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मूकनायक मीडिया : डॉ अंबेडकर-मिशन की बुलंद आवाज का दस्तावेज
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1920 में दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों की पैरवी के लिए 'मूकनायक' नामक समाचार पत्र शुरू किया। यह समाचार पत्र सामाजिक अन्याय के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दलित सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
'मूकनायक' के शताब्दी (स्थापना वर्ष1920) वर्ष में सामाजिक समानता की लड़ाई हेतु अंबेडकर की विरासत को जारी रखने के लिए इसके डिजिटल संस्करण को 2020 में लॉन्च किया गया है।
‘मूकनायक-मीडिया’ विश्वविद्यालयों के पूर्व प्रोफेसरों, वरिष्ठ पत्रकारों की बाबासाहब के मिशन; दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने की अपनी कोशिश है क्योंकि जब मुख्यधारा का मीडिया देख-सुन ना सके, गोद में खेल रहा हो, लोभ-लालच में हो या भयातुर हो, तब संपूर्ण सत्यता के लिए ‘मूकनायक’ आपका नायक बनेगा, आपकी आवाज बनेगा, और बहुजन-न्याय का टूटा-भटका सिलसिला फिर से शुरू होगा। ताकि, आप लें सकें सही फ़ैसला क्योंकि महात्मा बुद्ध ने कहा है "सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में जानो !
बिरसा अंबेडकर फुले फ़ातिमा मिशन से जुड़े सिपाहियों और भीम-सैनिकों एवं पाठकों से हमारी बस इतनी-ही गुजारिश है कि हमें पढ़ें, सोशल-मीडिया प्लेटफार्मों पर शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें, हो सके तो अपने जज्बातों को लिखकर हम तक पहुँचावे, हम उसे भी छापेंगे।
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मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 13 सितंबर 2024 | जयपुर : दिल्ली शराब नीति से जुड़े CBI केस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार, 13 अगस्त को जमानत मिल गई। कोर्ट ने CBI की गिरफ्तारी को नियमों के तहत बताया। हालांकि, अदालत ने कहा, ‘ED मामले में जमानत मिलने के बावजूद केजरीवाल को जेल में रखना न्याय का मजाक उड़ाना होगा। गिरफ्तारी की ताकत का इस्तेमाल बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए।
सुप्रीमकोर्ट से केजरीवाल को शराब नीति से जुड़े CBI केस में जमानत
केजरीवाल 177 दिन बाद जेल से बाहर आएंगे। शराब नीति केस में उन्हें 21 मार्च को अरेस्ट किया था। बाद में 26 जून को CBI ने उन्हें जेल से हिरासत में लिया था। दिल्ली CM ने इस गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए जमानत याचिका लगाई थी। 5 सितंबर को पिछली सुनवाई में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केजरीवाल को शराब नीति से जुड़े CBI केस में जमानत
केजरीवाल के खिलाफ दो जांच एजेंसी (ED और CBI) ने केस दर्ज किया है। ED मामले में दिल्ली CM को सुप्रीम कोर्ट से 12 जुलाई को जमानत मिल चुकी है। अगर आज CBI केस में केजरीवाल को जमानत मिल जाती है तो वह 177 दिन बाद जेल से बाहर आएंगे।
केजरीवाल की जमानत पर AAP नेताओं के बयान
AAP नेता मनीष सिसोदिया: ‘झूठ और साजिशों के खिलाफ लड़ाई में आज पुनः सत्य की जीत हुई है। एक बार पुनः नमन करता हूं बाबा साहेब अंबेडकर जी की सोच और दूरदर्शिता को, जिन्होंने 75 साल पहले ही आम आदमी को किसी भावी तानाशाह के मुकाबले मजबूत कर दिया था। सत्यमेव जयते! सत्य की शक्ति से टूटे तानाशाह की जेल के ताले।’
AAP सांसद राघव चड्ढा: ‘सत्य परेशान हो सकता है मगर पराजित नहीं! अंततः माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के बेटे अरविंद केजरीवाल को जेल की बेड़ियों से आजाद करने का फैसला सुना दिया है। माननीय सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया!’
