जयपाल सिंह मुंडा को भारतरत्न दें केंद्र सरकार – प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 06 जुलाई 2024 | जयपुर : मूर्धन्य शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने महामहिम राष्ट्रपति और केंद्र सरकार से माँग कि है कि भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा।

महान, दूरदर्शी और  विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक पक्षधरों में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारत की जनजातियों के लिए वही है, जो बाबा साहब अंबेडकर का अनुसूचित जातियों के लिए है।

भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा

आदिवासियों के लिहाज़ से कई मायनों में जयपाल सिंह मुंडा के योगदान उनसे ज्यादा भी कहा जा सकता है। 1928 के एमस्टर्डम ओलंपिक खेलों में भारत को पहली बार हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ही थे। जिन्होंने ने संविधान सभा में ताल थोक कर कहा था ‘मुझे गर्व है, मैं जंगली हूँ।’

ध्यातव्य हो कि उनके व्यक्तित्व और योगदान खिलाड़ी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उतना ही महान है। उनकी शैक्षणिक विद्वता का एक प्रमाण यह भी है कि उन्होंने जिस साल भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया, उसी साल उन्होंने आईसीएस की परीक्षा भी पास करके दिखाई, वह परीक्षा जिसे कविगुरु रवींद्रनथ ठाकुर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ ठाकुर,  सुभाषचंद्र बोस और खुद जयपाल सिंह मुंडा ही पास कर पाये थे।

आदिवासी परिवार में 3 जनवरी, 1903 को राँची जिले के खुंटी सब डिवीज़न में तपकरा गाँव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान हॉकी की अपनी प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना आरंभ कर दिया था।

इसी कारण उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गयी थी। बाद में, अंग्रेज उन्हें भारत में धार्मिक प्रचार  के काम में लगाना चाहते थे, लेकिन जयपाल सिंह ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

मरांग गोमके  यानी  ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन करके आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। मध्य-पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने अलग आदिवासी राज्य बनाने की माँग की।

उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे। उनकी माँग पूरी नहीं हुई, जिसका नतीजा यह हुआ कि इन इलाकों में शोषण के खिलाफ नक्सलवाद जैसी समस्याएँ पैदा हुईं, जो आज तक देश के लिए परेशानी बनी हुई है।

जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के लिए सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे। संविधान सभा के लिए जब वे बिहार प्रांत से निर्वाचित हुए तो उन्होंने आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए उल्लेखनीय  प्रयास किये जिनका जिक्र आज भी बड़े सम्मान और चाव से किया जाता है।

अगस्त 1947 में जब अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों पर पहली रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो उसमें केवल दलितों के लिए ही विशेष प्रावधान किये गये थे।  दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए जयपाल सिंह मुंडा और डॉ अंबेडकर ने एक स्वर में आवाज बुलंद की थी। ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा ने कड़े तेवर दिखाये और संविधान सभा में ज़ोरदार भाषण दिया।

संविधान सभा की गर्म और तीखी हो चुकी बहस के बीच अचानक ‘संविधान सभा में आदिवासियों के प्रतिनिधि के रूप में जयपाल मुंडा उठ खड़े होते हैं । काफी संजीदगी लेकिन बुलंद आवाज में कहते हैं कि ‘सिंधु-लोक मेरी विरासत है।  मैं भूला दिये गये उन हजारों अज्ञात योद्धाओं की ओर से बोल रहा हूँ जो आजादी की लड़ाई में आगे रहे ।

लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं है । देश के इन्हीं मूल निवासियों को बहस में कई महाशयों (मावलंकर आदि) ने पिछड़ी  जनजाति, आदिम जनजाति, जंगली, अपराधी कहा है ।  जयपाल सिंह ने अपने ‘आदिम लोगों’ की शिकायतों को स्वर देने में कोई कोताही नहीं बरती।

महाशय, मैं बताना चाहता हूँ कि ‘आपकी  भाषा में मैं जंगली हूँ, और मुझे जंगली होने पर गर्व है । उनका कहना था कि ‘उनके लोगों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है … उनका निरादार हो रहा है और पिछले 6000 सालों से उनकी उपेक्षा की जा रही है।’ कब और कैसे यह सब शुरू हुआ?

