‘यूनिवर्सिटी और कॉलेज अब 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली से ही शिक्षक भर्ती करेंगे’ यूजीसी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 जुलाई 2024 | जयपुर : देशभर में यूनिवर्सिटी और उनसे संबद्ध महाविद्यालयों में अब रोस्टर प्रणाली से शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। इसके लिए शैक्षणिक संस्थान को आरक्षण के अनुरूप अपना भर्ती रोस्टर बनाना होगा। उसी के अनुरूप भर्ती करनी होगी।

‘यूनिवर्सिटी और कॉलेज अब 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली से ही शिक्षक भर्ती करेंगे’ यूजीसी

‘यूनिवर्सिटी और कॉलेज अब 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली से ही शिक्षक भर्ती करेंगे’ यूजीसी

यूजीसी को भरे हुए और रिक्त पदों की सूचना 31 जुलाई तक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भेजनी होगी। यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को पोर्टल पर यह जानकारी भी देनी होगी कि कितने पद रिक्त हैं, अभी तक पदों पर भर्ती क्यों नहीं की और क्या प्रयास किए जा रहे हैं। यूजीसी के इस पत्र के बाद राज्य सरकार की स्टेट यूनिवर्सिटी-कॉलेज सहित निजी यूनिवर्सिटी में भी हलचल शुरू हो गई है। कारण है कि राजस्थान की अधिकतर यूनिवर्सिटी में रोस्टर नहीं बने हैं।

UGC 19.07.2024

दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव मनीष जोशी की ओर से हाल ही एक सर्कुलर जारी किया गया है। इसमें यूजीसी के सभी निजी एवं राजकीय विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध महाविद्यालयों को निर्देश दिए हैं कि उच्च शैक्षणिक संस्थान को आरक्षण के अनुरूप अपना भर्ती रोस्टर बनाना होगा। उसी के अनुरूप जल्द भर्ती करनी होगी।

सभी भर्तियां व रोस्टर का निर्धारण विश्वविद्यालय के एक्ट के अनुरूप किया जाना है। यूजीसी को भरे हुए और रिक्त पदों की सूचना 31 जुलाई तक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से भेजनी होगी। यूजीसी ने अपने सर्कुलर में स्पष्ट किया कि रोस्टर में सामान्य, एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस के साथ पीडब्ल्यूडी कैटेगिरी को भी शामिल करना होगा।

क्या है 13-पॉइंट रोस्टर?

13-पॉइंट रोस्टर सिस्टम में 13 पदों को क्रमबद्ध तरीके से दर्ज किया जाता है और इसके तहत यूनिवर्सिटी को यूनिट न मानकर डिपार्टमेंट को यूनिट माना जाता है। मान लीजिये, किसी एक डिपार्टेमेंट में 13 वैकेंसीज़ निकलती हैं, तो चौथा, आठवाँ और बारहवाँ उम्मीदवार OBC होगा अर्थात् एक OBC की नियुक्ति के लिये कम-से-कम 4 वैकेंसीज़ होनी चाहिये। इसी तरह सातवाँ कैंडिडेट SC कैटेगरी का होगा और 14वाँ कैंडिडेट ST होगा। शेष सभी पद अनारक्षित होंगे। इसके आधार पर प्रत्येक चौथे, सातवें, आठवें, 12वें और 14वें रिक्त पद को 13-पॉइंट रोस्टर में क्रमशः OBCs, SCs, OBCs, OBCs, STs के लिये आरक्षित किया जाता है। अर्थात् पहले तीन पदों के लिये कोई आरक्षण नहीं है और 14 पदों के पूर्ण चक्र में भी केवल पाँच पद या 35.7% आरक्षित वर्गों के लिये जाते हैं, जो संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% (27%+15%+7.5%) की सीमा से कम है।

कैसे निर्धारित किये जाते हैं आरक्षित पद?

