जयपाल सिंह मुंडा को भारतरत्न दें केंद्र सरकार – प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 06 जुलाई 2024 | जयपुर : मूर्धन्य शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा ने महामहिम राष्ट्रपति और केंद्र सरकार से माँग कि है कि भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा।

महान, दूरदर्शी और  विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक पक्षधरों में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारत की जनजातियों के लिए वही है, जो बाबा साहब अंबेडकर का अनुसूचित जातियों के लिए है।

भारतरत्न के हकदार हैं देश के लिए गोल्ड जीतने वाले जयपाल सिंह मुंडा

आदिवासियों के लिहाज़ से कई मायनों में जयपाल सिंह मुंडा के योगदान उनसे ज्यादा भी कहा जा सकता है। 1928 के एमस्टर्डम ओलंपिक खेलों में भारत को पहली बार हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ही थे। जिन्होंने ने संविधान सभा में ताल थोक कर कहा था ‘मुझे गर्व है, मैं जंगली हूँ।’

ध्यातव्य हो कि उनके व्यक्तित्व और योगदान खिलाड़ी के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उतना ही महान है। उनकी शैक्षणिक विद्वता का एक प्रमाण यह भी है कि उन्होंने जिस साल भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया, उसी साल उन्होंने आईसीएस की परीक्षा भी पास करके दिखाई, वह परीक्षा जिसे कविगुरु रवींद्रनथ ठाकुर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ ठाकुर,  सुभाषचंद्र बोस और खुद जयपाल सिंह मुंडा ही पास कर पाये थे।

आदिवासी परिवार में 3 जनवरी, 1903 को राँची जिले के खुंटी सब डिवीज़न में तपकरा गाँव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान हॉकी की अपनी प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना आरंभ कर दिया था।

इसी कारण उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गयी थी। बाद में, अंग्रेज उन्हें भारत में धार्मिक प्रचार  के काम में लगाना चाहते थे, लेकिन जयपाल सिंह ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

मरांग गोमके  यानी  ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन करके आदिवासियों के शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। मध्य-पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने अलग आदिवासी राज्य बनाने की माँग की।

उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे। उनकी माँग पूरी नहीं हुई, जिसका नतीजा यह हुआ कि इन इलाकों में शोषण के खिलाफ नक्सलवाद जैसी समस्याएँ पैदा हुईं, जो आज तक देश के लिए परेशानी बनी हुई है।

जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के लिए सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे। संविधान सभा के लिए जब वे बिहार प्रांत से निर्वाचित हुए तो उन्होंने आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए उल्लेखनीय  प्रयास किये जिनका जिक्र आज भी बड़े सम्मान और चाव से किया जाता है।

अगस्त 1947 में जब अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों पर पहली रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो उसमें केवल दलितों के लिए ही विशेष प्रावधान किये गये थे।  दलित और आदिवासी अधिकारों के लिए जयपाल सिंह मुंडा और डॉ अंबेडकर ने एक स्वर में आवाज बुलंद की थी। ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा ने कड़े तेवर दिखाये और संविधान सभा में ज़ोरदार भाषण दिया।

संविधान सभा की गर्म और तीखी हो चुकी बहस के बीच अचानक ‘संविधान सभा में आदिवासियों के प्रतिनिधि के रूप में जयपाल मुंडा उठ खड़े होते हैं । काफी संजीदगी लेकिन बुलंद आवाज में कहते हैं कि ‘सिंधु-लोक मेरी विरासत है।  मैं भूला दिये गये उन हजारों अज्ञात योद्धाओं की ओर से बोल रहा हूँ जो आजादी की लड़ाई में आगे रहे ।

लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं है । देश के इन्हीं मूल निवासियों को बहस में कई महाशयों (मावलंकर आदि) ने पिछड़ी  जनजाति, आदिम जनजाति, जंगली, अपराधी कहा है ।  जयपाल सिंह ने अपने ‘आदिम लोगों’ की शिकायतों को स्वर देने में कोई कोताही नहीं बरती।

महाशय, मैं बताना चाहता हूँ कि ‘आपकी  भाषा में मैं जंगली हूँ, और मुझे जंगली होने पर गर्व है । उनका कहना था कि ‘उनके लोगों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है … उनका निरादार हो रहा है और पिछले 6000 सालों से उनकी उपेक्षा की जा रही है।’ कब और कैसे यह सब शुरू हुआ?

