रवीश कुमार की ‘बोलना ही है’ ज्वलंत सवालों की किताब

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 05 जुलाई 2024 | जयपुर : रवीश कुमार की किताब ‘बोलना ही है’ पर यह लंबी टिप्पणी लिखी है संजय कुमार ने। आप रवीश को ट्रोल कर सकते हैं। आप रवीश को मोदी विरोधी कह सकते हैं। आप रवीश को देशद्रोही कहे सकते हैं। आप रवीश को कांग्रेसी या विपक्षी पार्टियों का  दलाल कहे सकते हैं।

लेकिन सबसे अहम बात यह है कि रवीश के द्वारा उठाये गये सवालों से कैसे बच के निकल सकते हैं जो आज के समय में रवीश के द्वारा लगातार उठाये जा रहे हैं। एनडीटीवी चैनल के प्राइम टाइम शो के माध्यम से, और अब रवीश अपनी पुस्तक ‘बोलना ही है’ के माध्यम से ज्वलंत सवालों को उदाहरण सहित क्रमबद्ध तरीके से जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

‘बोलना ही है’ – पुस्तक समीक्षा 

किताब एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से आप अपनी बात को सही तरीके से रख सकते हैं। हिस्ट्री  के छात्र होने के कारण भी रवीश किताब लेखन की अहमियत को अच्छे समझते हैं बहुत सारी किताबों ने देश और दुनिया के इतिहास की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

रवीश की पुस्तक भी आने वाले समय में सोशल साइंस तथा वर्तमान राजनीतिक दौर के घटनाक्रमों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज का काम करेगी। रवीश का लेखन भारत की वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था, राजनीतिक दलों के क्रियाकलाप और सरकारों के कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर रहा है।

पुस्तक के माध्यम से रवीश यह सवाल भी पैदा कर रहे हैं कि क्या देश संविधान के आधार स्तंभों के आधार पर चलाया जा रहा है या नहीं, आजादी के आंदोलन के दौरान जिसको स्थापित किया गया था भारत की पत्रकारिता के उन उच्च मानकों को किस प्रकार एक एक करके तार तार किया जा रहा है।

दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारिता के पेशे को आज भी लोकतंत्र का प्रहरी के तौर पर माना जाता है। लेकिन क्या अब भारत में पत्रकारिता और पत्रकार टीवी चैनल और न्यूज़ पेपर में आज जिस तरह से काम कर रहे हैं क्या इसी का नाम लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है,  मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसी कारण से कहा जाता था कि वह सरकार और व्यवस्था की खुलकर आलोचना और उसकी कमियों को उजागर करना का काम दिन रात करता रहता है।

क्या लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का काम वर्तमान में भारतीय मीडिया कर रहा है या मात्र सरकार के प्रवक्ता या राजनीतिक दलों के आईटी सेल के दिये हुए या बनाये हुए कार्यक्रम को दिन रात प्रसारित कर रहे हैं ताकि जनता की सही आवाज और  विपक्ष की आवाज को भी खत्म किया जा सके।

एक लंबी लिस्ट सवालों की बनाने का प्रयास किताब की समीक्षा के दौरान किया जा रहा है जिसको रवीश ने अपने आवाज और लेखनी के माध्यम से उठाया है, किताब वर्तमान में भारत के राजनीतिक व्यवस्था में आई दरारों, कमियों और पत्रकारिता के गिरते स्तर को उदाहरण सहित व्याख्या करके बताने में अपनी किताब में काफी हद तक कामयाब हुए हैं।

सवाल-1 मॉब लिंचिंग पर

पुस्तक की भूमिका में ही मॉब लिंचिंग के संदर्भ में कहा गया है कि हम जिस लिंचिंग के खतरों की बात करते हैं वह कुछ लोगों के लिए सामान्य कार्य हो चुका है किसी से असहमति होने पर उसकी लिंचिंग करने का ख्याल आना अब आम बात की तरह है ।

सवाल-2 आजकल की भीड़

जो यह भीड़ है महज शब्द नहीं है इसमें बहुत से लोग हैं मरने वाले, मरते हुए देख कर चुप रहने वाले और अपने मोबाइल फ़ोन से वीडियो बनाने वाले आवारा भीड़ का निर्माण तीव्र गति से चल रहा है।

