
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 19 जुलाई 2024 | जयपुर : डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पेपर का अक्सर मजाक बनाया जाता है। कई बार सोशल मीडिया पर इस शर्त के साथ किसी डॉक्टर का लिखा पर्चा वायरल हो जाता है कि कोई इसे पढ़कर दिखाए। असल में पर्चे पर दवाओं के नाम इतनी गंदी हैंड राइटिंग में लिखे होते हैं कि उसे समझना आम आदमी के लिए तो मुश्किल होता ही है, कई बार फार्मेसिस्ट के लिए भी समझना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
AIIMS स्टडी मे दावा डॉक्टरी पर्चा मरीजों को कर रहा कन्फ्यूज
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली ने एक रिसर्च में पाया है कि ज्यादातर डॉक्टर्स के लिखे प्रिस्क्रिप्शन काफी कन्फ्यूजिंग होते हैं। जबकि मेडिकल गाइडलाइंस के मुताबिक डॉक्टरों के लिए दवा की पर्ची पर पूरी जानकारी साफ-साफ लिखना जरूरी है।

AIIMS की रिसर्च में सामने आया है कि प्रत्येक दो में से 1 प्रिस्क्रिप्शन में गाइडलाइंस का पालन नहीं किया जा रहा है। ये पर्चियां कन्फ्यूजिंग हैं और मानक इलाज की गाइडलाइंस से बिलकुल अलग हैं। इनमें से 10% पर्चियां तो ऐसी हैं कि वे किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं। AIIMS ने यह भी कहा है कि इससे मरीजों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे डॉक्टर्स के कन्फ्यूजिंग प्रिस्क्रिप्शन पेपर की। साथ ही जानेंगे कि-
- AIIMS की स्टडी में क्या कहा गया है?
- इससे हमें क्या नुकासान हो रहे हैं?
- इसका सामाधान क्या है?
AIIMS की स्टडी में क्या सामने आया
AIIMS की एक स्टडी में अगस्त 2019 से लेकर अगस्त 2020 के बीच कुल 4,838 प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स का अध्ययन किया गया। इसमें सामने आया कि इनमें से आधे प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स कन्फ्यूजन पैदा करते हैं। इस स्टडी में यह जानने की कोशिश की गई है कि मेडिकल काउंसिल की गाइडलाइंस को नजरअंदाज कर लिखे गए प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स का लोगों की सेहत पर क्या असर पड़ता है।
स्टडी में पता चला कि प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स स्पष्ट नहीं होते हैं। इनमें कई बार कई दवाइयां बिना मतलब की लिख दी जाती हैं। ऐसी दवाइयां, जिसकी मरीज को जरूरत ही नहीं होती। इसके चलते पेशेंट्स पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। इसके अलावा बिना जरूरत के इन दवाइयों को खाने से स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।
प्रिस्क्रिप्शन में कन्फ्यूजन से क्या नुकसान हो सकते हैं
डॉक्टर्स का एविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट गाइडलाइंस को फॉलो नहीं करना कई बड़े जोखिमों की ओर इशारा कर रहा है। कन्फ्यूजिंग प्रिस्क्रिप्शन के परिणामस्वरूप गलत दवाएं या गलत खुराक का जोखिम हो सकता है। इससे क्या नुकसान हो सकते हैं, आइए ग्राफिक में देखते हैं:
प्रिस्क्रिप्शन में कन्फ्यूजन क्रिएट होने से पेशेंट गलत दवाइयां खा सकता है। अगर उसे खुराक को लेकर कन्फ्यूजन हुआ तो डोज कम या ज्यादा हो सकती है। इससे कई बार रिकवरी टाइम बढ़ सकता है। यहां तक कि ट्रीटमेंट फेल हो सकता है।
जरूरत से अधिक दवाएं प्रिस्क्राइब करने के क्या नुकसान हैं