किसी भी आरक्षित वर्ग को रोस्टर में मिलने वाले स्थानों का निर्धारण तय प्रतिशत से 100 को विभाजित करके किया जाता है। जैसे कि OBC कोटा 27% है…इसलिये उन्हें 100/27 = 3.7 हिस्सा मिलता है अर्थात् इस वर्ग के हर चौथे पद पर एक वैकेंसी बनती है।

इसी तरह SC को 100/15 = 6.66 यानी हर सातवें पद पर और ST को 100/7.5 = 13.33 यानी हर 14वीं वैकेंसी मिलती है। अतः किसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का प्रतिशत जितना कम होगा, उस वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित पद पर नियुक्त होने में उतना ही अधिक समय लगेगा।

इसके अलावा, हाल ही में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये नए 10% आरक्षण ने इस अंतर को और अधिक बढ़ा दिया है। ऐसा इसलिये है क्योंकि अब प्रत्येक 10वाँ पद (100/10 = 10) इस वर्ग के लिये आरक्षित है।

200-पॉइंट रोस्टर क्या है?

इसके अलावा एक और समस्या है, जो वास्तव में वर्तमान विवाद के केंद्र में है। विश्वविद्यालय के ऐसे छोटे विभागों में जहाँ कुल पदों की संख्या चार से कम है, उनमें 13-पॉइंट रोस्टर में कोई संभावना नहीं रहती, क्योंकि इसमें आरक्षण केवल चौथे पद के लिये होता है। ऐसे में OBC के केवल एक शिक्षक के बदले में ‘सामान्य श्रेणी’ से पाँच शिक्षकों को नियुक्त किया जा सकता है। इसीलिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य 49.5% आरक्षण प्रदान करने के लिये UGC ने व्यक्तिगत विभागों के बजाय विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक ‘इकाई’ मानना शुरू कर दिया और इसके लिये ‘200-पॉइंट रोस्टर’ को अपनाया। यह 200-पॉइंट रोस्टर पहले से ही सभी केंद्रीय सरकारी सेवाओं में नियुक्तियों के लिये कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा उपयोग किया जा रहा था। इसे 200-पॉइंट रोस्टर इसलिये कहा जाता है क्योंकि सभी आरक्षित वर्गों को उनके लिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य निर्धारित कोटे के पद केवल तभी मिल सकते हैं, जब 200 वैकेंसीज़ भरी जाएँ। अब चूंकि किसी संस्थान में किसी एक विभाग में 200 सीटें नहीं हो सकती, इसलिये कोटे की गणना करने के लिये पूरे विभाग के बजाय संस्थान/विश्वविद्यालय को एक इकाई माना गया।

13-पॉइंट और 200-पॉइंट रोस्टर में मुख्य अंतर

200-पॉइंट रोस्टर और 13-पॉइंट रोस्टर में सबसे बड़ा अंतर यह है कि 13-पॉइंट रोस्टर में 14 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4 शुरू हो जाता है, जो 14 नंबर पर जाकर फिर से खत्म हो जाता है। इसके विपरीत 200-पॉइंट रोस्टर में 1 नंबर से पद शुरू होकर 200 नंबर तक जाता है और 200 नंबर के बाद फिर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 से क्रम शुरू होता है और 200 नंबर तक जाता है।

13-पॉइंट रोस्टर से कैसे बेहतर है 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम?

आरक्षण लागू करने के लिये 200-पॉइंट रोस्टर को 2014 तक सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने लागू कर दिया था। यह 13-पॉइंट रोस्टर से बेहतर है, क्योंकि 13-पॉइंट रोस्टर में आरक्षण अनिवार्य प्रतिशत के स्तर से बहुत कम रह जाता है, जबकि 200-पॉइंट रोस्टर में ऐसा नहीं होता, बशर्ते केवल 200 नियुक्तियाँ की जाएँ। यह संख्या थोड़ी भी कम या अधिक होने पर आरक्षण की मात्रा प्रभावित हो सकती है। 200-पॉइंट रोस्टर संवैधानिक रूप से मान्य 49.5% आरक्षण के व्यापक लक्ष्य को सुनिश्चित करता है क्योंकि एक विभाग में कोटे को हुआ घाटा दूसरे विभाग द्वारा पूरा किया जा सकता है।

