मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 14 जुलाई 2024 | जयपुर : उम्र के दो पड़ाव बचपन और बुढ़ापा बीमारियों का घर होते हैं। जरा सी असावधानी हुई कि बीमारी आ धमकी। असल में बच्चों की इम्यूनिटी पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है। जबकि वयस्क उम्र बीत जाने के बाद हमारी इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है।
सेहत : गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बितायें
बचपन में तो वैक्सीनेशन हमें ज्यादातर बीमारियों से बचा लेता है, लेकिन बुढ़ापे में कई बीमारियां घेर लेती हैं और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है। दवाइयों पर इस निर्भरता को मेडिसिन डिपेंडेंसी या ड्रग डिपेंडेंसी कहते हैं।
इस कंडीशन को ऐसे समझिए कि जब हमारा शरीर अपना बुनियादी कामकाज करने में सक्षम नहीं रहता, शरीर के ऑर्गन्स को बेसिक फंक्शनिंग के लिए दवाओं की जरूरत पड़ने लगती है तो इसे मेडिसिन डिपेंडेंसी कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, यह हमारे स्वास्थ्य के लिए एक खतरनाक स्थिति है।
आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे मेडिसिन डिपेंडेंसी की। साथ ही जानेंगे कि-
- हमारा शरीर कब मेडिसिन डिपेंडेंट हो जाता है?
- मेडिसिन डिपेंडेंसी के क्या लक्षण हैं?
- इससे उबरने के क्या उपाय हैं?
गोल्डेन एज को दवाइयों के सहारे न बिताएं
कोई शख्स बचपन से लेकर वयस्क होने तक जी-तोड़ मेहनत करता है। अच्छी नौकरी हासिल करता है, फिर मकान, गाड़ी और घर की तमाम सुख-सुविधाएं जुटाता है। इसके बाद शादी-ब्याह, बच्चे, फिर उनकी पढ़ाई-लिखाई। यही करते-करते उम्र बीत जाती है और रिटायरमेंट नजदीक आ जाता है।
इस उम्र तक अकसर लोग अपनी ज्यादातर जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके होते हैं और अब यह बेफिक्र होकर जीने का समय होता है। लेकिन इसी समय तमाम बीमारियां घेर लेती हैं और जिंदगी दवाइयों पर निर्भर हो जाती है।
50 की उम्र तक घेर लेती हैं कई बीमारियां
एसएमएस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. गोपाल मीणा कहते हैं कि 50 से अधिक उम्र के जो ज्यादातर पेशेंट आते हैं, वे कई तरह की लाइफस्टाइल डिजीज से ग्रसित होते हैं। लाइफस्टाइल बीमारियों के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि एक बार इन्होंने घेर लिया तो दवाइयां स्किप करना काल बन सकता है। रोज नियमित रूप से दवाइयां खानी ही पड़ती हैं।
दवाओं का सेवन करते-करते हो जाता है एडिक्शन
- जब हम कुछ दवाएं रोज खा रहे होते हैं तो हमें उनकी लत लग जाती है। इनके बगैर सबकुछ मुश्किल लगने लगता है। हमारा शरीर इन दवाइयों पर इस कदर निर्भर हो जाता है कि इनके बिना शरीर का बुनियादी कामकाज तक मुश्किल हो जाता है।
- अगर इन दवाइयों का सेवन बंद कर दिया जाए तो कई हेल्थ इश्यूज का जोखिम हो सकता है।
मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचने का रास्ता क्या है?
