मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 15 जुलाई 2024 | जयपुर : 9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 35 दिन गुजर चुके हैं और मोदी सरकार ने कोई बड़ा फैसला नहीं लिया है। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
मोदी 2.1 में बैकफुट पर क्यों हैं
अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही उन्होंने विदेशों में छिपाकर रखे गए कालेधन की जांच के लिए SIT बना दी। अगले 100 दिनों में रेल किराया बढ़ाने, डीजल सब्सिडी घटाने और योजना आयोग भंग करने जैसे कई ताबड़तोड़ फैसले लिए।
30 मई 2019 को नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पहली कैबिनेट मीटिंग में सभी छोटे किसानों को सालाना 6 हजार रुपए देने के चुनावी वादे को मंजूरी दी। 1 महीने के भीतर तीन तलाक खत्म करने के लिए संसद में बिल पेश कर दिया।
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। पर, अबकी बार सहमी-सहमी क्यों है मोदी 2.1, 35 दिन में कोई भी बड़ा फैसला नहीं लिया है।
लोकसभा नतीजों के बाद से ही अब तक इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी का अंदाज इस बार पिछले दो कार्यकाल जैसा ही दिखेगा। पर विपक्ष की ओर से इसके उलट लगातार कई दावे किए जा रहे हैं। लेकिन नई सरकार के गठन और संसद की शुरुआत तक इस बात के उलट अब तक यही संकेत मिल रहे हैं कि मोदी सरकार बैकफुट पर है।
प्रधानमंत्री मोदी की ओर से जिस प्रकार फैसले लिए गए हैं वह इस बात की ओर इशारा है कि वह भयंकर दबाव में हैं। कौन मंत्री बनेगा, सहयोगी क्या डिमांड करेंगे, इन सवालों पर विराम लगा तो स्पीकर पद को लेकर चर्चा शुरू हो गई।
संसद सत्र की शुरुआत से पहले ही कई सवाल खड़े हो रहे थे लेकिन पिछले चार दिनों में सदन के भीतर जो फैसले हुए और जो नजारा दिखा उससे यह बात क्लियर है कि मोदी सरकार वाकई में बैकफुट पर है। किंतु, ऐसा क्यों है ?
कुछेक राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि यह मोदी 3.0 है। किंतु अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक इसको 3.0 ना मानकर 2.1 मानते हैं क्योंकि;
वही पुराने मंत्रियों का जमजा, कैबिनेट में भी दिखा वही पुराना अंदाज
इस बार के चुनाव में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं हुआ लेकिन एनडीए की सरकार बनी। सरकार के गठन से पहले ही यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई कि एनडीए के साथी दल हिसाब बराबर करेंगे।
कई ऐसी खबरें भी सामने आई कि इस बार अधिक मंत्री पदों की मांग सहयोगी दलों की ओर से की जा रही है। लेकिन 9 जून को जब पीएम मोदी ने नए मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण किया तो यह सिर्फ कयास ही निकला।
एनडीए में शामिल बड़े दलों को भी एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का ही पद मिला। इसके बाद दूसरी चर्चा मंत्रालयों को लेकर शुरू हो गई। यह कहा जाने लगा कि बीजेपी के सहयोगी दल उससे रेल और वित्त मंत्रालय जैसे पद मांग रहे।
लेकिन यहां भी कुछ नहीं बदला। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अधिकांश मंत्री दोबारा उन्हीं मंत्रालयों को तीसरे कार्यकाल में भी संभालते हुए नजर आ रहे हैं। रक्षा, वित्त, गृह,विदेश, रेल मंत्रालयों में कोई फेरबदल नहीं हुआ।
इतना ही नहीं मंत्रालयों के बंटवारे के बाद एनडीए में शामिल किसी दल की ओर से कोई सवाल नहीं उठाए गए। 9 जून से 27 जून के पूरे घटनाक्रम को देखा जाए तो एक बात यह समझ आती है कि प्रधानमंत्री मोदी किसी दबाव में नहीं हैं और तीसरे कार्यकाल में भी वह पहले की ही तरह फैसले ले रहे हैं।
आपातकाल से आगे क्यों नहीं बढ़ रही मोदी 2.1
आज इस आपातकाल को 49 साल पूरे हो गये। लोगों ने आपातकाल से आगे बढ़कर इंदिरा गाँधी को सत्ता में वापसी करवा दी। भरी सांसद में विपक्ष कि धुरी मने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा को दुर्गा की उपाधि से नवाज़ कर सबको चौंका दिया। आरएसएस के तत्कालीन राष्ट्रीय नेतृत्व ने आपातकाल का समर्थन तक किया फिर मोदी 2.1 में सरकार क्या रस निकालना चाहती है आपातकाल से, यह सबसे बाधा सवाल है।
उससे भी बाधा सवाल है कि भारत के दो सबसे अमीर लोगों पर कांग्रेस पार्टी को “बैगों में काला धन से भरे टेंपो” भेजने का आरोप लगाकर उन्होंने खुद को मुश्किल में डाल लिया है? इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष ने एक्स पर एक मज़ाकिया ट्वीट किया कि दोस्त अब दोस्त नहीं रहे और यह इस बात का संकेत है कि समय कैसे बदल रहा है।
वास्तविकता यह है कि मोदी के चमचमाते अविश्वसनीय वादों से परेशान नागरिक वर्ग तेज़ी से थक रहा है। मीडिया की चमकदार प्रचार बमबारी उन गंभीर वास्तविकताओं के विपरीत है जिनका अधिकांश लोग रोजाना बढती मँहगाई, विकराल रूप धारण कर चुकी बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं।
पेपर लीक से अग्निवीर तक वे लाज़वाब हैं
सच तो यह है कि इस चुनाव ने कई वास्तविकताओं को सामने ला दिया है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में पानी की कमी की आपात स्थिति बन रही है। बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड और राजस्थान सहित देश भर में परीक्षा पेपर लीक से छात्र परेशान हैं। आम आदमी ज़रूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से घरेलू बजट में खोखला हो रहा है।
यही कारण है कि कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने ‘अगर-मगर’ रहित तीखे अभियान से नैरेटिव सेट किया और पीएम मोदी को बैकफुट पर ला दिया। फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहली बार प्रधानमंत्री बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं। पिछले कुछ हफ़्तों में उन्होंने जो भी मुद्दे उठाए हैं, उनमें से कोई भी मुद्दा देश के किसी भी हिस्से में देशवासियों को पसंद नहीं आया।
ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें से कोई भी मुद्दा मुद्दा ही नहीं था। पीएम मोदी के उठाये मुद्दों से अब हर कोई थकने लगा है। एक सुस्ती छाने लगी है और एक गहरी उदासी छाने लगी है। हर कोई ऊबने लगा है।