प्रो. रावसाहब काले कमेटी की सिफारिशें

रोस्टर विवाद पहली बार 2006 में सामने आया था और उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालयों में OBC आरक्षण के तहत नियुक्तियों के सवाल के समाधान के लिये तत्कालीन सरकार के कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय ने UGC से यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू करने की खामियों को दूर करने का निर्देश दिया था। इस पर UGC के तत्कालीन चेयरमैन प्रोफेसर वी.एन. राजशेखरन पिल्लई ने प्रोफेसर रावसाहब काले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालयों में आरक्षण फॉर्मूला तय करने के लिये तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में कानूनविद प्रोफेसर जोश वर्गीज और UGC के तत्कालीन सचिव डॉ आरके चौहान शामिल थे। इस कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. के. सभरवाल की पीठ द्वारा जुलाई 1997 में दिये गए फैसले के आधार पर कुछ दिशा-निर्देश बनाए। इनमें 200-पॉइंट का रोस्टर बनाया गया और इसमें किसी विश्वविद्यालय के सभी विभागों में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर का तीन स्तर पर कैडर बनाने की सिफारिश की गई थी। कमेटी ने विभाग की बजाय विश्वविद्यालय, कॉलेज को इकाई मानकर आरक्षण लागू करने की सिफारिश की, क्योंकि उक्त पदों पर नियुक्तियाँ विश्वविद्यालय करता है, न कि उसका विभाग।

1997 से ही केंद्रीय शिक्षण संस्थानों जिनमें सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, आईआईएम इत्यादि शामिल हैं। इन सभी में शिक्षकों की नियुक्ति में 200 पॉइंट्स रोस्टर विधि से आरक्षण लागू है और इसमें विश्वविद्यालय / संस्थानों को एक इकाई मानकर SC, ST और OBC अभ्यर्थियों को आरक्षण दिया जाता है।

जो क्रमश: 7.5% , 15% और 27% है। असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति के समय यह ध्यान रखा जाता है कि इस नियम का उल्लंघन न हो, क्योंकि इनके पद काफी कम होते हैं और इसीलिये रोस्टर सिस्टम लागू किया जाता है।

विवाद इस बात को लेकर था कि विश्वविद्यालय को इकाई माना जाए या विभाग को? सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सभी शिक्षण संस्थान 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम ही लागू करेंगे।

यदि ऐसा नहीं किया जाता तो SC, ST और OBC के योग्य अभ्यर्थियों के लिये असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर बनना कठिन हो जाता। इसमें भी सबसे ज़्यादा मुश्किल ST के उम्मीदवारों को होती क्योंकि प्रतिशत के आधार पर उनकी बारी काफी देर में आती।

ये है UGC के नियम

यूजीसी ने 2019 में ही एक पत्र जारी किया था। इसमें रोस्टर प्रणाली के तहत पद भरने के निर्देश दिए थे। लेकिन यूजीसी के पत्र का पालन नहीं किया गया। अब यूजीसी ने सख्त कार्यवाही की हिदायत देते हुए रोस्टर प्रणाली की पालना करने के निर्देश दिये हैं। पत्र में जार किये गये नियम कुछ इस प्रकार है

  1. UGC नियम के मुताबिक छात्रों और शिक्षकों का अनुपात 1:10 होना चाहिए। प्रत्येक विषय में कम से कम 3 सहायक आचार्य और 1 प्रोफेसर के पद पर स्टाफ की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  2. नियम के अनुरूप एक भर्ती पैनल व मेरिट की वैधता 6 महीने से ज्यादा की न हो। उसके बाद खाली पदों पर नए आवेदन व पैनल बनायें जाये।
  3. भर्ती प्रक्रिया में स्क्रूटनिंग के बाद पैनल इंटरव्यू, एपीआइ के जरिए मेरिट लिस्ट तैयार की जाये।
  4. भर्ती UGC रेगुलेशन 2018 के मुताबिक की गई हो, शैक्षणिक स्टाफ पीएचडी या नेट हो।

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एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 11 दिसंबर 2024 | जयपुर : HIV (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) एक बेहद खतरनाक वायरस है। काफी समय से डॉक्टर और वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस मामले में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने HIV इन्फेक्शन को रोकने वाला एक इंजेक्शन बनाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर है।

एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

एंटी HIV इंजेक्शन
एड्स इंजेक्शन HIV इन्फेक्शन रोकने में 96% तक कारगर, Kiss से हो सकता है HIV एड्स

इस इंजेक्शन का नाम लेनकापाविर (Lenacapavir) है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक साल में इस वैक्सीन की दो डोज लेने से व्यक्ति HIV इन्फेक्शन के खतरे से पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। अमेरिकन बायोफार्मास्युटिकल कंपनी गलियड (Gilead) द्वारा जारी और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पब्लिश डेटा के मुताबिक, लेनकापाविर टीका फेज-3 ट्रायल के दौरान HIV इन्फेक्शन को रोकने में 100% तक प्रभावी था। दक्षिण अफ्रीका और युगांडा की 5000 महिलाओं पर इस टीके का सफल परीक्षण किया गया।

इंडिया HIV एस्टिमेशन रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक, भारत में 25 लाख से अधिक लोग HIV से पीड़ित हैं। हर साल करीब 66,400 लोग इसकी चपेट में आते हैं। पूरी दुनिया की बात करें तो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, साल 2023 में करीब 4 करोड़ लोग HIV से पीड़ित थे। वहीं इस साल करीब 6,30,000 लोगों की इससे मौत हुई।

तो आज रिसर्च में हम HIV के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • HIV क्या है?
  • ये कैसे फैलता है?
  • इससे बचने के क्या उपाय हैं?

HIV क्या है?

HIV एक ऐसा वायरस है, जो बॉडी के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है। ये शरीर की व्हाइट ब्लड सेल्स को टारगेट करता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इसके कारण टीबी, सीवियर इन्फेक्शन और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर HIV का सही समय पर इलाज न किया जाए तो यह एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS) का कारण बन सकता है।

HIV और AIDS में क्या अंतर है?

HIV वायरस इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं को संक्रमित करके उसे धीरे-धीरे कमजोर करता है। इससे किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। वहीं एड्स एक मेडिकल कंडीशन है, जिसका प्राइमरी कारण HIV इन्फेक्शन है।

इन्फेक्शन होने पर अगर समय पर पता न चले और इलाज न मिले तो इम्यूनिटी कमजोर होती जाती है और एड्स में बदल जाती है। वहीं अगर सही समय पर HIV का इलाज शुरू कर दिया जाए तो एड्स से बचा जा सकता है। इसलिए समय रहते HIV इन्फेक्शन का पता लगाना बेहद जरूरी है।

HIV किन कारणों से फैलता है?

HIV आमतौर पर संक्रमित व्यक्ति के बॉडी फ्लूइड यानी ब्लड, ब्रेस्ट मिल्क और स्पर्म के संपर्क से फैलता है। ये संक्रमित प्रेग्नेंट महिलाओं के जरिए बच्चे में फैल सकता है। इसके फैलने केे कई अन्य कारण भी हैं। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-

HIV का पता कैसे लगाया जा सकता है?

दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटयूट में इंटरनल मेडिसिन और इन्फेक्शियस डिजीज कंसल्टेंट डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि किसी को देखकर ये नहीं बताया जा सकता कि उसे HIV है या नहीं। आमतौर पर HIV इन्फेक्शन के शुरुआती दिनों में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

कई बार HIV से संक्रमित होने के बावजूद व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखते। इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट कराना ही एकमात्र तरीका है। इसलिए लंबे समय तक बीमार रहने या फ्लू के लक्षण दिखने पर भी व्यक्ति को HIV टेस्ट करवाना चाहिए।

HIV से कैसे बचें?

HIV इन्फेक्शन से बचने के कई उपाय हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, सुरक्षित यौन संबंध बनाना और नीडल, सीरिंज या अन्य इंजेक्शन लगाने वाले उपकरण साझा न करना। इसके अलावा और कौन से उपाय हैं, इसे नीचे ग्राफिक से समझिए-

क्या HIV पूरी तरह ठीक हो सकता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि अभी तक HIV का कोई परफेक्ट इलाज नहीं है। हालांकि इसके कुछ ट्रीटमेंट्स हैं। इनसे HIV से शरीर को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। HIV ट्रीटमेंट दूसरों को संक्रमित होने से बचाता है और संक्रमित व्यक्ति को भी स्वस्थ रहने में मदद करता है।