दिल्ली की मंत्री आतिशी: ‘सत्यमेव जयते.. सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।’
शराब नीति केस- केजरीवाल अब तक 156 दिन जेल में बिता चुके
केजरीवाल को ED ने 21 मार्च को गिरफ्तार गिरफ्तार किया था। 10 दिन की पूछताछ के बाद 1 अप्रैल को तिहाड़ जेल भेजा गया। 10 मई को 21 दिन के लिए लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए रिहा किया गया। ये रिहाई 51 दिन जेल में रहने के बाद मिली थी। 2 जून को केजरीवाल ने तिहाड़ जेल में सरेंडर कर दिया।
आज यानी 13 सितंबर को केजरीवाल की रिहाई होती है तो उन्हें जेल गए कुल 177 दिन हो जाएंगे। इसमें से वह 21 दिन अंतरिम जमानत पर रहे। यानी केजरीवाल ने अब तक कुल 156 दिन जेल में बिताए हैं।
CBI ने पांचवी और आखिरी चार्जशीट में कहा- केजरीवाल शुरू से आपराधिक साजिश में शामिल रहे
CBI ने 7 सितंबर को राउज एवेन्यू कोर्ट में अपनी पांचवी और आखिरी चार्जशीट दाखिल की थी। CBI ने कहा कि जांच पूरी हो गई है और इसमें सामने आया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शराब नीति बनाने और उसे लागू करने की आपराधिक साजिश में शुरू से शामिल थे। वे पहले से ही शराब नीति के प्राइवेटाइजेशन का मन बना चुके थे।
चार्जशीट के मुताबिक, मार्च 2021 में जब तत्कालीन डिप्टी CM मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता में शराब नीति तैयार की जा रही थी, तब केजरीवाल ने कहा था कि पार्टी को पैसों की जरूरत है। उन्होंने अपने करीबी और AAP के मीडिया और संचार प्रभारी विजय नायर को फंड जुटाने का काम सौंपा था।
हरियाणा चुनाव नजदीक, AAP को कितना फायदा
अरविंद केजरीवाल को जमानत मिलना आम आदमी पार्टी के लिए काफी अहम है। दिल्ली से सटे हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यहां सभी 90 सीटों पर एक फेज में 5 अक्टूबर को वोटिंग होगी। रिजल्ट 8 अक्टूबर को आएगा।
हरियाणा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन नहीं है। AAP पूरी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में केजरीवाल के जेल से बाहर आने पर प्रचार का जिम्मा उन पर होगा। केजरीवाल के पास करीब 25 दिन प्रचार के लिए होंगे। उनके पास सिंपैथी वोट आ सकता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान भी केजरीवाल को प्रचार के लिए 21 दिन की अंतरिम जमानत मिली थी। तब पार्टी को ज्यादा फायदा नहीं मिला। AAP ने पांच राज्यों की 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें सिर्फ तीन में उन्हें जीत मिली थी। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां अलग हैं, यहां AAP को कितना फायदा मिलेगा। यह रिजल्ट ही बताएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में दोषी करार होने के बाद सजा काट रहे व्यक्ति की दायर याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार उसकी सजा माफ करने में देरी लगा रही है।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच को दिल्ली सरकार ने कहा कि सीएम अरविंद केजरीवाल जेल में हैं। ऐसे में उनकी गैरमौजूदगी के चलते सजा माफ वाली फाइलों पर उनके साइन नहीं हो पा रहे हैं।
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डूँगरी बाँध और डीएमआईसी भूमि-हड़प अभियान
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 03 अगस्त 2025 | दिल्ली : शायद यह सिर्फ एक संयोग हो, या शायद नियति और न्याय की कोई ज्यादा उलझी हुई पहेली। देश की कुल आबादी में मात्र 9 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का है, लेकिन वन और खनिज संपदा का ज्यादातर उखड़े हुए टूटी हुई हिस्सेदारी उनकी रिहाइश वाले इलाकों में ही मौजूद है। बिजली और खनन से जुड़ी देश की 40 प्रतिशत विकास परियोजनाएं भी इन्हीं इलाकों में चल रही हैं। विकास यहाँ किसी अंधड़ या चक्रवात की तरह आता है, जिसमें रातों-रात गाँव के गाँव उजड़ जाते हैं।
