
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 24 अगस्त 2024 | कोलकाता : कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर का रेप-मर्डर करने के आरोपी संजय रॉय समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट हो रहा है। इनमें कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और पीड़ित के साथ 8 अगस्त की रात डिनर करने वाले डॉक्टर भी शामिल हैं।
कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर आरोपी संजय रॉय का होगा पॉलीग्राफ टेस्ट
23 अगस्त को सियालदह कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने आरोपी संजय से पूछा था कि वह टेस्ट के लिए क्यों तैयार हुआ। संजय बोला- टेस्ट से साबित होगा कि मैं निर्दोष हूं। मुझे फंसाया गया है।
सेक्स वर्कर के यहां से क्यों RG Karवापस लौटा संजय रॉय?
संजय रॉय के साथी सिविक वॉलेंटियर ने पूछताछ में दावा किया कि चेतला के कोठे से निकलने के बाद उस रात संजय रॉय का मूड बहुत खराब था। संजय रॉय सेक्स वर्कर के पास नहीं गया था। वह बाहर खड़ा था. उसका साथी सिविक वॉलेंटियर अंदर गया था। उसके अचानक बाहर आने के बाद संजय रॉय ने उससे कहा कि आरजी कर अस्पताल जाएंगे।

जब संजय को उसके साथी सिविक वॉलेंटियर ने रोकने की कोशिश की तो संजय रॉय ने कहा कि तुम ही करोगे ! मैं भी हूं… संजय रॉय इस तरह से आरजी कर अस्पताल वापस लौटा। सीबीआई के अधिकारी यही जानना चाहते हैं कि संजय रॉय आखिर क्यों आरजी कर अस्पताल लौटा? क्या इसके पीछे किसी की साजिश थी? क्या उसने पहले से प्लानिंग बना रखी थी? और वह अपने प्लानिंग को अंजाम देने के लिए आरजी कर अस्पताल लौटा था?
पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है, इससे सच कैसे सामने आ जाता है; इससे जुड़े 7 जरूरी सवालों के जवाब…
आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर की दरिंदगी के बाद हत्या के मामले में सीबीआई पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के अलावा पांच अन्य का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति ली है। पांच अन्य में चार डॉक्टर शामिल हैं। जिन्होंने घटना वाली रात को लेडी डॉक्टर के साथ डिनर किया था।
इसके अलावा एक सिविक वालंटियर शामिल है। सीबीआई जघन्य घटना के मुख्य आरोपी संजय रॉय का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की अनुमति पहले ही हासिल कर चुकी है। पूरे देश को झकझोर देने वाली इस मामले में सीबीआई ने सबसे ज्यादा लंबी पूछताछ पूर्व प्रिसिंपल संदीप घोष से की है।
पॉलीग्राफ टेस्ट में अब सीबीआई सच और झूठ का पता लगाएगी। सीबीआई ने संजय रॉय से सहयोगी और कोलकाता पुलिस के निलंबित एएसआई अनूप दत्ता से पूछताछ की थी।
सवाल-1: कोलकाता रेप केस में पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जवाब: डॉक्टर रेप-मर्डर केस की जांच कर रही CBI के सामने कई सवाल हैं। CBI इस बात की जांच कर रही है कि इस अपराध को बिना किसी बाधा के सेमिनार हॉल में अंजाम दिया गया। उस हॉल के दरवाजे का टॉवर बोल्ट टूटा हुआ मिला। शुरुआती जांच में पता चला है कि टॉवर बोल्ट टूटने के कारण दरवाजा कुछ समय से खराब था।
CBI यह भी पता लगाने की कोशिश में है कि क्या कोई दूसरा शख्स सेमिनार हॉल के बाहर तैनात था। अधिकारी इसकी जांच भी कर रहे हैं कि जब घटना को अंजाम दिया जा रहा था, तो सेमिनार हॉल के अंदर से कोई आवाज क्यों नहीं सुन सका।
ये कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड की तस्वीर है। इसी बिल्डिंग के सेकेंड फ्लोर पर बने सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की लाश मिली थी। पीड़िता के शरीर से लिए गए डीएनए, वजाइनल स्वैब, ब्लड, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बावजूद CBI अभी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची है।
CBI जानना चाहती है कि क्या मुख्य आरोपी के अलावा भी कोई इस षडयंत्र का हिस्सा था। CBI ये भी जानना चाहती है कि आरोपी जो बोल रहा है वो सच है या उसने किसी को बचाने के लिए जुर्म कबूला है।
सवाल-2: पॉलीग्राफ टेस्ट है क्या, जिससे कोलकाता केस की सच्चाई सामने आने के दावे किए जा रहे हैं?
जवाब: फोरेंसिक साइकोलॉजी डिवीजन के डॉ. पुनीत पुरी के मुताबिक, पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कोर्ट से मंजूरी लेने की जरूरत होती है। पॉलीग्राफ टेस्ट नार्को टेस्ट से अलग होता है। इसमें आरोपी को बेहोशी का इंजेक्शन नहीं दिया जाता है, बल्कि कार्डियो कफ जैसी मशीनें लगाई जाती हैं।
इन मशीनों के जरिए ब्लड प्रेशर, नब्ज, सांस, पसीना, ब्लड फ्लो को मापा जाता है। इसके बाद आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं। झूठ बोलने पर वो घबरा जाता है, जिसे मशीन पकड़ लेती है।
इस तरह का टेस्ट पहली बार 19वीं सदी में इटली के अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो ने किया था। बाद में 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मैरस्ट्रॉन और 1921 में कैलिफोर्निया के पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी ऐसे उपकरण बनाए।
सवाल- 3: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में कही गई बातों का सबूत की तरह इस्तेमाल होता है?