आदिवासी लोगों के अपमान और उनकी उपेक्षा के लिए जिम्मेदार ये लोग कौन हैं? उन्होंने कहा ‘आज़ादी की इस लड़ाई में हम सबसे आगे थे, हमने अंग्रेजों से लोहा लेने का साहस देश को दिया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली जनक्रांति कहे जाने वाले संथाल विद्रोह के नायक सिद्धू-कान्हो और उनके परिजनों के लिए उनकी लड़ाई अन्याय ही नियति बनी।’

आप तो बाहर से आये हुए लोग हैं, दिकु हैं, जो देश के संसाधनों को कब्जाने की जुगत में हैं।  तिलका माँझी, सिदो-कान्हू, बिरसा मुंडा से लेकर देश की आजादी तक लड़ाई लड़ी, पर उनको मिला क्या ? तिरस्कारपूर्ण जीवन! शोषण-अत्याचार और ऊपर से आपकी बदनीयती, अब सबको एक साथ चलना चाहिए।

पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं।  उन्हें मैदानों से खदेड़कर जंगलों में धकेल दिया गया और हर तरह से प्रताड़ित किया गया, लेकिन अब जब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।”

जयपाल सिंह के सशक्त हस्तक्षेप के बाद संविधान सभा को आदिवासियों के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा। इसका नतीजा यह निकला कि 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। उस समय इनकी आबादी करीब 7 फीसदी आँकी गयी थी। इस लिहाज से उनके लिए लोकसभा-विधानसभाओं में उनके लिए 7.5% आरक्षण और सामाजिक-आर्थिक न्याय पाने के लिए  नौकरियों  में प्रतिनिधित्व  सुनिश्चित किया गया।

यह समीचीन है कि राजनीतिक आरक्षण की समय-सीमा 10 वर्ष राखी गयी किंतु, नौकरियों में कोई भी समय-सीमा नहीं रखी गयी थी । दुर्भाग्यवश, कुछ संकीर्णतावादी मानसिकताओं ने प्रतिनिधित्व को आरक्षण में तब्दील करने की कोशिशें जोर-शोर से हो रही हैं।  किंतु, प्रतिनिधित्व का सवाल तब तक जारी रहेगा जब तक जाति-व्यवस्था जारी रहेगी क्योंकि जातीय-सोच की वजहों से प्रतिनिधित्व का सवाल उपजा है। वस्तुत: आरक्षण और प्रतिनिधित्व में फर्क है, आरक्षण वह है जो हजारों वर्षों मंदिरों में लिया जा रहा है। आरक्षण वह है जो न्यायपालिका में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लिया जा रहा है।

इसके बाद आदिवासी हितों की रक्षा के लिए जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में झारखंड पार्टी का गठन किया। 1952 में झारखंड पार्टी को काफी सफलता मिली थी। उसके 3 सांसद और 23 विधायक जीते थे। स्वयं जयपाल सिंह लगातार चार बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे थे। बाद में, झारखंड के नाम पर बनी तमाम पार्टियाँ उन्हीं के विचारों से प्रेरित हुईं।  

पूर्वोत्तर के आदिवासियों में फैले असंतोष को उस समय भी जयपाल सिंह मुंडा पहचान रहे थे। नागा आंदोलन के जनक जापू पिजो को भी उन्होंने झारखंड की ही तर्ज पर अलग राज्य की माँग के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन पिजो सहमत नहीं हुए। इसी का नतीजा ये रहा कि आज तक नागालैंड उपद्रवग्रस्त इलाका बना हुआ है।

जयपाल सिंह मुंडा के ही कारण आदिवासियों  (उनको इच्छाओं के विरुद्ध जनजातियों)  को  संविधान में कुछ विशिष्ट अधिकार मिल सके, हालाँकि, व्यवहार में उनका शोषण अब भी जारी है। खासकर, भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले राज्यों; छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और गुजरात में तो इनके सामूहिक खात्मे का अभियान छिड़ा हुआ है। उनके जल, जंगल, जमीन को छिनने की कुत्सित-मानसिकताओं द्वारा  सरदार पटेल तक का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