डीएमआईसी के तहत डूँगरी बाँध ऐसे ही एक अन्य भूमि-हड़प अभियान का हिस्सा बनने जा रहा है। आर्य और द्रविड़ सभ्यताओं की शुरुआत के भी हजारों साल पहले से सैंधव लोग यहाँ रहते आ रहे हैं। पीड़ित लोग बुलडोजरों और अर्थमूवरों की गड़गड़ाहट सुनते अपने-अपने मवेशी लिये बंजारों की तरह नया ठौर तलाशने निकलने को मजबूर हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनावों में वे जिन नेताओं को वोट देते आयें हैं, उनमें से अधिकाँश मुँह फ़ेर चुके हैं या उनके मुँह में दही जम चुका है।
गाँवों में डीएलसी दरें कम है। भूमि अवाप्त कर मुआवजा राशि डीएलसी दर से दी जायेगी। काश्तकारों की भूमि अवाप्त की जा रही है तो बाजार मूल्य से मुआवजा राशि मिलनी चाहिए। दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआईसी) को केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ने नेशनल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इम्प्लेंटेशन ट्रस्ट (एनआईसीडीआईटी) का दर्जा दे दिया है। अब यह ट्रस्ट विभिन्न राज्यों से आने वाले इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के प्रस्ताव को फंडिंग, जमीन अधिग्रहण में मदद और उसे एप्रूव करने संबंधी सभी काम करेगा।
डूँगरी बाँध के पहले चरण में करौली सवाई माधोपुर जिलों के 76 गाँवों की बारी है, पर यह सिलसिला यहाँ यूकने वाला कदापि नहीं है। जैसे-जैसे बाँध की ऊँचाई बढ़ेगी वैसे-वैसे इसकी जद में न जाने ऐसे कितने इलाके और आयेंगे। अभी से लोगों दिलोंदिमाग में ऐसे-ऐसे मंजर दिखने लगे हैं मानो उनकी आँखें उस मायावी सपने को को देखने के लिए तैयार ही नहीं है। यहाँ जाकर लगता ही नहीं कि यहाँ कभी लोग रहते रहे होंगे, उनके मांदलों की थाप और गीतों की हेक गूंजती होगी। कुतर्कों का एक दुष्चक्र अर्से से आदिवासी विस्थापन के मुद्दे को घेरे हुए है। क्या देश हाई वे के बगैर रह सकता है?
अडानी-अंबानी, टाटा-बिड़ला के बगैर क्या यह तरक्की के रास्ते पर एक कदम भी आगे बढ़ा सकता है? अगर नहीं तो आदिवासी हितों पर हंगामा करना भूलकर काम की बात कीजिए। जान कर आश्चर्य होता है कि इस तर्क की काट पहली बार भारत सरकार द्वारा गठित एक कमिटी ने की है। पिछली यूपीए सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहल पर बनी इस कमिटी की रिपोर्ट कहती है कि भारत में आदिवासी जमीनों पर देसी-विदेशी कंपनियों के कब्जे की मौजूदा लहर कोलंबस के बाद संसार के सबसे बड़े भूमि हड़प अभियान का रूप ले रही है।
डीएमआईसी (दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा) परियोजना का कुल क्षेत्रफल लगभग 436,000 वर्ग किलोमीटर है। यह गलियारा डीएफसी के दोनों तरफ 150-200 किलोमीटर की पट्टी में फैला हुआ है। निवेश क्षेत्रों का न्यूनतम क्षेत्रफल 200 वर्ग किलोमीटर और औद्योगिक क्षेत्रों का न्यूनतम क्षेत्रफल 100 वर्ग किलोमीटर होगा। इस परियोजना में 100 अरब डॉलर अर्थात 87,20,29,64,90,000/ रुपए का अनुमानित निवेश होगा।
राजस्थान का इतिहास गौरवशाली रहा उसमें आदिवासी सर्वोपरि है। यहाँ के प्रकृति पुत्र आदिवासी इस धरा पर आदिमकाल से ही रहते आये है उनमें प्रमुख मीणा और भील है। खास तौर पर खनन और हाई वे के मामले में तो स्थिति जंगल राज जैसी है। डूँगरी बाँध पर हुई खोजबीन से पता चला है कि ज्यादातर कंपनियों को प्रतिवर्ष जितनी जमीन ख़रीदने की अनुमति दी गई थी, उसका चार से पांच गुना वे पिछले कई सालों से बेचती आ रही हैं और अब तक उनके खिलाफ कोई सरकारी नोटिस भी जारी नहीं हुआ है।
जाहिर है, डीएमआईसी के इलाकों में सरकारी जानकारी से भी कहीं ज्यादा विस्थापन हो रहा है और आगे यह भयावहता विकराल रूप धारण करेगी। केंद्र और राज्य सरकारों की चिंता कंपनियों को आदिवासियों की जमीन कोडियों के भाव बेचकर लाइसेंस देकर खत्म हो जाती है और लाइसेंस का कई गुना काम वे अफसरों को घूस खिला के कर लेती हैं। कानूनी तौर पर इन इलाकों में रहने वालों का न तो कोई हक अपने आस-पास की वन संपदा पर है, न ही अपने पैरों के नीचे पड़ी खनिज संपदा पर।