HIV पॉजिटिव होने पर एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) दी जाती है। हालांकि लेनकापाविर इंजेक्शन के सफल परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में उम्मीद जगी है कि जल्द ही HIV का सटीक इलाज किया जा सकेगा।

क्या HIV छुआछूत से फैलता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं कि HIV कोई छुआछूत का वायरस नहीं है। इसलिए HIV संक्रमित व्यक्तियों से दूरी बनाने के बजाय उनके प्रति सहानुभूति और सपोर्ट दिखाना चाहिए। नीचे पॉइंटर्स से समझिए किन चीजों से HIV का खतरा नहीं होता है।

  • संक्रमित व्यक्ति को गले लगाने से।
  • एक साथ खाना खाने से।
  • एक ही कमरे में रहने से।
  • पब्लिक टॉयलेट या स्विमिंग पूल के इस्तेमाल से।
  • बर्तन या कपड़े शेयर करने से।
  • मच्छरों के काटने से।
  • संक्रमित व्यक्ति को ब्लड देने से।
  • आंसू या पसीने से।

क्या किस करने से HIV हो सकता है?

डॉ. अंकित बंसल बताते हैं HIV किस करने से नहीं फैलता। हालांकि अगर संक्रमित व्यक्ति के मुंह में खुले घाव हैं या मसूड़ों से खून आता है तो इन्फेक्शन हो सकता है।

क्या HIV पॉजिटिव व्यक्ति शारीरिक संबंध बना सकता है?

बहुत से लोग सोचते हैं कि HIV पॉजिटिव होने के बाद सेक्स नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह सच नहीं है। HIV पॉजिटिव व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की तरह ही शारीरिक संबंध बना सकता है। हालांकि इस दौरान इन्फेक्शन को रोकने के लिए प्रोटेक्शन का इस्तेमाल करना जरूरी है।

HIV पॉजिटिव होने पर अपनी केयर कैसे करें?

HIV पॉजिटिव होने पर घबराएं नहीं। खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखें। इस बात का ध्यान रखें कि HIV पॉजिटिव होने के बावजूद खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। इसके लिए निर्धारित समय पर अपनी दवाएं और समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेते रहें।

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चार वर्षीय स्नातक डिग्री से नेट और पीएचडी में सीधे एडमिशन, सहायक प्रोफ़ेसर बनने के लिए पीजी जरूरी नहीं

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 12 नवंबर 2024 | दिल्ली :  शैक्षणिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष जगदीश कुमार के अनुसार, चार वर्षीय स्नातक डिग्री रखने वाले छात्र अब राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) देकर अपनी पीएचडी आकांक्षाओं की ओर सीधे कदम बढ़ा सकते हैं। यह नेट पात्रता के लिए मास्टर डिग्री की पारंपरिक शर्त से अलग है।

चार वर्षीय स्नातक डिग्री से नेट और पीएचडी में सीधे एडमिशन, सहायक प्रोफ़ेसर बनने के लिए पीजी जरूरी नहीं

चार वर्षीय स्नातक डिग्री से नेट और पीएचडी में सीधे एडमिशन, सहायक प्रोफ़ेसर बनने के लिए पीजी जरूरी नहीं

पीएचडी करने के इच्छुक उम्मीदवारों को, चाहे जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) के साथ हो या उसके बिना, अब अपने स्नातक अध्ययन में 75 प्रतिशत अंक या समकक्ष ग्रेड की न्यूनतम आवश्यकता के साथ असाधारण शैक्षणिक प्रदर्शन करना होगा। मानक से हटकर, इस वर्ष की NET परीक्षा कंप्यूटर-आधारित टेस्ट प्रारूप से हटकर ऑफ़लाइन मोड में बदल जायेगी।

इस बदलाव का उद्देश्य उम्मीदवारों की विविध शैक्षणिक महत्वाकांक्षाओं को समायोजित करना है, चाहे उनका स्नातक विषय कोई भी हो। यह एक प्रतिमान बदलाव है जो डॉक्टरेट अध्ययन करने के इच्छुक लोगों के लिए नए दरवाजे खोल रहा है।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो ने राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व सिंडिकेट सदस्य एवम् राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर के मूर्धन्य शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा से सभी सवालों पर विस्तृत बातचीत की।