आदिवासी लोगों के अपमान और उनकी उपेक्षा के लिए जिम्मेदार ये लोग कौन हैं? उन्होंने कहा ‘आज़ादी की इस लड़ाई में हम सबसे आगे थे, हमने अंग्रेजों से लोहा लेने का साहस देश को दिया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली जनक्रांति कहे जाने वाले संथाल विद्रोह के नायक सिद्धू-कान्हो और उनके परिजनों के लिए उनकी लड़ाई अन्याय ही नियति बनी।’

आप तो बाहर से आये हुए लोग हैं, दिकु हैं, जो देश के संसाधनों को कब्जाने की जुगत में हैं।  तिलका माँझी, सिदो-कान्हू, बिरसा मुंडा से लेकर देश की आजादी तक लड़ाई लड़ी, पर उनको मिला क्या ? तिरस्कारपूर्ण जीवन! शोषण-अत्याचार और ऊपर से आपकी बदनीयती, अब सबको एक साथ चलना चाहिए।

पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं।  उन्हें मैदानों से खदेड़कर जंगलों में धकेल दिया गया और हर तरह से प्रताड़ित किया गया, लेकिन अब जब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।”

जयपाल सिंह के सशक्त हस्तक्षेप के बाद संविधान सभा को आदिवासियों के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा। इसका नतीजा यह निकला कि 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। उस समय इनकी आबादी करीब 7 फीसदी आँकी गयी थी। इस लिहाज से उनके लिए लोकसभा-विधानसभाओं में उनके लिए 7.5% आरक्षण और सामाजिक-आर्थिक न्याय पाने के लिए  नौकरियों  में प्रतिनिधित्व  सुनिश्चित किया गया।

यह समीचीन है कि राजनीतिक आरक्षण की समय-सीमा 10 वर्ष राखी गयी किंतु, नौकरियों में कोई भी समय-सीमा नहीं रखी गयी थी । दुर्भाग्यवश, कुछ संकीर्णतावादी मानसिकताओं ने प्रतिनिधित्व को आरक्षण में तब्दील करने की कोशिशें जोर-शोर से हो रही हैं।  किंतु, प्रतिनिधित्व का सवाल तब तक जारी रहेगा जब तक जाति-व्यवस्था जारी रहेगी क्योंकि जातीय-सोच की वजहों से प्रतिनिधित्व का सवाल उपजा है। वस्तुत: आरक्षण और प्रतिनिधित्व में फर्क है, आरक्षण वह है जो हजारों वर्षों मंदिरों में लिया जा रहा है। आरक्षण वह है जो न्यायपालिका में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लिया जा रहा है।

इसके बाद आदिवासी हितों की रक्षा के लिए जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में झारखंड पार्टी का गठन किया। 1952 में झारखंड पार्टी को काफी सफलता मिली थी। उसके 3 सांसद और 23 विधायक जीते थे। स्वयं जयपाल सिंह लगातार चार बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे थे। बाद में, झारखंड के नाम पर बनी तमाम पार्टियाँ उन्हीं के विचारों से प्रेरित हुईं।  

पूर्वोत्तर के आदिवासियों में फैले असंतोष को उस समय भी जयपाल सिंह मुंडा पहचान रहे थे। नागा आंदोलन के जनक जापू पिजो को भी उन्होंने झारखंड की ही तर्ज पर अलग राज्य की माँग के लिए मनाने की कोशिश की थी, लेकिन पिजो सहमत नहीं हुए। इसी का नतीजा ये रहा कि आज तक नागालैंड उपद्रवग्रस्त इलाका बना हुआ है।