उनके हिस्से सिर्फ विनाश और विस्थापन आता है, और एक आत्मघाती गुस्सा, जो कभी माओवादियों के तो कभी मधु कोड़ा जैसे नेताओं के दरवाजे लाकर छोड़ जाता है। हाल के अपने एक बयान में प्रधानमंत्री ने भी आदिवासियों की तकलीफ से हामी भरी है। लेकिन वन और खनिज संपदा में अगर स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाती तो ऐसे सहानुभूतिपूर्ण बयानों का भी क्या फायदा है।
25 साल बाद भी बीसलपुर बांध परियोजना के विस्थापित को जमीन आवंटित क्यों नहीं की। बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र के विस्थापित पुनर्वास कॉलोनियों में सड़क जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं। बीसलपुर बांध 18 साल पहले बन गया, विस्थापितों को सड़कों के नाम पर मिले गड्ढे। 30 से ज्यादा गाँवों के हजारों लोगों को डूब क्षेत्र से पुनर्वास कॉलोनियों में विस्थापित किया गया। हमारा कसूर इतना था कि बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र में हमारे गाँव और ढाणियां आ गए। अपना गाँव छूटा और विस्थापित हो गए।
आधे से ज्यादा राजस्थान को पानी पिलाने वाले विस्थापित खुद फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर है। बीसलपुर परियोजना के कारण कुल 63 गॉव विस्थापित हुए है। जिसमें डूब से प्रभावित परिवारों की संख्या 5700 है एवम् जनसंख्या लगभग 30,000 है। डूब क्षेत्र की कुल भूमि 21836 हैक्टेयर है। अब बात करते हैं बीसलपुर परियोजना के विस्थापितों के दर्द की, तो बांध बनने के 23 साल बाद भी 118 पुर्नवास कॉलोनियों में से 6 कॉलोनियाँ अभी तक विकसित नहीं हुई हैं। पुर्नवास कॉलोनियों में सम्पर्क सड़क, आन्तरिक सड़के, हैण्ड पम्प, कुंआ, स्कूल, चिकित्सा भवन, बीज गोदाम, सामुदायिक भवन का आज भी अभाव है। यदि बन गये है तो उनकी हालत जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।
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राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव में हमेशा की तरह बैकफुट पर बीजेपी
मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 नवंबर 2024 | दिल्ली : राजस्थान की 7 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे शनिवार को सामने आयेंगे। सियासी गलियारों में चर्चा है कि इस बार भी उपचुनाव में बीजेपी अपना इतिहास दोहरायेगी और जीत-हार की परंपरा बदल नहीं पायेगी।
राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव के नतीजे बीजेपी बैकफुट पर
प्रदेश में हुए पिछले 16 उपचुनाव के नतीजों पर गौर करें तो ये परंपरा रही है कि – ‘बीजेपी उपचुनाव में हमेशा बैकफुट पर रहती है’ और ‘मतदान घटने पर कांग्रेस को फायदा होता है।’ इस बार 7 में से 6 सीट पर मुख्य चुनाव से वोटिंग घटी है। तो घटी हुई वोटिंग का बीजेपी को नुकसान होगा?
राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव में हमेशा की तरह बैकफुट पर बीजेपी
विधानसभा चुनाव की बजाय उप चुनाव में वोटिंग गिरी
उपचुनाव वाली 7 सीटों पर विधानसभा चुनाव, 2023 में कांग्रेस ने 4 और बीजेपी, आरएलपी व बीएपी ने 1-1 सीटों पर कब्जा जमाया था। इस बार हुए इन सीटों के मतदान प्रतिशत को देखें तो खींवसर सीट को छोड़ सभी पर मतदान के आंकड़े मुख्य चुनाव की तुलना में गिरे हुए हैं।
2013 से अब तक हुए उपचुनाव में इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें, तो मुख्य चुनाव के मुकाबले लगभग हर सीट पर वोटिंग प्रतिशत गिरा ही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि राजस्थान के उपचुनाव में एक बार भी सरकार के बनने-बिगड़ने जैसे समीकरण नहीं बने। यदि ऐसे समीकरण बनते हैं, तो वोटर्स में अलग ही उत्साह नजर आता है।
राजनीतिक एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा के अनुसार सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने के कारण वोटर्स अमूमन सुस्त हो जाते हैं। ऐसा ही हाल 7 सीटों के मतदान में भी देखने को मिला है। केवल एक सीट खींवसर को छोड़ दें तो बाकी 6 सीटों पर मतदान प्रतिशत मुख्य चुनाव की तुलना में कम ही हुआ है।
उपचुनाव वाली मौजूदा सीटों पर मतदान के आंकड़े और उससे बन रहे समीकरण जान लेते हैं….