सवाल-3 मीडिया की जवाबदेही

पत्रकार और पत्रकारिता दोनों की जवाबदेही समाप्त हो चुकी है। बस शाम को टीवी पर आना है। दो वक्ताओं को बुलाकर आपस में लड़ा देना है और असली खबर को दबा देना है। अब यह कार्यक्रम विकराल और इतना व्यापक हो चुका है कि इसमें नैतिकता और अनैतिकता की बिंदु खोजने का कोई मतलब नहीं रहा है। न्यूज़ चैनलों ने भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में जो मेहनत की है उसी का नतीजा है कि अब भारत के लोग उन चैनलों को बगैर किसी सवाल के देखते हैं।

लोकतंत्र के बड़े प्रतीक मीडिया में विपक्ष को क्यों गायब किया जा रहा है। प्रेस की गुणवत्ता अब एक ही मानक है कि वह सत्ता पक्ष का गुणगान कितना अच्छा करता है। 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू गुणगान के लिए देखे जाने चाहिए गुणवत्ता के लिए नहीं, प्रेस का प्रोपेगंडा तंत्र में बदल जाना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का  सहज हिस्सा है।

ऐसा सिर्फ सरकार की वजह से नहीं हुआ है दर्शकों और पाठकों की भी वजह से हुआ है। तभी तो चैनल या अखबार जितना दरबारी है वह रेटिंग  की होड़ में उतने ही बेहतर नंबर पर हैं।

सवाल-5  खराब शिक्षा व्यवस्था का नतीजा और प्रभाव

 NACC  की रेटिंग में 68% यूनिवर्सिटी  औसत या औसत से भी खराब है। 91% कॉलेज औसत  या औसत से भी नीचे  है, इन खराब कॉलेजों ने कितनी मेहनत से छात्र और छात्राओं की कई पीढ़ियों को औसत या औसत से नीचे तैयार किया होगा। जानने, पढ़ने, और समझने की हर बेचैनी को खत्म किया होगा।

लोकतंत्र उन आदर्श लोगों के दम पर जिंदा और मजबूत रहता है जो दुनिया को बेहतर ढंग से समझने को उत्सुक रहते हैं जो सवाल करते हैं, तो क्या हम उन छात्र-छात्राओं से लोकतांत्रिक उच्चतम आदर्शों की उम्मीदें कर सकते हैं जिनको एक औसत दर्जे की शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा दी है इन पर पहले अज्ञानता का भार लादा गया और अब सांप्रदायिकता का चश्मा पहना दिया गया है।

सवाल-6  खुल कर बोलना

बोलने के लिए जानना  पड़ता है तब जानने की हर कोशिश नाकाम कर दी जाए या जानकारी कम कर दी जाए तो बोलने का अभ्यास अपने आप कम हो जाता है। न्यूज़ चैनल और अखबारों में मेहनत से खोज कर लाई गयी खबरें गायब होती चली गयी।

अब तमाम मीडिया तंत्र के जरिए जो जानकारी आप तक पहुंच रही है वह आपके बोलने की क्षमता को सीमित कर रही है। मां-बाप बच्चों को ज्यादा बोलने और लिखने से मना कर रहे हैं, अध्यापक अपने विद्यार्थियों को सिर्फ पढ़ने और राजनीति दूर रहने की सलाह दे रहे हैं ,सारा समाज मिलकर भारत के महान लोकतंत्र को दब्बू बनाने में लगा है। सेंसरशिप की बात कहाँ नहीं है।

अब सवाल करने वालों पर आईटी सेल की ट्रोल आर्मी ने जोरदार हमला बोला दिया है उन्हें देश विरोधी- धर्म विरोधी से लेकर विरोधी दलों का दलाल तक कहा जाने लगा,  व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी ने कई पत्रकारों की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाने की कोशिश की है।

बोलने की आजादी को लेकर अपनी तरह की इस नई व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने अपना एक नया बेंच मार्क तय किया है। तब क्यों नहीं बोले और अब ही क्यों बोल रहे हो तथा हर मुद्दे पर तब कहाँ थे जब वह हुआ था।

सवाल-7  सोशल मीडिया का दुरुपयोग

2014 के बाद से सोशल मीडिया के द्वारा 10- 12 पत्रकार, लेखक और अभिनेताओं को टारगेट किया गया, इस खेल के जरिए जनता के एक बड़े वर्ग को डरा दिया गया, जनता को यह डर सताने लगा कि जब बड़े बड़े लोगों की ऐसी हालत हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात, जनता के हिस्से ने भीड़ का वह डर खरीद लिया।

आईटी सेल ने अपनी आक्रामकता के सहारे ड़र बिठाने का यह काम बहुत बारीकी से किया, आईटी सेल की भाषा सरकार के मंत्री की भाषा हो गयी और सरकार के समर्थक लोग की भी। लगता है मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया ने डर की फ्रेंचाइजी ले रखी है जहाँ कोई सरकार के बारे में आलोचनात्मक  बोलता है सोशल मीडिया से हमला होने लगता है व्हाट्सएप पर। घेरकर मार दिये जाने की धमकी से लेकर फोन नंबर पब्लिक कर गाली दिलवाने की धमकी तक का ऐलान यह सब एक आदमी को डराने के लिए काफी है।