जयपाल सिंह मुंडा के ही कारण आदिवासियों  (उनको इच्छाओं के विरुद्ध जनजातियों)  को  संविधान में कुछ विशिष्ट अधिकार मिल सके, हालाँकि, व्यवहार में उनका शोषण अब भी जारी है। खासकर, भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले राज्यों; छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और गुजरात में तो इनके सामूहिक खात्मे का अभियान छिड़ा हुआ है। उनके जल, जंगल, जमीन को छिनने की कुत्सित-मानसिकताओं द्वारा  सरदार पटेल तक का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

किसी को भी नक्सली बताकर गोली से उड़ा दिये जाने की परंपरा स्थापित हो चुकी है। यह दु:खद स्थिति खत्म करने के लिए एक बार फिर से जयपाल सिंह मुंडा की विचारधारा का अनुसरण किये जाने की जरूरत है। पूरे जीवन आदिवासी हितों के लिए लड़ते-लड़ते 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का निधन हो गया। दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद उन्हें विस्मृत कर दिया गया।

यह अत्यंत दु:ख की बात है कि आज जिनका कोई इतिहास नहीं है, उन्हें इतिहास के पन्नों से खोज- निकालकर नया इतिहास लिखने की कवायद आरंभ हो चुकी है, जबकि आदिवासियों के सबसे बड़े हितैषी  जयपाल सिंह मुंडा को नई पीढ़ी के लोग जानते तक नहीं हैं। उन्हें साजिशन विस्मृत किया जा रहा है।

जब छोटे-छोटे राजनीतिक हितों के लिए लड़ने वाले राजनेताओं और धन के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों  तक को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है, ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा जैसे बहुआयामी व्यक्ति के लिए भारत रत्न की माँग तक कहीं सुनाई नहीं देती है। उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए।

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मोदी ने ट्रम्प का 4 बार फोन नहीं उठाया बातचीत से इनकार जर्मन अखबार का खुलासा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 अगस्त 2025 | जयपुर – फ्रेंकफर्ट : अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने टैरिफ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को चार कॉल किये थे, लेकिन पीएम मोदी ने उनसे एक बार भी बात नहीं की। इससे दोनों नेताओं के बीच तनाव बढ़ गया। यह दावा जर्मन न्यूज पेपर #FAZ ने किया है। हालांकि अखबार ने अपनी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि ये कॉल कब किये गये थे।

मोदी ने ट्रम्प का 4 बार फोन नहीं उठाया बातचीत से इनकार जर्मन अखबार का खुलासा

एक जर्मन अखबार के मुताबिक ट्रम्प की आक्रामक ट्रेड पॉलिसी और भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहने से मोदी नाराज हैं। पहले दोनों नेताओं के बीच अच्छे रिश्ते थे, लेकिन अब भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए होने वाली बातचीत रद्द कर दी है। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को नई दिल्ली आने से रोक दिया गया।

ट्रम्प ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लगाया है, जिसमें से 25% टैरिफ जुर्माने के तौर पर लगाया गया है, जो 27 अगस्त यानी कल से लागू होगा। ट्रम्प का कहना है कि भारत के रूसी तेल खरीदने की वजह से पुतिन को यूक्रेन के खिलाफ जंग जारी रखने में मदद मिल रही है।

जर्मन अखबार में एक्सपर्ट्स के हवाले से लिखा है- आमतौर पर ट्रम्प का तरीका यह है कि पहले वे किसी देश पर व्यापार घाटे को लेकर हमला बोलते हैं, फिर ऊंचे टैरिफ की धमकी देते हैं। इसके बाद डरकर बातचीत शुरू होती है और आखिरकार वह ऊंचा टैरिफ लगाकर, फिर कुछ छूट देकर खुद को विजेता बताने की कोशिश करते हैं।

कई देशों के साथ ऐसा हुआ है और ट्रम्प ने यह दिखाया कि अमेरिकी बाजार पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, लेकिन मोदी ने इस बार झुकने से इनकार कर दिया।