अगर वृद्धावस्था बीमारियों और दवाइयों के बगैर गुजरे तो इससे बड़ा और कोई सुख नहीं है। उम्र के इस पड़ाव तक आते-आते ज्यादातर चिंताएं खत्म हो चुकी होती हैं, सारी जिम्मेदारियों से निवृत्ति मिल चुकी होती है। ऐसे में किसी समस्या के बिना आसानी से जिंदगी गुजारी जा सकती है। डॉ. अमित समाधिया ने इसके लिए 6 तरीके बताए हैं, जिन्हें अपनाकर मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचा जा सकता है।
वैक्सीनेशन है जरूरी
ज्यादातर लोग जानते हैं कि शिशुओं और बच्चों को वैक्सीन लगवाकर उन्हें बीमारियों से बचाया जा सकता है। इसे लेकर खूब अवेयरनेस है और लोग अपने बच्चों को वैक्सीन लगवाते भी हैं। हमें समझने की जरूरत है कि वैक्सीनेशन सिर्फ बच्चों के लिए नहीं होता है। कई वैक्सीन्स हमें किसी भी उम्र में बीमारियों से बचा सकती हैं, ये बुजुर्गों के लिए और भी काम की हो सकती हैं।
असल में जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, इम्यून सिस्टम कमजोर होता जाता है, जिससे न्यूमोकोकल डिजीज, इन्फ्लूएंजा और दाद जैसे संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। बुढ़ापे में ये संक्रमण और गंभीर हो सकते हैं क्योंकि शरीर जल्दी रिकवर नहीं हो पाता है।
दाद का संक्रमण कई महीनों तक परेशान कर सकता है और निमोनिया हुआ तो अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है। जबकि वैक्सीनेशन इन संक्रमणों के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक बोझ से हमें बचा सकता है।
डॉक्टर से मिलकर दाद, निमोनिया, इन्फ्लूएंजा, डिप्थीरिया और काली खांसी के वैक्सीनेशन के बारे में पूछ सकते हैं। ये वैक्सीन बुजुर्ग अवस्था की कई बीमारियों और मेडिसिन डिपेंडेंसी से बचा सकती हैं।
एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर डाइट लें
रंग-बिरंगे फल और सब्जियां, मछली, सीड्स और नट्स एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। ये डाइट स्किन डैमेज, कॉग्निटिव और मेमोरी में गिरावट जैसे एजिंग के लक्षणों को रोकने में भी मददगार हो सकती है। एंटीऑक्सीडेंट्स की पूर्ति के लिए जामुन, स्ट्रॉबेरी, बीन्स, हल्दी, लहसुन, नट्स आदि का सेवन करते रहें।
प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन D से भरपूर डाइट लें
ढलती उम्र में बोन्स और मसल्स कमजोर पड़ने लगते हैं। ऐसे में हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूती बनाए रखने के लिए प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन D का संतुलित सेवन बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए डॉक्टर से बात कर सकते हैं कि इनके संतुलन के लिए क्या-क्या खाना चाहिए। सभी के शरीर की जरूरत अलग हो सकती है।
प्रतिदिन एक्सरसाइज जरूरी
अच्छी सेहत के लिए रोजाना एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। ढलती उम्र में हार्ट रेट बढ़ाने के लिए एरोबिक एक्सरसाइज कर सकते हैं। हार्ट रेट बेहतर रहने से शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई अच्छी बनी रहती है। इससे सभी ऑर्गन्स की हेल्थ भी अच्छी रहती है। साइकिलिंग, डांसिंग, लॉन्ग वॉकिंग, जॉगिंग, रनिंग और स्विमिंग अच्छी एरोबिक एक्सरसाइज हैं। इस दौरान हमारे शरीर का बड़ा मसल ग्रुप एक्टिव होता है।
यह सब हार्ट हेल्थ के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही इससे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करने में मदद मिलती है। एरोबिक एक्सरसाइज कम-से-कम सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। इससे हड्डियों और मांसपेशियों की ताकत बरकरार रहती है। 40 से अधिक उम्र के बाद और अगर कोई मेडिकल कंडीशन है तो एक्सरसाइज शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
रेगुलर हेल्थ चेकअप है जरूरी
हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी डिजीज और कैंसर जैसी क्रोनिक डिजीज से बचने के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप जरूरी है। अगर बीमारियों का पता शुरुआती स्टेज में ही चल जाए तो इनका इलाज इतना मुश्किल नहीं होता है।
हर व्यक्ति की अलग हेल्थ कंडीशन हो सकती है। उसके हिसाब से ही उसे बॉडी चेकअप की जरूरत होती है। इस बारे में डॉक्टर से बात कर सकते हैं कि किस तरह की जांच की जरूरत है और कितने दिनों के अंतराल में जांच की आवश्यकता है।
मेंटल हेल्थ का ख्याल रखना है जरूरी
उम्र ढलने के साथ हमारा कॉग्निटिव फंक्शन भी कमजोर पड़ने लगता है। मेमोरी पॉवर वीक होने लगती है। इसके अलावा वृद्धावस्था में भावनाओं की उथल-पुथल भी बढ़ जाती है। अकेलापन महसूस होने लगता है और चिंताएं बढ़ जाती हैं। इस सबका सीधा असर हमारी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। एंग्जायटी और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।
हमें ‘एज विद ग्रेस’ के कॉन्सेप्ट के साथ जिंदगी का आनंद लेना चाहिए। अपनी बकेट लिस्ट निकालें। जीवन में जो यात्राएं अधूरी रह गई हैं, उन्हें पूरा करें। घर में सभी सदस्यों के साथ दोस्ताना संबंध बनाएं। हेल्दी खाना खाएं। जीने का कोई-न-कोई मकसद बरकरार रखें।