सवाल -8  अल्पसंख्यक समुदाय पर प्रभाव

मुसलमानों  को किस हद तक यह महसूस कराया जा रहा है कि राजनीतिक रूप से वह कितने अप्रासंगिक हो चुके हैं इस समझना  अब कोई  रहस्यमय  बात नहीं है। अधिकांश मुस्लिम अभी महसूस करते हैं कि अगर वह अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर उतरेंगे तो मीडिया केवल उनकी दाढ़ी या उनकी शेरवानी दिखाएगी उनके मुद्दों की बात के बारे में बात नहीं करेगा। यह दरअसल अपने को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में मान लेने की  विडंबना है।

सवाल-9  क्या बोलना जोखिम भरा काम हो गया है

यह सवाल आप खुद से कीजिए क्या आपको सरकार के बारे बोलते वक्त डर लगता है? क्या आप हिसाब करने लगते हैं कि किस हद तक बोला जाए ताकि सरकार और सोशल मीडिया की नाराजगी न झेलनी पड़े, क्या आपको लगता है कि आपको टारगेट किया जाएगा। भारत में झूठे मुकदमों में फंसाना सबसे आसान काम है। यह काम सरकारे भी करती है और संगठन के लोग भी करते हैं।

एक बड़ी आबादी के भीतर धर्म के प्रति कट्टर आस्था भर दी गयी है। कैसे धर्म के आधार पर किसी गलत को सही और सही को गलत की तरह देखा जा सकता है। क्या धर्म इतना अंधा हो गया है कि भीड़ को हिंसा की इजाजत देता है? भीड़ संविधान से ही बड़ी हो गयी है?

सवाल-10  फेक न्यूज़ के प्रभाव

उदाहरण के तौर पर 9 दिसंबर 2017 को गुजरात चुनाव के समय नरेंद्र मोदी के दिये गये भाषण में फेक न्यूज़ का जिक्र इस किताब में किया गया है किस प्रकार से मणिशंकर अय्यर के घर पर हुई रात्रि भोज को एक गुप्त मीटिंग का नाम देकर पाकिस्तान का गुजरात चुनाव में हस्तक्षेप की बात अपने भाषण में मोदीजी करते हैं।

जिसका उद्देश्य गुजरात चुनाव के असली मुद्दों से ध्यान भटकना  है, जब फेक न्यूज़ की चर्चा या जानकारी किसी बड़े पद के व्यक्ति के द्वारा की जाती है तो जनता इसको इसी प्रकार से मानती है कि कुछ तो है। यही बात है जो फेक न्यूज़ के लिए  ईंधन का काम करती है, फेक न्यूज़ ने पहले खबरों और पत्रकारिता को फेंक किया और अब वह जनता को फेक रूप तैयार कर रहा है।

फेक न्यूज़ के बहाने एक नए किस्म का सेंसरशिप आ रहा है। आलोचनात्मक चिंतन को दबाया जा रहा है। फेक न्यूज़ का एक बड़ा काम है नफरत फैलाना, फेक न्यूज़ के खतरनाक खेल में बड़े अखबार और टीवी चैनल शामिल हैं, लेकिन भारत में अब कुछ वेबसाइटों ने फेक न्यूज़ से लोहा लेना शुरू कर दिया है।

लेकिन यह सब बहुत छोटे पैमाने पर हो रहा है इसकी पहुंच मुख्यधारा के मीडिया के फैलाए फेक न्यूज़ की तुलना में बहुत सीमित है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कैबिनेट मिनिस्टर का विरोध या असहमति  दर्ज करने पर कितने ही पत्रकारों आम नागरिकों पर पुलिस केस और मानहानि केस दर्ज भारत में हो रहे हैं। इन्हीं सब तरीकों से नागरिक अधिकारों को कम करने या उनको खत्म करने की सुनियोजित तरीके से योजना सरकारों के द्वारा चल रही है।