जवाब: 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पॉलीग्राफ टेस्ट में आरोपी की कही गई बातों को सबूत नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह सिर्फ सबूत जुटाने के लिए एक जरिया होता है। इसे ऐसे समझिए कि अगर पॉलीग्राफ टेस्ट में कोई हत्या आरोपी मर्डर में इस्तेमाल हथियारों की लोकेशन बताता है, तो उसे सबूत नहीं माना जा सकता है, लेकिन अगर आरोपी के बताए लोकेशन से हथियार बरामद हो जाता है तो फिर उसे सबूत माना जा सकता है।
इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि हमें यह समझना चाहिए कि इस तरह के टेस्ट के जरिए किसी व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं में जबरन घुसपैठ करना भी मानवीय गरिमा और उसके निजी स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है। ऐसे में ज्यादा गंभीर मामलों में ही कोर्ट की इजाजत से इस तरह की जांच होनी चाहिए।
सवाल- 4: पॉलीग्राफ मशीन कैसे धड़कनों और पसीने से सच पता कर लेती है?
जवाब: एक पॉलीग्राफ मशीन में सेंसर लगे हुए कई सारे कंपोनेंट होते हैं। इन सभी सेंसर को एक साथ मेजर करके किसी व्यक्ति के साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स का पता लगाया जाता है। इसे ऐसे समझिए कि किसी व्यक्ति को झूठ बोलते समय कुछ घबराहट होती है तो ये मशीन तुरंत उसे पता कर लेती है।
सवाल-5: इस जांच में दो तरह के कौन से टेस्ट होते हैं?
जवाब: इस जांच में इन दो तरह के टेस्ट होते हैं…
कंट्रोल क्वेश्चन टेस्ट: सबसे पहले व्यक्ति को पॉलीग्राफ मशीन से जोड़ने के बाद उससे सामान्य सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों के जवाब हां या ना में पूछे जाते हैं। ऐसा यह जांचने के लिए किया जाता है कि जब वह किसी सामान्य सवाल का जवाब देता है और जब उस घटना से जुड़े टफ सवाल का जवाब देता है तो उसके शरीर की प्रतिक्रिया कैसी होती है।
इस समय व्यक्ति के सांस लेने की गति यानी ब्रीदिंग रेट, व्यक्ति का पल्स, ब्लड प्रेशर और शरीर से निकल रहे पसीने से यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति सही बोल रहा है या झूठ बोल रहा है।
गिल्टी नॉलेज टेस्ट: इसमें एक सवाल के कई जवाब होते हैं। सारे सवाल आरोपी के अपराध से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए कोई चोरी के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो उससे इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं… 5,000, 10,000 या 15,000 रुपए की चोरी हुई है?
इस सवाल का आरोपी सही जवाब देगा तो उसकी हार्ट बीट सामान्य होगी, लेकिन जैसे ही वह झूठ बोलने की कोशिश करता है उसकी हार्ट बीट, उसके दिमाग के सोचने के तरीके आदि से पता चल जाता है कि वह कुछ छिपा रहा है।
सवाल- 6: क्या पॉलीग्राफ टेस्ट में सच को छिपाया जा सकता है?
जवाब: अमेरिका की साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, पूछताछ के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव या घबराहट से यह तय नहीं किया जा सकता कि आरोपी कुछ छिपा रहा है या झूठ बोल रहा है।
हालांकि, यह सच को पता करने का एक माध्यम जरूर हो सकता है। वंडरपोलिस की एक रिसर्च से ये पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति अपने इमोशन को कंट्रोल में रख सकता है तो इस जांच से उस पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है।
अगर आरोपी के दिए सही जवाब को एक्सपर्ट गलत बताकर उस पर दबाव बनाने लगते हैं तो वह नर्वस होने लगता है। आमतौर पर उसके नर्वस होने पर ही ये मान लिया जाता है कि वह झूठ बोल रहा है। हालांकि, कई मामलों में इस जांच के जरिए असली अपराधी को भी पकड़ा गया है।
सवाल- 7: पॉलीग्राफी से भी एक कदम आगे नार्को टेस्ट क्या है और इसमें सच कैसे बाहर आता है?
जवाबः शातिर क्रिमिनल बचने के लिए अकसर झूठी कहानियां बनाते हैं। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है।
नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवा दी जाती है, जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल। सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है।
ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से जागने के बाद भी आरोपी आधी बेहोशी में रहता है। इस हालत में वो जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है।
5 लोगों के साथ होगा पॉलीग्राफ टेस्ट
अदालत में जब जज ने संजय राय से यह पूछा कि वह पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए क्यों सहमत हो रहे हैं तो वह रोने लगा और कहा कि उसने लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए सहमति इसलिए दी क्योंकि उसका मानना है कि वह निर्दोष है। उसने कहा मुझे फंसाया जा रहा है। मैंने कोई अपराध नहीं किया।
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शायद यह टेस्ट यह साबित कर देगा कि मैं निर्दोष हूं। इसके बाद उसने अपना पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति दे दी। उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। अदालत ने मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और मामले से जुड़े पांच अन्य लोगों पर लाई डिटेक्टर टेस्ट करने की अनुमति दी है।