न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल के भारत-चीन इंस्टीट्यूट के को-डॉयरेक्टर मार्क फ्रेजियर का कहना है कि अमेरिका की भारत को चीन के खिलाफ इस्तेमाल करने की रणनीति नाकाम हो रही है। भारत ने कभी भी चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ पूरी तरह खड़े होने का वादा नहीं किया था।

ट्रम्प के रवैये ने मोदी को एक दशक पुराना अपमान याद दिलाया

अखबार ने लिखा है कि पीएम मोदी को ट्रम्प के बर्ताव से बहुत ज्यादा बुरा महसूस हुआ है। वह मोदी को उस पुराने अपमान की याद दिला रहे हैं, जो लगभग एक दशक पहले उन्हें जिनपिंग से मिला था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तब गुजरात आए थे और मोदी से दोस्ती का वादा किया था, लेकिन उसी समय चीन की सेना हिमालय में भारतीय इलाके में घुस आई थी।

इसके बाद भी मोदी ने जिनपिंग से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश की, लेकिन हालात तब और बिगड़ गए जब चीनी सैनिकों से भारतीय जवानों की झड़प हो गई। उस घटना के बाद से कहा जाता है कि मोदी के मन में गहरी कड़वाहट बैठ गई।

यहां तक कि दिल्ली के पास ही ट्रम्प के नाम से लग्जरी टावर बने, जिनके 300 फ्लैट (कीमत 108 करोड़ रुपए तक) एक ही दिन में बिक गए, लेकिन हाल की घटनाओं ने माहौल बदल दिया। ट्रम्प ने भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहकर अपमानित किया। इससे दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई।

अब ट्रम्प का रवैया भी कुछ ऐसा ही हो गया है। फरवरी में वे मोदी को व्हाइट हाउस बुलाकर उनकी तारीफ कर रहे थे और उन्हें एक फोटो एल्बम भेंट कर रहे थे। दोनों देशों के रिश्ते काफी बेहतर चल रहे थे। 2014 में शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। इसके कुछ समय बाद ही डोकलाम में दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी।

2014 में शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। इसके कुछ समय बाद ही डोकलाम में दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी।

ट्रम्प-वियतनाम टैरिफ विवाद की वजह से सतर्क थे मोदी

अखबार में बताया गया है कि मोदी, वियतनाम लीडर और ट्रम्प के बीच हुए विवाद को लेकर भी सतर्क थे। दरअसल, ट्रम्प ने वियतनाम के सुप्रीम लीडर तो लम से टैरिफ मामले को लेकर फोन पर बात की थी।

इस बातचीत में कोई पक्का समझौता नहीं हुआ था। लेकिन ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया कि उन्होंने वियतनाम के साथ व्यापार समझौता कर लिया है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ था।

अखबार लिखता है कि मोदी नहीं चाहते कि भारत भी ऐसे किसी ‘स्टंट’ का हिस्सा बने, इसलिए उन्होंने ट्रम्प से बातचीत को लेकर साफ मना कर दिया। इसीलिए मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की प्रस्तावित दिल्ली यात्रा रद्द कर दी और संदेश दिया कि भारत ट्रम्प की इस कॉन्ट्रोवर्सी का हिस्सा नहीं बनेगा।

भारत की ग्रोथ रेट 1% तक घट सकती है

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के 50% टैरिफ से भारत के एक्सपोर्ट पर असर पड़ सकता है। भारत का 20% एक्सपोर्ट, जैसे कपड़े, ज्वेलरी और ऑटो पार्ट्स अमेरिका जाता है। इस भारी भरकम टैरिफ से भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5% से घटकर 5.5% हो सकती है।

इसके अलावा ट्रम्प ने पाकिस्तान में ऑयल रिजर्व डेवलप करने की बात कही थी और पाकिस्तानी सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। ये फैसले भी भारत को नाराज करने वाले थे।

ट्रम्प पिछले 3 महीने में करीब 30 बार भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का दावा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी साफ तौर पर इससे इनकार कर चुके हैं। भारत का साफ कहना है कि दोनों देशों के बीच सीजफायर आपसी बातचीत से हुआ है, इसमें किसी तीसरे पक्ष का रोल नहीं है।

