मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 जुलाई 2024 | जयपुर : देशभर में यूनिवर्सिटी और उनसे संबद्ध महाविद्यालयों में अब रोस्टर प्रणाली से शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। इसके लिए शैक्षणिक संस्थान को आरक्षण के अनुरूप अपना भर्ती रोस्टर बनाना होगा। उसी के अनुरूप भर्ती करनी होगी।
‘यूनिवर्सिटी और कॉलेज अब 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली से ही शिक्षक भर्ती करेंगे’ यूजीसी
यूजीसी को भरे हुए और रिक्त पदों की सूचना 31 जुलाई तक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भेजनी होगी। यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को पोर्टल पर यह जानकारी भी देनी होगी कि कितने पद रिक्त हैं, अभी तक पदों पर भर्ती क्यों नहीं की और क्या प्रयास किए जा रहे हैं। यूजीसी के इस पत्र के बाद राज्य सरकार की स्टेट यूनिवर्सिटी-कॉलेज सहित निजी यूनिवर्सिटी में भी हलचल शुरू हो गई है। कारण है कि राजस्थान की अधिकतर यूनिवर्सिटी में रोस्टर नहीं बने हैं।
दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव मनीष जोशी की ओर से हाल ही एक सर्कुलर जारी किया गया है। इसमें यूजीसी के सभी निजी एवं राजकीय विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध महाविद्यालयों को निर्देश दिए हैं कि उच्च शैक्षणिक संस्थान को आरक्षण के अनुरूप अपना भर्ती रोस्टर बनाना होगा। उसी के अनुरूप जल्द भर्ती करनी होगी।
सभी भर्तियां व रोस्टर का निर्धारण विश्वविद्यालय के एक्ट के अनुरूप किया जाना है। यूजीसी को भरे हुए और रिक्त पदों की सूचना 31 जुलाई तक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भेजनी होगी। यूजीसी ने अपने सर्कुलर में स्पष्ट किया कि रोस्टर में सामान्य, एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस के साथ पीडब्ल्यूडी कैटेगिरी को भी शामिल करना होगा।
क्या है 13-पॉइंट रोस्टर?
13-पॉइंट रोस्टर सिस्टम में 13 पदों को क्रमबद्ध तरीके से दर्ज किया जाता है और इसके तहत यूनिवर्सिटी को यूनिट न मानकर डिपार्टमेंट को यूनिट माना जाता है। मान लीजिये, किसी एक डिपार्टेमेंट में 13 वैकेंसीज़ निकलती हैं, तो चौथा, आठवाँ और बारहवाँ उम्मीदवार OBC होगा अर्थात् एक OBC की नियुक्ति के लिये कम-से-कम 4 वैकेंसीज़ होनी चाहिये। इसी तरह सातवाँ कैंडिडेट SC कैटेगरी का होगा और 14वाँ कैंडिडेट ST होगा। शेष सभी पद अनारक्षित होंगे। इसके आधार पर प्रत्येक चौथे, सातवें, आठवें, 12वें और 14वें रिक्त पद को 13-पॉइंट रोस्टर में क्रमशः OBCs, SCs, OBCs, OBCs, STs के लिये आरक्षित किया जाता है। अर्थात् पहले तीन पदों के लिये कोई आरक्षण नहीं है और 14 पदों के पूर्ण चक्र में भी केवल पाँच पद या 35.7% आरक्षित वर्गों के लिये जाते हैं, जो संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% (27%+15%+7.5%) की सीमा से कम है।
कैसे निर्धारित किये जाते हैं आरक्षित पद?