प्रोफ़ेसर मीणा ने पात्रता, विषय आवश्यकताओं, मास्टर्स डिग्री के महत्व को कम करने के बारे में चिंताओं, यूजीसी चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों को निर्देश, और बहुत कुछ पर सवालों के जवाब दिये।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 01 : क्या किसी भी विषय से 4 वर्षीय यूजी पाठ्यक्रम पूरा करने वाले छात्र पीएचडी के लिए पात्र होंगे?

प्रोफ़ेसर मीणा : हां, 4 वर्षीय यूजी डिग्री वाले छात्र किसी भी विषय में पीएचडी कर सकते हैं, चाहे उनका बैचलर कोर्स कोई भी हो। वे नेट परीक्षा के अनुसार विषय चुनकर और चुने गए विषय में उपस्थित होकर ऐसा कर सकते हैं।

इससे अंतःविषयक शोध को मजबूती मिलेगी। अपने स्नातक अनुशासन के बाहर के क्षेत्रों में पीएचडी करने वाले स्नातकों के पास व्यापक कौशल होगा, जिससे वे नौकरी के बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे। यह व्यापक पात्रता छात्रों को उनके स्नातक प्रमुख की परवाह किए बिना, अपने शैक्षणिक हितों का पालन करने की अधिक स्वतंत्रता देती है।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवल 02 : क्या इन छात्रों को पीएचडी करने के लिए एमए, एमएससी या एमकॉम की आवश्यकता नहीं होगी?

प्रोफ़ेसर मीणा : 4 वर्षीय यूजी डिग्री (पूरा हो चुका या अंतिम सेमेस्टर/वर्ष में) वाले छात्रों को पीएचडी के लिए आवेदन करने के लिए मास्टर डिग्री की आवश्यकता नहीं होगी। यह एक शर्त के साथ आता है: पीएचडी के लिए आवेदन करने के लिए छात्र के पास कुल मिलाकर न्यूनतम 75% अंक या समकक्ष ग्रेड होना चाहिए।

विशिष्ट श्रेणियों जैसे कि “अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBS) दिव्यांग, आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) वर्गों” के लिए 5% की छूट है। यदि किसी छात्र के पास चार वर्षीय स्नातक डिग्री में अपेक्षित प्रतिशत नहीं है, तो वे मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद पीएचडी कार्यक्रम में शामिल होने के पात्र होंगे।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 03: कुछ छात्र जो 3-वर्षीय यूजी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेते हैं, बाद में पीएचडी के लिए पात्र होने हेतु एक और वर्ष करने का निर्णय लेते हैं, क्या उन्हें ऐसा करने की अनुमति होगी?

प्रोफ़ेसर मीणा : 4 वर्षीय यूजी प्रोग्राम में नामांकित छात्र पीएचडी कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं। यदि संस्थान 3 वर्षीय यूजी प्रोग्राम में छात्रों को राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क के अनुरूप उपयुक्त पाठ्यक्रम प्रदान करके चौथे वर्ष में जाने की अनुमति देता है, तो ऐसे छात्र पीएचडी प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते हैं, बशर्ते उनके पास कुल मिलाकर आवश्यक प्रतिशत हो।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 04 : क्या यूजीसी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 4 वर्षीय यूजी पाठ्यक्रमों की अनुमति देने के लिए कोई निर्देश जारी करने जा रहा है?