किसी को भी नक्सली बताकर गोली से उड़ा दिये जाने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। यह दु:खद स्थिति खत्म करने के लिए एक बार फिर से जयपाल सिंह मुंडा की विचारधारा का अनुसरण किये जाने की जरूरत है। पूरे जीवन आदिवासी हितों के लिए लड़ते-लड़ते 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का निधन हो गया। दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद उन्हें विस्मृत कर दिया गया।

यह अत्यंत दु:ख की बात है कि आज जिनका कोई इतिहास नहीं है, उन्हें इतिहास के पन्नों से खोज- निकालकर नया इतिहास लिखने की कवायद आरंभ हो चुकी है, जबकि आदिवासियों के सबसे बड़े हितैषी  जयपाल सिंह मुंडा को नई पीढ़ी के लोग जानते तक नहीं हैं। उन्हें साजिशन विस्मृत किया जा रहा है।

जब छोटे-छोटे राजनीतिक हितों के लिए लड़ने वाले राजनेताओं और धन के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों  तक को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है, ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा जैसे बहुआयामी व्यक्ति के लिए भारत रत्न की माँग तक कहीं सुनाई नहीं देती है। उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए।

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जयपुर में MNIT और महारानी कॉलेज की दो दलित छात्राओं ने की आत्महत्या

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 फरबरी 2025 | जयपुर : जयपुर में एक और कॉलेज गर्ल ने सुसाइड किया है। करीब दस दिन पहले मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमएनआईटी) कैंपस में एक छात्रा ने हॉस्टल की छत से कूद कर जान दे दी थी। अब राजस्थान विश्वविद्यालय के कैंपस में बने माही छात्रावास में रहने वाली एक छात्रा ने सुसाइड कर लिया।

जयपुर में MNIT और महारानी कॉलेज की दो दलित छात्राओं ने की आत्महत्या

गांधी नगर पुलिस को शनिवार शाम को घटना की जानकारी मिली। पुलिस मौके पर पहुंची तो देखा कि हॉस्टल के पहली मंजिल पर बने कमरे में छात्रा फंदे से लटक रही थी। छात्रा को उतार कर अस्पताल पहुंचाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

जयपुर में MNIT और महारानी कॉलेज की दो दलित छात्राओं ने की आत्महत्या

जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने शनिवार को हॉस्टल में सुसाइड कर लिया। छात्रा का शव हॉस्टल के कमरे में फंदे से लटका मिला। छात्रा फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी। छात्रा के आत्महत्या की खबर सामने आते ही पूरे कैंपस में सनसनी फैल गई। तुरंत स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची और छानबीन शुरू की। मिली जानकारी के अनुसार सुसाइड की यह घटना राजस्थान यूनिवर्सिटी के माही हॉस्टल में हुई।

माही हॉस्टल में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट ने की सुसाइड

माही छात्रावास राजस्थान यूनिवर्सिटी की छात्राओं के लिए आवंटित है। यहां शनिवार को दोपहर बाद एक छात्रा के आत्महत्या की जानकारी सामने आई। सुसाइड करने वाली छात्रा की पहचान महारानी कॉलेज के फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट के रूप में हुई है। छात्रा ने अपने कमरे में पंखे से कपड़े का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।

सुसाइड के कारणों की नहीं मिली जानकारी

पुलिस मामले की छानबीन में जुटी है। इधर छात्रा की खुदकुशी पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। छात्रा ने सुसाइड क्यों किया, इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है। मालूम हो कि बीते दिनों माही हॉस्टल में वॉर्डन के व्यवहार सहित अन्य मुद्दों पर छात्राओं ने प्रदर्शन भी किया था।