सवाल- 11  भीड़ मत बनिए

पुस्तक में भीड़ और प्रोपेगेंडा का नतीजा बताया गया कि किस प्रकार से जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने  भीड़ को और प्रोपेगंडा को इस प्रकार से तैयार कर दिया था। यह लोग खुद अपने आप से ही एक समय के बाद यहूदियों को मार रहे थे,  प्रोपेगंडा का एक ही काम है भीड़ का निर्माण करना ताकि खून भीड़ करें तो दाग भी उसी भीड़ के दामन पर आये। सरकार और महान नेता निर्दोष नज़र आये। भारत में सब हत्या करने वाली भीड़ को ही दोष दे रहे हैं, उस भीड़ को तैयार करने वाले प्रोपेगेंडा में किसी को दोष नजर नजर नहीं आता है।

भारत में अभी इन घटनाओं को इक्का-दुक्का रूप में ही पेश किया जा रहा है। जर्मनी में भी पहले चरण में यही हुआ जब तीसरा चरण आया तब उसका विकराल रूप नजर आया तब तक लोग छोटी-मोटी घटनाओं के प्रति सामान्य हो चुके थे, जो समाज इतिहास के जरूरी सबक भूल जाता है वह अपने भविष्य को खतरे में डालता है।

सवाल-12  मुद्दे से भटकाव के लिए नया एजेंडा

गोदी मीडिया ने मुद्दों से नागरिकों को दूर करने  के लिए एक नया नेशनल सिलेबस तैयार किया है। कभी खिचड़ी-बिरयानी, कभी ताजमहल -मंदिर, कभी नेहरू बेनाम पटेल या बोस बनाम नेहरू, कभी तीन तलाक, अकबर, औरंगजेब, शाहजहाँ, अशोक, टीपू सुल्तान रानी पद्मावती और सबसे ऊंची मूर्ति, हिंदू मुस्लिम, इन सब चीजों पर मीडिया रोज रात को चर्चा करता रहता है और चुनाव के समय इसमें दिन-रात चर्चा का केंद्र बना कर बैठ जाता है।

ऐसा लगता है कि पूरा देश की इतिहास की कक्षा में बैठा हुआ है और हम पहली बार इतिहास पढ़ रहे हैं। जो न्यूज़ एंकर और ट्रोल है वह हमारे  इतिहासकार है चाणक्य के नाम से आजकल  कुछ भी चल जाता है,  यहाँ मीडिया शो देख कर आपको ऐसा लगेगा कि इतिहास से जोड़ा जा रहा है आपको, लेकिन नहीं, बहुत चालाकी से आपको इतिहास से काटा जा रहा है।

आपको इतिहासविहीन बनाया जा रहा है। सच्चे हिन्दू की दुहाई देकर हम सब में एक बदले की भावना भरी जा रही है इतिहास की ज्यादती का  बदला आज लेना है।  रवीश का पुस्तक में कहना है कि इस नेशनल टॉपिक से खुद को बचा लीजिए। इसकी थीम बहुत घातक है।

सवाल 13 अंधविश्वास और बाबाओं का धंधा

बाबाओं के पास हर समस्या का समाधान है और देशभर के न्यूज़ चैनल सिर्फ एनडीटीवी को छोड़कर इस समाधान को बहुत बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करते रहते हैं। दिन रात, कुछ तो बाबाओं के अपने भी चैनल अब स्थापित हो चुके हैं। हिंदी बोलने वाला बाबा राशिफल कुंडली भाग्य अन्य समस्याओं का निदान करता है, जो बाबा इंग्लिश बोलने में एक्सपर्ट होते हैं वह अभी स्ट्रेस मैनेजमेंट का कोर्स करवाते हैं। बड़े-बड़े ऑफिसों, राजनीतिक रसूखदार लोगों, शासन प्रशासक लोगों में बड़ी डिमांड रहती है।

देश का राजनीतिक वर्ग अंधविश्वास का सबसे बड़ा संरक्षक है। बाबा लोग टीवी चैनलों पर हर तरह की समस्याओं पर बात कर रहे हैं, जैसे कब लड़का लड़की को प्रपोज करना चाहिए, सिजेरियन कब कराना चाहिए, ऑफिस में प्रमोशन का उचित समय क्या रहेगा, बिजनेस प्लान कब शुरू करना चाहिए, मुकदमा कब करना चाहिए- इन सब बातों को देखकर ऐसा लग रहा है कि बाबाओं और ज्योतिषी का हर दिन भारत की अलग-अलग समस्याओं के क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे हैं।  दिल पर मत लीजिए, यही हिंदुस्तान है। यही हम और आप है

सवाल-14  भारत में इश्क करना और उसकी चुनौतियाँ

भारत में इश्क करना अनगिनत सामाजिक धार्मिक धारणा से जंग लड़ना होता है।  मोहब्बत हमारे घरों के भीतर प्रतिबंधित विषय है। हम सबके जीवन में प्रेम की कल्पना फिल्मों से आती है। फिल्में हमारी दीवानगी की शिल्पकार है। हमारे शहरों में प्रेम की कोई जगह नहीं है।

