खिंचवाईं।

रतन टाटा ने “भारत की पहली स्वदेशी कार, द टाटा इंडिका” की लॉन्चिंग के दौरान तस्वीरें खिंचवाईं।

रतन टाटा जेआरडी टाटा के साथ। रतन टाटा अपने ग्रुप को लेकर कहते थे- वहां के वर्क्स और सुपवाइजर दोनों से मिले प्यार और स्नेह को एन्जॉय किया।

रतन टाटा जेआरडी टाटा के साथ। रतन टाटा अपने ग्रुप को लेकर कहते थे- वहां के वर्क्स और सुपवाइजर दोनों से मिले प्यार और स्नेह को एन्जॉय किया।

अपने इंस्टाग्राम पेज पर, रतन टाटा ने इस तस्वीर के बारे में डिटेल में लिखा है- यह तब ली गई थी जब वे कॉलेज से छुट्टी पर थे।

अपने इंस्टाग्राम पेज पर, रतन टाटा ने इस तस्वीर के बारे में डिटेल में लिखा है- यह तब ली गई थी जब वे कॉलेज से छुट्टी पर थे।

रतन टाटा F-16 पर उड़ान भरने वाले पहले भारतीय नागरिक थे। वे लगभग 40 मिनट तक अमेरिकी वायु सेना के ब्लॉक 50 से संबंधित लड़ाकू विमान के को-पायलट रहे थे।

रतन टाटा F-16 पर उड़ान भरने वाले पहले भारतीय नागरिक थे। वे लगभग 40 मिनट तक अमेरिकी वायु सेना के ब्लॉक 50 से संबंधित लड़ाकू विमान के को-पायलट रहे थे।

156 साल पहले टाटा ग्रुप की स्थापना: इसके प्रोडक्ट्स सुबह से शाम तक हमारी जिंदगी का हिस्सा

टाटा ग्रुप की स्थापना जमशेदजी टाटा ने 1868 में की थी। यह भारत की सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी है, इसकी 30 कंपनियां दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 10 अलग-अलग बिजनेस में कारोबार करती हैं। अभी एन चंद्रशेखरन इसके चेयरमैन हैं।

टाटा संस टाटा कंपनियों की प्रिंसिपल इन्वेस्टमेंट होल्डिंग और प्रमोटर है। टाटा संस की 66% इक्विटी शेयर कैपिटल उसके चैरिटेबल ट्रस्ट के पास हैं, जो एजुकेशन, हेल्थ, आर्ट एंड कल्चर और लाइवलीहुड जनरेशन के लिए काम करता है।

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2023-24 में टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों का टोटल रेवेन्यू 13.86 लाख करोड़ रुपए था। यह 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है। इसके प्रोडक्ट्स सुबह से शाम तक हमारी जिंदगी में शामिल हैं। सुबह उठकर टाटा चाय पीने से लेकर टेलीविजन पर टाटा बिंज सर्विस का इस्तेमाल, और टाटा स्टील से बने अनगिनत उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं।

रतन टाटा कहते थे…’सबसे बड़ा जोखिम, जोखिम नहीं उठाना है’

  • ‘अगर आप तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलें। लेकिन अगर आप लंबी दूरी जाना चाहते हैं, तो साथ-साथ चलें।’
  • ‘लोग आप पर जो पत्थर फेंकते हैं, उन्हें लीजिए और उनका उपयोग मॉन्यूमेंट बनाने के लिए कीजिए।’
  • ‘मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं।’
  • धैर्य और दृढ़ता से चुनौतियों का सामना करें क्योंकि वे सफलता की आधारशिला हैं।’
  • ‘सबसे बड़ा जोखिम,जोखिम नहीं उठाना है। तेजी से बदलती दुनिया में एक ही स्ट्रैटेजी है जो नाकाम बना सकती है, वह है जोखिम न उठाना।’

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