रेफरेंस लिंक  https://www.faz.net/aktuell/wirtschaft/zollstreit-wie-modi-trump-die-stirn-bietet-110653695.html

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एशियाई वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 इंडोनेशिया में भारत ने जीते सिल्वर और ब्रॉन्ज

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 अगस्त 2025 | जयपुर – जकार्ता : भारतीय एथलीटों ने इंडोनेशिया बोगोर के जेएसआई रिज़ॉर्ट में आयोजित 13वीं एशियाई कप वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 में कांस्य पदक जीता है। उद्घाटन समारोह में भारतीय वुडबॉल टीम का नेतृत्व हाथों में तिरंगा लहराते हुए डॉ प्रेम प्रकाश मीणा ने किया जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मी बाई कॉलेज में सहायक प्रोफ़ेसर हैं। किंतु मैन स्ट्रीम मीडिया से यह ख़बर गायब है। इस चैंपियनशिप में ताइवान, चीन, ईरान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, भारत और मेज़बान देश इंडोनेशिया सहित पूरे एशिया के सैकड़ों एथलीट भाग ले रहे हैं।

एशियाई वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 इंडोनेशिया में भारत ने जीते सिल्वर और ब्रॉन्ज

भारतीय वुडबॉल टीम ने 7वीं AICE इंडोनेशिया वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 में अपना शानदार खेल दिखाया है। भारतीय पुरुष टीम ने जहां इस टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीता है तो सिंगल स्ट्रोक इवेंट में भरत कुमार ने सिल्वर मेडल जीता है।

वुडबॉल एक ऐसा खेल है जिसमें गेंद को गेट से पार कराने के लिए एक हथौड़े का इस्तेमाल किया जाता है। यह खेल घास, रेत या घर के अंदर खेला जा सकता है। यह खेल एशियाई समुद्र तट खेलों के कार्यक्रम में शामिल है और इसे 2008 में शामिल किया गया था। जल्द ही ओलंपिक गेम्स में भी हो सकता है शामिल। 

राजस्थान के भरत कुमार ने पुरुष एकल स्ट्रोक इवेंट में रजत पदक जीता

राजस्थान के भरत कुमार ने पुरुष एकल स्ट्रोक इवेंट में असाधारण कौशल और दृढ़ता दिखाते हुए रजत पदक जीता। उनके शानदार स्ट्रोक और दबाव में शांत रहने की क्षमता ने उन्हें मेडल दिलाया, जिससे वह भारत के सबसे होनहार वुडबॉल खिलाड़ियों में से एक बन गए। इसके अलावा, भारतीय पुरुष टीम ने स्ट्रोक प्रतियोगिता (टीम इवेंट) में कांस्य पदक हासिल कर शानदार सामूहिक प्रदर्शन किया। पदक विजेता टीम में शामिल थे:  
– विश्वराज परमार (गुजरात)  
– डॉ प्रेम प्रकाश मीणा (नई दिल्ली)  
– ललित डांगी (मध्य प्रदेश)  
– जयराज राठवा (गुजरात)  
– रितेश येतू गवास (गोवा)  
– सतीश चकाला (आंध्र प्रदेश)  

भारतीय वुडबॉल खिलाडियों की खूब हुई तारीफ

इंडोनेशियाई वुडबॉल एसोसिएशन (IWbA) के अध्यक्ष आंग सुनादजी ने खिलाड़ियों की उपलब्धियों की सराहना की और सुधार की गुंजाइश भी जताई। उन्होंने बुधवार, 20 अगस्त, 2025 को जकार्ता से एक आधिकारिक बयान में कहा, “मेजबान देश होने के नाते, अभी भी बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है। हालाँकि, ये केवल प्रारंभिक परिणाम हैं। कल, सभी टीमें अंतिम दौर में फिर से प्रतिस्पर्धा करेंगी, इसलिए सभी प्रतिभागियों के लिए अवसर खुला रहेगा।”