किसी भी आरक्षित वर्ग को रोस्टर में मिलने वाले स्थानों का निर्धारण तय प्रतिशत से 100 को विभाजित करके किया जाता है। जैसे कि OBC कोटा 27% है…इसलिये उन्हें 100/27 = 3.7 हिस्सा मिलता है अर्थात् इस वर्ग के हर चौथे पद पर एक वैकेंसी बनती है।
इसी तरह SC को 100/15 = 6.66 यानी हर सातवें पद पर और ST को 100/7.5 = 13.33 यानी हर 14वीं वैकेंसी मिलती है। अतः किसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का प्रतिशत जितना कम होगा, उस वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित पद पर नियुक्त होने में उतना ही अधिक समय लगेगा।
इसके अलावा, हाल ही में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये नए 10% आरक्षण ने इस अंतर को और अधिक बढ़ा दिया है। ऐसा इसलिये है क्योंकि अब प्रत्येक 10वाँ पद (100/10 = 10) इस वर्ग के लिये आरक्षित है।
200-पॉइंट रोस्टर क्या है?
इसके अलावा एक और समस्या है, जो वास्तव में वर्तमान विवाद के केंद्र में है। विश्वविद्यालय के ऐसे छोटे विभागों में जहाँ कुल पदों की संख्या चार से कम है, उनमें 13-पॉइंट रोस्टर में कोई संभावना नहीं रहती, क्योंकि इसमें आरक्षण केवल चौथे पद के लिये होता है। ऐसे में OBC के केवल एक शिक्षक के बदले में ‘सामान्य श्रेणी’ से पाँच शिक्षकों को नियुक्त किया जा सकता है। इसीलिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% आरक्षण प्रदान करने के लिये UGC ने व्यक्तिगत विभागों के बजाय विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक ‘इकाई’ मानना शुरू कर दिया और इसके लिये ‘200-पॉइंट रोस्टर’ को अपनाया। यह 200-पॉइंट रोस्टर पहले से ही सभी केंद्रीय सरकारी सेवाओं में नियुक्तियों के लिये कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा उपयोग किया जा रहा था। इसे 200-पॉइंट रोस्टर इसलिये कहा जाता है क्योंकि सभी आरक्षित वर्गों को उनके लिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य निर्धारित कोटे के पद केवल तभी मिल सकते हैं, जब 200 वैकेंसीज़ भरी जाएँ। अब चूंकि किसी संस्थान में किसी एक विभाग में 200 सीटें नहीं हो सकती, इसलिये कोटे की गणना करने के लिये पूरे विभाग के बजाय संस्थान/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना गया।
13-पॉइंट और 200-पॉइंट रोस्टर में मुख्य अंतर
200-पॉइंट रोस्टर और 13-पॉइंट रोस्टर में सबसे बड़ा अंतर यह है कि 13-पॉइंट रोस्टर में 14 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4 शुरू हो जाता है, जो 14 नंबर पर जाकर फिर से खत्म हो जाता है। इसके विपरीत 200-पॉइंट रोस्टर में 1 नंबर से पद शुरू होकर 200 नंबर तक जाता है और 200 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 से क्रम शुरू होता है और 200 नंबर तक जाता है।
13-पॉइंट रोस्टर से कैसे बेहतर है 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम?