अगर डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन पेपर में जरूरत से अधिक दवाइयां लिख रहे हैं तो इसके भी कई जोखिम हो सकते हैं। जरूरत से अधिक दवाएं लेने से उनके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इससे पेशेंट की कंडीशन और बिगड़ सकती है या मौत हो सकती है।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस: डॉक्टर बाजार और दवा कंपनियों के दबाव में अनावश्यक या अनुचित एंटीबायोटिक दवाएं लिख रहे हैं। इनके ओवर यूज से लोगों में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पैदा होने का खतरा है। यहां तक कि सुपरबग्स भी बन सकते हैं। इससे इन्फेक्शन का इलाज करना अधिक कठिन हो जाता है। कई बीमारियों के इलाज में सामान्य से अधिक समय लगता है। फिर ज्यादा महंगी दवाएं लेनी पड़ती हैं। इससे इलाज का खर्च भी बढ़ जाता है।
आर्थिक बोझ: जिन दवाओं की जरूरत ही नहीं है, उन्हें खरीदने का खर्च बढ़ता है। इसके अलावा अगर बिना जरूरत के इस्तेमाल की जा रही दवाओं के साइड इफेक्ट्स हुए तो उसके इलाज में भी पैसे खर्च करने होते हैं। इससे पेशेंट पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।
इंटरनल ऑर्गन्स प्रभावित हो सकते हैं: जरूरत के बगैर दवाइयां खाने का मतलब है कि हम मुसीबत बुला रहे हैं। अगर प्रिस्क्रिप्शन पेपर में गैरजरूरी दवाइयां लिखी गई हैं तो इसका मतलब है कि इनका हमारे इंटरनल ऑर्गन्स पर बुरा असर हो सकता है। बेवजह दवाएं छानने से किडनी पर लोड बढ़ सकता है। इससे किडनी, लिवर और दिल प्रभावित हो सकते हैं।
गैस की दवाओं से कैंसर का खतरा: ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) कई बार चेतवानी जारी कर चुका है कि गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव दवाएं पेट के कैंसर का जोखिम पैदा कर सकती हैं। जबकि डॉक्टर्स श्वसन संबंधी और आंख-कान संबंधी बीमारियों के भी इलाज में गैस की दवाएं लिख रहे हैं।
इसका क्या समधान हो सकता है
मेडिकल काउंसिल को कड़ी गाइडलाइंस बनानी चाहिए। इसके खिलाफ सख्त नियम बनाने की जरूरत है। जो डॉक्टर या हॉस्पिटल इन गाइडलाइंस को फॉलो नहीं कर रहे हैं, उनके लिए कड़ी सजा के प्रावधान भी होने चाहिए।
गलत और कन्फ्यूजिंग प्रिस्क्रिप्शन किसी की जान से खिलवाड़ करने जैसा है। यह तब और गंभीर विषय बन जाता है, जब हर शख्स डॉक्टर पर बिना सवाल किए सबकुछ फॉलो कर रहा है। इससे डॉक्टर्स पर से भरोसा खत्म हो सकता है।
बुनियादी ढांचे और संसाधन की जरूरत: सरकार और मेडिकल काउंसिल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गाइडलाइंस का प्रभावी ढंग से पालन हो पाए, इसके लिए हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर, रिसोर्सेज और टेक्नोलॉजी उपल्ब्ध हो।
बिहेवियरल इंटरवेंशन: डॉक्टर्स को इस तरह ट्रेनिंग की जरूरत है कि वह सिर्फ लक्षणों के आधार पर दवाएं न दें। पेशेंट की बेसिक जांच के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचें, तब दवाइयां लिखें।
कोलैबोरेशन और पार्टनरशिप: डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स के इस बर्ताव में अचानक बदलाव नहीं आ सकता है। इसके लिए जरूरी है कि प्रभावी तरीके से रणनीति तैयार की जाए कि कैसे मेडिकल एसोसिएशन, रेगुलेटरी बॉडीज, एकेडमिक इंस्टीट्यूशन और दवा कंपनियां सभी मिलकर सही दिशा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।