महारानी कॉलेज में पढ़ाई करती थी छात्रा

माही हॉस्टल में सुसाइड करने वाली छात्रा की पहचान सारिका बुनकर के रूप में हुई है। सारिका महारानी कॉलेज में बीएससी फर्स्ट ईयर की छात्रा थी। सारिका मूल रूप से दिल्ली रोड स्थित मनोहरपुर की रहने वाली थी। बताया जाता है कि छात्रा ने सुसाइड से पहले परिवार को फोन भी किया था।

युवती का मोबाइल लॉक, परिजनों की दी गई सूचना

घटना के बारे में गांधी नगर थानाधिकारी आशुतोष ने बताया- सुसाइड की घटना की जानकारी मिलने पर मौके पर पहुंचे। परिवार को घटना की जानकारी दी है. युवती का मोबाइल लॉक है। परिवार के आने के बाद अन्य चीजों पर काम किया जायेगा। हॉस्टल में सारिका के साथ रहने और पढ़ने वाली छात्राओं से भी पूछताछ की जा रही है।

कमरे से नहीं मिला कोई सुसाइड नोट

बताया गया कि शाम करीब 4 बजे सारिका के कमरे का गेट नहीं खोलने पर दूसरी छात्राओं ने वॉर्डन को जानकारी दी। इस पर वॉर्डन ममता जैन गार्ड को लेकर कमरे में पहुंची और गेट तोड़कर अंदर गए तो सारिका फंदे से लटकी मिली। कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. मामले की जांच जारी है।

राजस्थान विश्वविद्यालय की छात्राओं का धरना-प्रदर्शन जारी है. गुरुवार रात भी छात्राएं कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे प्रदर्शन करती नजर आई। अब छात्राओं का यह प्रदर्शन और तेज हो सकता है, क्योंकि गुरुवार रात NSUI के प्रदेशाध्यक्ष विनोद जाखड़ ने आंदोलनरत छात्राओं से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद विनोद जाखड़ ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगाये। साथ ही कहा कि विवि प्रशासन का रवैया तानाशाही है।

दरअसल राजस्थान विश्वविद्यालय के माही गर्ल्स हॉस्टल में नई वार्डन की नियुक्ति के मुद्दे पर छात्राएं कड़ाके की सर्दी में कुलपति सचिवालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। छात्राओं का कहना है कि यह नियुक्ति उनके हितों और भावनाओं के खिलाफ है।

पाली की लड़की ने किया था सुसाइड

दस दिन पहले जवाहर लाल नेहरू मार्ग स्थित एमएनआईटी में पढ़ने वाली छात्रा ने हॉस्टल की छत से कूद कर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट भी मिला। उसमें लिखा था कि ‘गलती मेरी ही है। मैं ही इस दुनिया में नहीं जी सकती। सबसे ज्यादा खुश मैं या तो बचपन में या नींद में थी।’ मृतक छात्रा 21 वर्षीय दिव्या राज मेघवाल थी जो कि पाली जिले की रहने वाली थी। वह एमएनआईटी में बीआर्क (आर्किटेक्चर) फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी।

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मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 26 जनवरी 2025 | जयपुर :  हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने यूथ फॉर इक्वलिटी की वह याचिका मंगवार को निरस्त कर दी, पूर्व में जिसकी सुनवाई करते हुए 87 : 13 का फार्मूला तैयार किया गया था।

मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

मध्य प्रदेशमें ओबीसी आरक्षण पर बड़ा अपडेट आया है। एमपी हाईकोर्ट ने मंगलवार (28 जनवरी) को मामले में सुनवाई करते हुए 87:13 का फार्मूला रद्द कर दिया। कोर्ट के इस फैसले से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के लिए 27 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। 

मध्यप्रदेश 27% OBC आरक्षण का रास्ता साफ, एमपी हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 87:13 फॉर्मूला रद्द

दरअसल, मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षाण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किया था, लेकिन कुछ लोगों इसे नियम विरुद्ध बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार ने कोर्ट विवाद का हवाला देकर सरकारी विभागों में होने वाली नियुक्तियों में ओबीसी के 13 फीसदी पद होल्ड करने लगी। 

यूथ फार इक्वलिटी की याचिका खारिज

यूथ फार इक्वलिटी ने ओबीसी आरक्षण को संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन बताते हुए कोर्ट में याचिका दायर की थी। कहा,  यह समानता के अधिकार को प्रभावित करता है। हाईकोर्ट ने उनके इस तर्क को खारिज कर याचिका निरस्त कर दी। 

क्या कहते हैं कानून विशेषज्ञ? 