प्रेम के दो पल के लिए रोज हजार पलों की यह लड़ाई आपको प्रेमी से ज्यादा एक्टिविस्ट बना देती है। इश्क हमें इंसान बनाता है, जिम्मेदार बनाता है। इश्क हमें थोड़ा कमजोर, थोड़ा संकोची बनाता है। एक बेहतर इंसान में यह कमजोरियाँ न हो तो वह शैतान बन जाता है।

प्रेम करने की सजा के तौर पर 2016 में दिल्ली के अंकित की हत्या धर्म के कारण और कोयंबटूर में  शंकर की हत्या दलित जाति के कारण की गयी। और इन सभी हत्या पर एक खास प्रकार की राजनीतिक मानसिकता का समर्थन मिलने से हत्या करने वाले को किसी प्रकार का पश्चाताप भी नहीं हो पा रहा है।

सवाल -15  प्राइवेसी के अधिकार और उस पर हो रहे हमले

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताया,  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार नीतियों की समीक्षा उस पर सवाल करना, उससे ऐसा असहमत होना इन सभी अधिकारों को भी संरक्षण प्राप्त है।

संविधान पीठ ने कहा कि यह सब करने से लोकतंत्र में एक नागरिक सक्षम बनता है और वह अपना राजनीतिक चुनाव बेहतर तरीके से कर पाता है। अनुच्छेद 19 ओर 21 से ही प्राइवेसी के अधिकार की खुशबू आती है। कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा ने कहा कि ‘मौलिक अधिकार का मतलब है जनता का सरकार पर अंकुश न कि सरकार का जनता पर अंकुश।’

रवीश की यह पुस्तक वर्तमान में देश के राजनीतिक सामाजिक आर्थिक सभी पक्षों पर सच्चाई को बयान करने  का एक साहसिक गंभीर प्रयास है, स्पष्ट तरीके से इन सब मुद्दों पर सोशल साइंटिस्ट भी वर्तमान में नहीं लिख पा रहे हैं और कुछ के द्वारा लिखा हुआ प्रयास भी वर्तमान में मात्र लाइब्रेरी या कुछ एकेडमिक लोगों के बीच में ही चर्चा का विषय बन के रह जाता है।

लेकिन रवीश की पुस्तक आमजन को आमजन की भाषा में ही समझाने का प्रयास है कि देश के सामने किस प्रकार के मुद्दे क्यों चलाये जा रहे हैं? उसके पीछे क्या रणनीति है? यह एक साजिश से सब  कुछ सुनियोजित तरीकों से किया जा रहा है और आम नागरिकों के अधिकारों पर किस प्रकार से हमला किया जा रहा है।

लोकतांत्रिक संस्थाओं को, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को किस प्रकार से कमजोर किया जा रहा है और यदि यही सब चलता रहा तो जल्दी ही भारत की राजनीतिक व्यवस्था उसी दौर में चली जाएगी जिस दौर में आम नागरिक अपनी आवाज को कभी भी बुलंद नहीं कर पायेगा।

समीक्षक : संजय कुमार, ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज(सांध्य) , दिल्ली विश्वविद्यालय

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At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

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सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 02 जनवरी 2025 | जयपुर : राजस्थान के दौसा जिले में टाइगर ने एक महिला सहित तीन लोगों पर हमला कर दिया। तीनों की हालत गंभीर है और उन्हें जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) हॉस्पिटल रेफर किया गया है। वहीं, ट्रैंकुलाइज करने पहुंची वन विभाग की टीम पर भी टाइगर ने हमला बोल दिया और गाड़ी के कांच फोड़ दिए।

सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

सरिस्का के 2 टाइगर्स की दौसा जयपुर में मूवमेंट, बांदीकुई महुखुर्द गांव में 03 लोगों पर टाइगर हमला

घटना जिले के बांदीकुई के महुखुर्द गांव में सुबह 7.30 बजे की है। टाइगर के हमले की सूचना के बाद वन विभाग की टीम भी पहुंच गई है। बताया जा रहा है टाइगर सरिस्का सेंचुरी से आया है। रेंजर दीपक शर्मा ने बताया- टाइगर की उम्र करीब 4 साल है। तीन बार इसे ट्रैंकुलाइज करने का प्रयास किया, लेकिन निशाना सही नहीं लग सका।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है।

बुधवार सुबह 11 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। टाइगर पलासन नदी की ओर भाग गया, जिसकी लगातार तलाश की जा रही है। बीते करीब 20 दिन से सेंचुरी के दो टाइगर गायब हैं और इनकी लोकेशन जयपुर और दौसा के आसपास बताई जा रही है।

हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि हमला करने वाला टाइगर इन्हीं में से एक है। उधर, सरिस्का से वन विभाग की टीम गांव पहुंच गई है। टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश की जा रही है। टीम को देखकर वह गली से निकलकर पलासन नदी की ओर भाग गया।

टाइगर के हमले में घायल तीनों लोगों को पहले बांदीकुई के उपजिला हॉस्पिटल ले जाया गया था।

खेत में किया हमला, घर के पास भी दिखा

टाइगर के हमले में घायल तीनों लोगों को पहले बांदीकुई के उपजिला हॉस्पिटल ले जाया गया था। महुखुर्द गांव के सरपंच पुष्पेंद्र शर्मा ने बताया कि मुहखुर्द गांव स्थित कोली मोहल्ले के पास एक गली में झाड़ियों के पास टाइगर बैठा हुआ था।

सुबह सात-साढ़े सात बजे आवाज सुनकर सबसे पहले उगा महावर (45) झाड़ियों की तरफ गईं। वह कुछ समझ पातीं, इससे पहले ही टाइगर उनकी पीठ पर हमला कर दिया। इसके बाद शोर-शराबा हुआ।

महिला को बचाने के लिए सुबह करीब 8 बजे विनोद मीणा (42) एवं बाबूलाल मीणा (48) हाथों में डंडा लेकर टाइगर के नजदीक पहुंचे। टाइगर ने इन पर भी हमला कर दिया। तीनों गंभीर रूप से घायल हो गये।

दौसा जिले के बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर के हमले के बाद दहशत का माहौल है।

सरिस्का क्षेत्र का टाइगर दौसा पहुंचा

दौसा जिले के बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर के हमले के बाद दहशत का माहौल है। सुबह करीब 9 बजे बैजूपाड़ा थाना पुलिस मौके पर पहुंची और ग्रामीणों को वहां से दूर हटाया। सुबह 9:30 बजे बांदीकुई वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और वीडियो देखकर टाइगर होने की पुष्टि की।

बांदीकुई वन रेंजर दीपक शर्मा ने बताया कि इसकी सूचना सरिस्का वन क्षेत्र को दी है। संभावना है कि यह टाइगर सरिस्का क्षेत्र से यहां पहुंचा है और अब हम इसकी जांच कर रहे हैं। टाइगर को ट्रैंकुलाइज कर सुरक्षित स्थान पर भेजा जाएगा।

उन्होंने बताया- टाइगर को रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग की टीमें जुटी है। शाम 3:45 बजे टाइगर सरसों के खेत से निकलकर पलासन नदी की ओर भाग गया। इस दौरान दो गाड़ियों में वन विभाग की टीमों ने उसका पीछा किया, लेकिन उसे ट्रैंकुलाइज नहीं किया जा सका।

2 महीने पहले भी आ चुका है बांदीकुई क्षेत्र में टाइगर

बांदीकुई क्षेत्र में 2 महीने पहले भी एक टाइगर सरिस्का से भटक कर मुही गांव के पास आ गया था। वह दो-तीन दिन तक यहां रहा और फिर सरिस्का लौट गया। वन अधिकारियों के अनुसार, मुही गांव सरिस्का जंगल के पास होने के कारण यहां कई बार टाइगर आ जाते हैं। तीन साल पहले भी ऐसा ही हुआ था।

एक टाइगर गुडा कटला और मुही के पास आया था। एक सप्ताह बाद वापस चला गया था। बुधवार सुबह लगभग 11:45 बजे सरिस्का से वन विभाग की टीम बांदीकुई (दौसा) के महुखुर्द गांव पहुंची। टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश की जा रही है।

सरिस्का से 30 किमी दूर निकला

अलवर DFO राजेंद्र हुड्डा ने बताया- अलवर के सरिस्का के जंगल से निकलकर टाइगर 30 किलोमीटर दूर रैणी के पास देवती का बास प्रधानों का गवाड़ा गांव में मंगलवार रात को ही घुस गया था। टाइगर को देखने के बाद कुत्ते भौंकने लगे। इसके बाद गांव में भी दहशत का माहौल हो गया।

ग्रामीणों ने छत पर चढ़कर टाइगर का वीडियो बनाया था। उस समय टाइगर गुस्से में दहाड़ा भी। इसके बाद टाइगर पास की पहाड़ी से होता हुआ आगे निकला। बुधवार सुबह दौसा के महुखुर्द गांव में टाइगर ने 3 लोगों पर हमला कर दिया।