आरक्षण लागू करने के लिये 200-पॉइंट रोस्टर को 2014 तक सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने लागू कर दिया था। यह 13-पॉइंट रोस्टर से बेहतर है, क्योंकि 13-पॉइंट रोस्टर में आरक्षण अनिवार्य प्रतिशत के स्तर से बहुत कम रह जाता है, जबकि 200-पॉइंट रोस्टर में ऐसा नहीं होता, बशर्ते केवल 200 नियुक्तियाँ की जाएँ। यह संख्या थोड़ी भी कम या अधिक होने पर आरक्षण की मात्रा प्रभावित हो सकती है। 200-पॉइंट रोस्टर संवैधानिक रूप से मान्य 49.5% आरक्षण के व्यापक लक्ष्य को सुनिश्चित करता है क्योंकि एक विभाग में कोटे को हुआ घाटा दूसरे विभाग द्वारा पूरा किया जा सकता है।
प्रो. रावसाहब काले कमेटी की सिफारिशें
रोस्टर विवाद पहली बार 2006 में सामने आया था और उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालयों में OBC आरक्षण के तहत नियुक्तियों के सवाल के समाधान के लिये तत्कालीन सरकार के कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय ने UGC से यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू करने की खामियों को दूर करने का निर्देश दिया था। इस पर UGC के तत्कालीन चेयरमैन प्रोफेसर वी.एन. राजशेखरन पिल्लई ने प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालयों में आरक्षण फॉर्मूला तय करने के लिये तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में कानूनविद प्रोफेसर जोश वर्गीज और UGC के तत्कालीन सचिव डॉ आरके चौहान शामिल थे। इस कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. के. सभरवाल की पीठ द्वारा जुलाई 1997 में दिये गए फैसले के आधार पर कुछ दिशा-निर्देश बनाए। इनमें 200-पॉइंट का रोस्टर बनाया गया और इसमें किसी विश्वविद्यालय के सभी विभागों में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर का तीन स्तर पर कैडर बनाने की सिफारिश की गई थी। कमेटी ने विभाग की बजाय विश्वविद्यालय, कॉलेज को इकाई मानकर आरक्षण लागू करने की सिफारिश की, क्योंकि उक्त पदों पर नियुक्तियाँ विश्वविद्यालय करता है, न कि उसका विभाग।
1997 से ही केंद्रीय शिक्षण संस्थानों जिनमें सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, आईआईएम इत्यादि शामिल हैं। इन सभी में शिक्षकों की नियुक्ति में 200 पॉइंट्स रोस्टर विधि से आरक्षण लागू है और इसमें विश्वविद्यालय / संस्थानों को एक इकाई मानकर SC, ST और OBC अभ्यर्थियों को आरक्षण दिया जाता है।
जो क्रमश: 7.5% , 15% और 27% है। असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति के समय यह ध्यान रखा जाता है कि इस नियम का उल्लंघन न हो, क्योंकि इनके पद काफी कम होते हैं और इसीलिये रोस्टर सिस्टम लागू किया जाता है।
विवाद इस बात को लेकर था कि विश्वविद्यालय को इकाई माना जाए या विभाग को? सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सभी शिक्षण संस्थान 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम ही लागू करेंगे।
यदि ऐसा नहीं किया जाता तो SC, ST और OBC के योग्य अभ्यर्थियों के लिये असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर बनना कठिन हो जाता। इसमें भी सबसे ज़्यादा मुश्किल ST के उम्मीदवारों को होती क्योंकि प्रतिशत के आधार पर उनकी बारी काफी देर में आती।
ये है UGC के नियम
यूजीसी ने 2019 में ही एक पत्र जारी किया था। इसमें रोस्टर प्रणाली के तहत पद भरने के निर्देश दिए थे। लेकिन यूजीसी के पत्र का पालन नहीं किया गया। अब यूजीसी ने सख्त कार्यवाही की हिदायत देते हुए रोस्टर प्रणाली की पालना करने के निर्देश दिये हैं। पत्र में जार किये गये नियम कुछ इस प्रकार है
- UGC नियम के मुताबिक छात्रों और शिक्षकों का अनुपात 1:10 होना चाहिए। प्रत्येक विषय में कम से कम 3 सहायक आचार्य और 1 प्रोफेसर के पद पर स्टाफ की नियुक्ति की जानी चाहिए।
- नियम के अनुरूप एक भर्ती पैनल व मेरिट की वैधता 6 महीने से ज्यादा की न हो। उसके बाद खाली पदों पर नए आवेदन व पैनल बनायें जाये।
- भर्ती प्रक्रिया में स्क्रूटनिंग के बाद पैनल इंटरव्यू, एपीआइ के जरिए मेरिट लिस्ट तैयार की जाये।
- भर्ती UGC रेगुलेशन 2018 के मुताबिक की गई हो, शैक्षणिक स्टाफ पीएचडी या नेट हो।