राजनीतिक एक्सपर्ट नारायण बारेठ के मुताबिक मुख्य चुनाव के मुकाबले 7 में से 6 सीटों पर कम वोटिंग हुई है। माना जाता है कि कम वोटिंग का फायदा कांग्रेस को मिलता है, लेकिन इस बार समीकरण इतने उलझे हुए हैं कि ये बात खरी उतरती नहीं दिख रही।
वहीं, वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर मीणा ने मूकनायक मीडिया को बताया कि यह कहना भी मुश्किल है कि पिछले उप चुनाव के जैसे कांग्रेस इस उप चुनाव में भी एक तरफा प्रदर्शन करेगी। किंतु बीजेपी का प्रदर्शन इस उप चुनाव में सुधरने की संभावना नहीं है और कांग्रेस कुछ सीटें गंवा सकती है।
अब पिछले 11 साल में हुए 16 सीटों पर जानते हैं, उप चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहा?
मुख्य चुनावों के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता रहा है कि अगर उपचुनाव में वोटिंग परसेंटेज कम रहता है तो फायदा कांग्रेस को मिलता है और अधिक रहने पर बीजेपी को। यह पैटर्न राजस्थान के उपचुनावों में अब तक सटीक भी साबित हुआ है।
भास्कर ने 2013 से अब तक 16 सीटों के उपचुनाव में हुए मतदान का रिकॉर्ड खंगाला। सामने आया कि एक-दो सीटों को छोड़कर वोटिंग प्रतिशत गिरा ही है। पैटर्न के मुताबिक बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस भारी पड़ी है। उपचुनावों में कांग्रेस ने 16 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की है। बीजेपी ने मात्र 3 और बीएपी व आरएलपी ने 1-1 सीट जीती हैं।
अब एक नजर पिछली 16 सीटों पर उपचुनाव के नतीजों और वोटिंग पैटर्न के प्रभाव पर डालते हैं… जब सत्ता में थी बीजेपी, फिर भी उपचुनाव वाली 8 में से 6 सीटें हारी
2013 से 2024 के बीच 8 सीटों के उपचुनाव तब हुए जब बीजेपी सरकार सत्ता में थी। फिर भी बीजेपी 2 सीटें ही सीटें जीत पाई, कांग्रेस ने 5 पर कब्जा जमाया। मौजूदा बीजेपी सरकार में दो सीटों पर उपचुनाव पहले हो चुके हैं।
श्रीकरणपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और तत्कालीन विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर के निधन के कारण चुनाव स्थगित करना पड़ा था। यहां उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा बागीदौरा सीट पर भी बीजेपी को हार मिली। यहां कांग्रेस ने सीट गंवाई और बीएपी को जीत हासिल हुई।
इन 8 सीटों के चुनाव में केवल 2 बार अपवाद देखने को मिला। सूरजगढ़ सीट पर हुए 2014 के उपचुनाव में मुख्य चुनाव से अधिक मतदान हुआ, जो कांग्रेस के खाते में गई। वहीं, कोटा साउथ पर 2014 के उपचुनाव में मतदान गिरने के बावजूद बीजेपी ने जीत दर्ज की।
सत्ता में कांग्रेस (2018 से 2023) – उप चुनाव वाली 8 सीटें
कांग्रेस जब सत्ता में रही, उस दौरान हुए 8 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे भी उसके पक्ष में आए। कांग्रेस ने 8 में से 6 पर जीत हासिल की। बीजेपी को एक और आरएलपी को 1 सीट मिली।
पिछले 9 उप चुनावों में वोटिंग पैटर्न से जो रिजल्ट आये, क्या इस बार वैसे ही रिजल्ट देखने को मिलेंगे?
एक्सपर्ट्स के अनुसार पिछले 9 उप चुनाव में कम वोटिंग का फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को मिला। इस बार 7 सीटों के उप चुनाव में 6 सीटों पर वोटिंग परसेंटेज गिरा है, लेकिन सीधा फायदा कांग्रेस को होगा, यह कहना मुश्किल है। इस बार समीकरण बहुत उलझे हुए हैं।
आमतौर पर देखा गया है कि सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी का उपचुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। जबकि कांग्रेस ने सरकार होते हुए भी और विपक्ष में रहते हुए भी बीजेपी के मुकाबले अधिक सीटें जीती हैं। लेकिन इस बार संकेत कुछ अलग मिल रहे हैं। कम वोटिंग परसेंटेज से कांग्रेस को फायदा होने जैसी बातों पर इस उप चुनाव का रिजल्ट विराम लगा सकता है।
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