प्रोफ़ेसर मीणा : यूजीसी 4 वर्षीय यूजी कार्यक्रमों के विभिन्न लाभों के बारे में विश्वविद्यालयों के साथ लगातार संपर्क में है। नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क लॉन्च होने के बाद से, यूजीसी देश भर के विश्वविद्यालयों के साथ पत्र लिख रहा है और चर्चा कर रहा है। वर्तमान में, 150 से अधिक विश्वविद्यालयों ने या तो 4 वर्षीय यूजी कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं या आगामी शैक्षणिक वर्ष से शुरू करने जा रहे हैं।

यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को यह भी लिखा है कि वे 3 वर्षीय यूजी कार्यक्रम में छात्रों को ब्रिज कोर्स की मदद से 4 वर्षीय यूजी कार्यक्रम में शामिल होने दें। इससे उन छात्रों को लाभ होगा जो अपने तीसरे वर्ष को आगे बढ़ाना चाहते हैं और चौथे वर्ष को शोध के लिए समर्पित करना चाहते हैं।

यूजीसी सक्रिय रूप से विश्वविद्यालयों के साथ इस मुद्दे को उठा रहा है और उन्हें शिक्षार्थियों को स्वतंत्रता, लचीलापन और विकल्प प्रदान करने के लिए इन प्रावधानों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 05 : कुछ छात्र इस बात से भी चिंतित हैं कि क्या इससे मास्टर्स स्तर के पाठ्यक्रमों का महत्व कम हो जायेगा? आप इसे किस तरह देखते हैं?

प्रोफ़ेसर मीणा : स्नातकोत्तर अध्ययन करने के कई लाभ हैं। 04 वर्षीय यूजी कार्यक्रम लचीलेपन को बढ़ावा देने और उच्च शिक्षा के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाने के लिए शुरू किया गया है और यह विशेष, उन्नत और पेशेवर स्नातकोत्तर डिग्री की आवश्यकता को प्रतिस्थापित नहीं करेगा। स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने का उद्देश्य केवल उच्च शिक्षा में एक और डिग्री प्राप्त करने तक सीमित नहीं है।

यह छात्रों को बहु-विषयक क्षेत्रों में लाकर उनके लिए उपलब्ध अवसरों का विस्तार करता है। साथ ही, 04 वर्षीय यूजी डिग्री के बाद काम करने वालों के लिए, 01 वर्षीय मास्टर डिग्री उन्हें अपने कौशल और ज्ञान को उन्नत करने के अवसर प्रदान करेगी।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 06 : पीएचडी के लिए पात्र होने के लिए 4 वर्षीय यूजी कोर्स में 75% अंक की आवश्यकता होती है, जबकि मानविकी, वाणिज्य और विज्ञान से संबंधित पाठ्यक्रमों में बहुत कम छात्र इतने अंक प्राप्त कर पाते हैं। इस पर आपका क्या कहना है?

प्रोफ़ेसर मीणा : जिन लोगों के 04 साल के यूजी प्रोग्राम में 75% अंक नहीं हैं, वे 01 साल का पीजी प्रोग्राम कर सकते हैं और फिर यूजीसी-नेट लिख सकते हैं। हम भारतीय विश्वविद्यालयों को जल्द से जल्द 01 साल का पीजी प्रोग्राम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हितधारकों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, और उनमें से कई 1 साल का पीजी प्रोग्राम शुरू कर रहे हैं।

मूकनायक मीडिया ब्यूरो सवाल 07 : क्या आप 04 वर्षीय यूजी कोर्स के लिए पीएचडी की पात्रता से संबंधित विवरण साझा कर सकते हैं? क्या उन्हें नेट देना होगा या नहीं?

प्रोफ़ेसर मीणा : यूजीसी पीएचडी विनियमों के अनुसार, 75% अंकों या समकक्ष ग्रेड के साथ 04 वर्षीय/8 सेमेस्टर की स्नातक डिग्री वाला उम्मीदवार पीएचडी प्रवेश के लिए पात्र है। विनियमों के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (गैर-क्रीमी लेयर), दिव्यांग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 5% अंक या इसके समकक्ष ग्रेड की छूट दी जाती है।

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वे 04 वर्षीय यूजी कार्यक्रम के छात्र जो पीएचडी में शामिल होना चाहते हैं, वे नेट में शामिल हो सकते हैं। नेट में शामिल होने से शिक्षार्थियों के लिए अधिक अवसर सुलभ हो जाते हैं। वे पीएचडी करने के लिए जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) पुरस्कार के लिए पात्र हो सकते हैं (जो पहले ऐसा नहीं था) या परीक्षा में उनके प्रदर्शन के आधार पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में पीएचडी में प्रवेश के लिए पात्र हो सकते हैं।

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