भारत में बढ़ रहा है वुडबॉल का क्रेज

भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प की बदौलत यह कामयाबी हासिल की है। दोहरे पदक ने न केवल भारत को गौरव दिलाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वुडबॉल में देश की स्थिति को और मजबूत किया है। इस चैंपियनशिप में भारत के विभिन्न हिस्सों से कुल 24 सदस्यों की टीम ने हिस्सा लिया, जो देश में वुडबॉल की बढ़ती लोकप्रियता और पहुंच को दर्शाता है।

क्या बोले भारतीय कप्तान

भारतीय टीम की अगुवाई महाराष्ट्र के एडवोकेट सुदीप मनवटकर ने किया, जिनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जीत पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए सुदीप ने कहा कि यह जीत भारतीय वुडबॉल की बढ़ती ताकत और देश में इस खेल के उज्ज्वल भविष्य को दिखाती है।

टीम मैनेजर राजेंद्र पिरनकर ने भी अपने मैनेजमेंट और नेतृत्व क्षमताओं के साथ खिलाड़ियों को प्रेरित किया और मैदान के अंदर और बाहर बेहतर कोऑर्डिनेशन सुनिश्चित किया। इंडोनेशिया में यह जीत भारतीय वुडबॉल के लिए एक मील का पत्थर है, जो न केवल व्यक्तिगत प्रतिभा की ताकत बल्कि टीम वर्क की भावना को भी दर्शाती है। विदेशी धरती पर तिरंगे का ऊंचा होना पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है।

वुडबॉल को भारत में 2002 में लाया गया था और इसे वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा बढ़ावा दिया जाता है , जो एक सरकारी पंजीकृत निकाय है जो राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन करता है और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में टीमें भेजता है। खिलाड़ी गेंद को गेटों की एक श्रृंखला के माध्यम से मारने के लिए एक मैलेट का उपयोग करते हैं, यह खेल गोल्फ या क्रोकेट के समान है, और इसे विभिन्न सतहों पर खेला जा सकता है। भारत में वुडबॉल समुदाय बढ़ रहा है, जिसका प्रमाण एशियाई और विश्व चैंपियनशिप में भारतीय टीम की भागीदारी और नागपुर और वडोदरा जैसे शहरों में राष्ट्रीय आयोजनों का आयोजन है।

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नागपुर 22 से 26 मार्च तक सीनियर और सब-जूनियर पुरुष एवं महिला राष्ट्रीय वुडबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी की। भारतीय वुडबॉल कैलेंडर में एक प्रमुख आयोजन होगा। इसके अतिरिक्त, वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WAI) ने इसी सत्र से राष्ट्रीय बीच वुडबॉल टूर्नामेंट शुरू करने का निर्णय लिया है।

भारत में वुडबॉल के बारे में मुख्य तथ्य:
परिचय: वुडबॉल को भारत में 2002 में पेश किया गया था।
शासी निकाय: वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WbAI) इस खेल को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय निकाय है, जिसके 26 संबद्ध राज्य संघ हैं।
गेमप्ले: गोल्फ की तरह, खिलाड़ी एक निर्दिष्ट कोर्स में गेट के माध्यम से गेंद को मारने के लिए मैलेट का उपयोग करते हैं। यह खेल घास, रेत या घर के अंदर खेला जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: भारतीय टीम ने पहली बार 2003 में किसी अंतर्राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लिया था और उसके बाद से विभिन्न विश्व और एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लिया है।
राष्ट्रीय कार्यक्रम: डब्ल्यूबीएआई सीनियर और सब-जूनियर राष्ट्रीय वुडबॉल चैंपियनशिप जैसे आयोजनों का आयोजन करता है, जो हाल ही में नागपुर जैसे स्थानों पर आयोजित किया गया ।
विश्वविद्यालय स्तर: यह खेल विश्वविद्यालयों में भी लोकप्रिय है, तथा पारुल विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में अखिल भारतीय अंतर-विश्वविद्यालय वुडबॉल चैम्पियनशिप जैसे आयोजन किये जाते हैं।

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