  • सीनियर अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि सरकार ने 4 अगस्त, 2023 को महाधिवक्ता के अभिमत पर सभी भर्तियों में 87 : 13 का फार्मूला लागू किया था। हाईकोर्ट ने उस याचिका को ही निरस्त कर दिया है, जिस आधार पर  87 : 13 का यह फार्मूला लागू किया या था। 
  • याचिका निरस्त होने के बाद न सिर्फ सरकार को आरक्षण के तहत काम करने में स्पष्टता मिलेगी। बल्कि भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता आएगी। 
  • सरकारी नौकरियों में होल्ड 13 फीसदी पदों पर भी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो गया। अब विभिन्न विभागों के होल्ड पदों पर भी नियुक्तियां की जाएंगी।  

87 : 13 का फार्मूले के कारण शेष पदों पर लंबित थी भर्तियां

वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि महाधिवक्ता के अभिमत के कारण चार अगस्त, 2023 को हाई कोर्ट ने समस्त भर्तियों में 87 : 13 का फार्मूला लागू किया था। हाईकोर्ट का यह आदेश राज्य में आरक्षण से संबंधित विवाद को समाप्त करने और भर्ती प्रक्रिया को सुचारु रुप से शुरु करने के लिए एक अहम कदम है।

इससे सरकार को आरक्षण नीति के तहत काम करने की स्पष्टता मिलेगी और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही प्रदेश में रुकी हुई सभी भर्तियों को अनहोल्ड करने का रास्ता साफ हो गया है।

सरकार अब ओबीसी आरक्षण के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करते हुए भर्तियों को तेजी से आगे बढ़ा सकती है। इससे ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को बड़ा लाभ मिलेगा, जो लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।

27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी

यूथ फार इक्वलिटी द्वारा दायर याचिका में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह आरक्षण संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन करता है और समानता के अधिकार को प्रभावित करता है। हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए याचिका को अस्वीकार कर दिया।

हाई कोर्ट ने मंगलवार के आदेश में चार अगस्त, 2023 के आदेश को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई बाधा नहीं है। कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य में रुकी हुई सभी भर्तियों को फिर से शुरु करने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले से उन लाखों उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जिनकी भर्तियां कोर्ट के आदेश के चलते होल्ड पर थीं।

87-13 फॉर्मूले को हाईकोर्ट ने किया रद्द

अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ने बताया कि याचिका के आदेश 4 अगस्त 2023 के अधीन 87-13 फॉर्मूला निर्धारित किया गया था। जिसे आज उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। उन्होंने बताया कि जिन नियुक्तियों को 13 प्रतिशत के दायरे में लेकर होल्ड कर दिया गया था। उन सभी पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु की जाएगी।

दरअसल, 4 अगस्त 2023 में हाईकोर्ट के द्वारा एक अंतरिम आदेश के तहत राज्य सरकार को 87%-13% का फॉर्मूला लागू करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के बाद से प्रदेश में सभी भर्तियां ठप्प कर दी गई थी।

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सरकार के द्वारा यह फॉर्मूला महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर तैयार किया था। जिसके तहत 87 प्रतिश अनारक्षित और 13 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए रखी गई थी। जिसके चलते 27 फीसदी आरक्षण मांगने वाले उम्मीदवारों में भारी आक्रोश देखा गया था।

रुकी हुई भर्तियों का रास्ता होगा साफ

हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में रुकी हुई भर्तियों को अनहोल्ड करने का रास्ता साफ हो गया है। सरकार के द्वारा 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू करके भर्तियां बढ़ा सकती हैं। जिससे ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों को बड़ा फायदा मिल सकता है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग कीजिए 

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