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही है। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत में जा छुपा।

ट्रैंकुलाइज करने के लिए तीन टीमें एक्टिव हुईं

वन विभाग की टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही है। इसी बीच टाइगर एक खेत से निकलकर दूसरे खेत में जा छुपा। रेंजर शंकर सिंह ने बताया- वन विभाग की तीन टीमें टाइगर को ट्रैंकुलाइज करने की कोशिश कर रही हैं।

महुखुर्द गांव के पास एक सरसों के खेत में टाइगर के देखे जाने के बाद खेत को घेर लिया गया है। टाइगर ST 2402 को रेस्क्यू कर सरिस्का ले जाया जायेगा।

रणथंभौर से भी टीम मौके पर पहुंची, कल शुरू होगा रेस्क्यू

रेंजर दीपक शर्मा ने बताया- बुधवार को देर शाम तक टाइगर का रेस्क्यू करने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली। अंधेरा हो जाने के कारण अब रेस्क्यू को रोक दिया गया है। रणथंभौर से भी एक टीम आ गई है।

गुरुवार सुबह सरिस्का और रणथंभौर की टीम मिलकर टाइगर को रेस्क्यू करने का प्रयास करेगी। टीम बुधवार रातभर गांव में ही रहेगी। लोगों को घर में रहने की हिदायत दी गई है। टाइगर की लास्ट लोकेशन एक सरसों के खेत में थी।

दोपहर 1:30 सरसों के खेत में ट्रेंकुलाइज करने के दौरान टाइगर ने वनकर्मियों की पिकअप गाड़ी पर हमला कर दिया। जिससे ड्राइवर साइड वाली सीट का कांच टूट गया। इस दौरान गाड़ी में बैठी टीम बाल-बाल बच गई।

दोपहर 1:30 सरसों के खेत में ट्रेंकुलाइज करने के दौरान टाइगर ने वनकर्मियों की पिकअप गाड़ी पर हमला कर दिया। जिससे ड्राइवर साइड वाली सीट का कांच टूट गया। इस दौरान गाड़ी में बैठी टीम बाल-बाल बच गई।

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किताबों से प्रेम करने वाले डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को क्यों जलाया

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 23 दिसंबर 2024 | जयपुर : डॉ. अंबेडकर  मनुस्मृति को ब्राह्मणवाद की मूल संहिता मानते थे। यह किताब द्विजों को जन्मजात श्रेष्ठ और पिछडों, दलित एवं महिलाओं को जन्म के आधार पर निकृष्ट घोषित करती है। पिछड़े-दलितों एवं महिलाओं का एक मात्र कर्तव्य द्विजों और मर्दों का सेवा करना बताती है।

किताबों से प्रेम करने वाले डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को क्यों जलाया

ऐसी क्या वजहें रही होंगी जो आज से लगभग 92 साल पहले आज ही के दिन 25 दिसम्बर 1927 को बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर को पहली बार मनुस्मृति का प्रतीकात्मक रूप से दहन करना पड़ा? उस दौर में भारतीय समाज में जो कानून चल रहा था वह मनुस्मृति के विचारों पर आधारित था।

किताबों से प्रेम करने वाले डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति को क्यों जलाया

यह एक ब्राह्मणवादी, पुरुष सत्तात्मक, भेदभाव वाला कानून था, जिसमें इंसान को जाति और वर्ग के आधार पर बांटा गया था। आइए जानते हैं जिन व्यवस्थाओं के प्रति बाबासाहेब आंबेडकर को विरोध दर्ज करना पड़ा, उसके पीछे क्या कारण रहे होंगे?

हजारों वर्षों से देश जातिवाद का दंश झेल रहा है जो आज के इस आधुनिक दौर में और भी विकराल रूप लेता दिखाई पड़ रहा है। महिलाओं के अधिकारों की बात हो या वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले शूद्र की, ऊंची जातियों को इसमें अपना स्वामित्व ही क्यूं नजर आता रहा? क्यूं आज के इस वैश्विक दौर मे हमारा देश और पिछड़ता चला जा रहा है?

जहां मॉब लिंचिंग के बहाने जाति विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। क्या यह सब अचानक ही हो रहा है या इसके पीछे कुछ मंशाएं काम कर रही हैं? या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि मनुष्य-मनुष्य न होकर सिर्फ जाति रूपी कार्ड दिखाई देने लगा है जो सिर्फ वोट के समय खेला जाता है।

मनुस्‍मृति को बाबासाहेब ने क्यों जलाया ?

  • नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका – यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे।10/95-98

  • ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है । इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है।10/123-124

  • शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है। 10/129-130

  • जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो, उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नहीं है। 4/61-62

  • राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें। 7/37-38

  • जिस राजा के यहां शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है। 8/22-23

  • ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है, लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है। 9/189-190

  • यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है, तब दस अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए। 8/271-272

  • यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे, उसके ऊपर पेशाब कर दे तब उसके होठों को और लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे।  8/281-282

  • यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए। 8/279-280

  • इस पृथ्वी पर ब्राह्मण–वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नहीं है। अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए। 8/381

  • शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें। 8/271-272

  • शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।10/125-126

  • बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है। 11/131-132

  • यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए, क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है।

  • निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए।

  • ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है – गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना।

  • शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगवा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे।

  • राजा बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे।

  • जान बूझकर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते-बिल्ली आदि पाप श्रेणियों में जन्म लेता है।

  • ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।

  • शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नहीं बना सकते। गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें।

  • ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन ले क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नहीं है। उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है।

  • राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।

  • शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है। मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं। शूद्र टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करें। शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने।

  • यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।

  • दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित, चाण्डाल, मूर्ख और धोबी आदि अंत्यवासी हो, उनके साथ द्विज न रहें। लोहार, निषाद, नट, गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है।

  • शूद्रों के साथ ब्राह्मण वेदाध्ययन के समय कोई सम्बन्ध नही रखें, चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए।

  • स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता। यह शास्त्र द्वारा निश्चित है। अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं, वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं, यह शाश्वत नियम है।

  • अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराए।

  • शूद्रों को बुद्धि नही देनी चाहिए। अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं है। शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें।

  • जिस प्रकार शास्त्र विधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है।

  • शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नहीं करनी चाहिए।

  • ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो।

  • दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे।

  • किसी प्रयोजन की सिद्धि को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला उपदेश शूद्र को न दिया जाये। उसे जूठा यानी बचा हुआ भोजन न दे और न यज्ञकर्म से बचा हविष्य प्रदान करे। उसे न तो धार्मिक उपदेश दिया जाये और न ही उससे व्रत रखने की बात की जाये।

  • पुरुषों को अपने जाल में फंसा लेना तो स्त्रियों का स्वभाव ही है! इसलिए समझदार लोग स्त्रियों के साथ होने पर चौकन्ने रहते हैं, क्योंकि पुरुष वर्ग के काम क्रोध के वश में हो जाने की स्वाभाविक दुर्बलता को भड़काकर स्त्रियाँ, मूर्ख  ही नहीं विद्वान पुरुषों तक को विचलित कर देती है! पुरुष को अपनी माता, बहन तथा पुत्री के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इन्द्रियों का आकर्षण बहुत तीव्र होता है और विद्वान भी इससे नहीं बच पाते।

  • पुरुषों को अपने घर की सभी महिलाओं को चौबीस घंटे नियन्त्रण में रखाना चाहिए और विषयासक्त स्त्रियों को तो विशेष रूप से वश में रखना चाहिए! बाल्य काल में स्त्रियों की रक्षा पिता करता है! यौवन काल में पति  तथा वृद्धावस्था में पुत्र उसकी रक्षा करता है! इस प्रकार स्त्री कभी भी स्वतंत्रता की अधिकारिणी नहीं है!

  • स्त्रियों के चाल-ढाल में ज़रा भी विकार आने पर उसका निराकरण करनी चाहिये! क्योंकि बिना परवाह किये स्वतंत्र छोड़ देने पर स्त्रियाँ दोनों कुलों (पति व पिता ) के लिए दुखदायी सिद्ध हो सकती है! सभी वर्णों के पुरुष इसे अपना परम धर्म समझते है! और दुर्बल से दुर्बल पति भी अपनी स्त्री की यत्नपूर्वक रक्षा करता है!

  • स्त्री का पिता अथवा पिता की सहमति से इसका भाई जिस किसी के साथ उसका विवाह कर दे, जीवन-पर्यन्त वह उसकी सेवा में रत रहे और पति के न रहने पर भी पति की मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे।

  • स्त्री का पति दु:शील, कामी तथा सभी गुणों से रहित हो तो भी एक साध्वी स्त्री को उसकी सदा देवता के सामान सेवा व पूजा करनी चाहिए। स्त्री को अपने पति से अलग कोई यज्ञ, व्रत या उपवास नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उन्हें अपने पति की सेवा-सुश्रुषा से ही स्वर्ग प्राप्त हो जाता है।

मनु के इन कानूनों से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं।

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