चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 17 जुलाई 2024 | कैलाश मानसरोवर : 2020 के बाद यह लगातार पांचवां साल है, जब चीन भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोक रहा है। अभी भारत से कैलाश मानसरोवर जाने के दो रास्ते हैं। फिलहाल इन दोनों रास्तों पर रोक है। सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी सरकार इस मसाले पर चुप्पी साधे हुए है। विदेश मंत्री भी चुप हैं। लगता है शिवभक्त हिंदुओं को कैलाश मानसरोवर के दर्शन दूरबीन से करने पड़ेंगे। 

चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

15 जुलाई 2024 को मोदी सरकार 2.1 ने एक RTI के जवाब में कहा है कि पवित्र धार्मिक स्थल पर जाने से रोककर चीन दो अहम समझौते को तोड़ रहा है। इसके अलावा चीन इसी इलाके में एक मिसाइल साइट्स भी बना रहा है। पर मोदी की ऐतिहासिक चुप्पी बरक़रार है! 

चीन ने कैलाश मानसरोवर का रास्ता रोका बनाया मिसाइल-बेस पर मोदी की चुप्पी

भारत से गलवान और पैंगोंग झील इलाके में मुंह की खाने के बाद भी चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। चीनी एयरफोर्स भारत से सटे समूचे बॉर्डर पर हवाई किलेबंदी को मजबूत कर रही है।

वहीं, ताजा सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन कैलास मानसरोवर के पास जमीन से हवा में मार करने वाली (SAM Missile) मिसाइलों को तैनात किया है। माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना में राफेल लड़ाकू विमानों के शामिल होने के बाद से डरा चीन अपनी हवाई सीमा को सुरक्षित बनाने में जुट गया है।

मानसरोवर के पास बनाया मिसाइल साइट

ओपन सोर्स इंटेलिजेंस detresfa की सैटलाइट तस्वीरों के अनुसार, चीन कैलास मानसरोवर के इलाके में न केवल अपनी सैन्य तैनाती को बढ़ाया है। बल्कि, वह मानसरोवर के पास एक मिसाइल साइट का निर्माण भी कर रहा है।

इस इलाके में 100 किमी की GEOINT स्कैनिंग से पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की ऐक्टिविटी का पता चला है। Epoch Times के अनुसार, चीन की बॉर्डर इलाके में मिसाइल साइट बनाने की चाल उसकी आक्रमक रवैये से बिलकुल मेल खाता है। चीन नहीं चाहता कि सीमा पर शांति हो। ताजा सैटेलाइट तस्वीरों से सीमा पर तनाव और बढ़ने की उम्मीद है।

सवाल 1: कैलाश मानसरोवर कहां है?

जवाब: कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है। वही तिब्बत, जिस पर चीन अपना अधिकार बताता है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इस इलाके में ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो जगहों के बीच एक पहाड़ है। यहीं पर इस पहाड़ के दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है।

इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। उत्तराखंड के लिपुलेख से यह जगह सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। फिलहाल कैलाश मानसरोवर का बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है। इसलिए यहां जाने के लिए चीन की अनुमति चाहिए होती है।

सवाल 2: कैलाश मानसरोवर का क्या महत्व है और इसको लेकर अभी विवाद क्यों शुरू हुआ है?

जवाब: हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यही वजह है कि हिंदुओं के लिए ये बेहद पवित्र जगह है। जैन धर्म में ये मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष की प्राप्ति की थी। 2020 से पहले हर साल करीब 50 हजार हिंदू यहां भारत और नेपाल के रास्ते धार्मिक यात्रा पर जाते हैं।

2020 से चीन, भारतीयों को कैलाश मानसरोवर की यात्रा की इजाजत नहीं दे रहा है। इसी महीने भारत सरकार ने एक RTI के जवाब में कहा है कि कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन 2013 और 2014 में हुए दो प्रमुख समझौते तोड़ रहा है।

न्यूज 18 के मुताबिक मोदी सरकार ने कहा है कि चीन अपने मनमुताबिक एकतरफा फैसला लेकर इन समझौतों को नहीं तोड़ सकता है। अगर चीन को भारत के साथ किए इस समझौते में कोई बदलाव करना है तो वह भारत सरकार के साथ सहमति से ही ऐसा कर सकता है।

सवाल 3: कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच हुए किन दो समझौतों को चीन तोड़ रहा है?

जवाब: कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारत और चीन के बीच दो प्रमुख समझौते हुए हैं…

पहला समझौता: 20 मई 2013 को भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा मार्ग से होकर कैलाश मानसरोवर जाने के लिए ये समझौता हुआ। उस समय के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच यह समझौता हुआ था। इससे यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रा मार्ग खुल गया।

दूसरा समझौता: 18 सितंबर 2014 को नाथूला के जरिए कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को लेकर भारत और चीन में ये समझौता हुआ था। विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री वांग यी के साथ ये समझौता किया था।

दोनों समझौते की भाषा लगभग एक समान है। ये समझौते दोनों देशों के विदेश मंत्री के पेपर पर हस्ताक्षर के दिन से लागू हैं। हर 5 साल के बाद ऑटोमेटिक तरीके से इसकी समय सीमा बढ़ाने की बात समझौते में लिखी है।

ऐसा तब तक होगा, जब तक कि कोई भी पक्ष समझौते को तोड़ने के अपने इरादे के बारे में समाप्ति की तारीख से छह महीने पहले लिखित रूप में दूसरे देश को नोटिस न दे।

इस समझौते में ये भी कहा गया है कि दोनों पक्ष जरूरत के हिसाब से आम सहमति से प्रोटोकॉल में बदलाव भी कर सकते हैं। भारत सरकार का कहना है कि चीन ने 6 महीने पहले बताए बिना ही भारतीयों लोगों के कैलाश मानसरोवर जाने पर रोक लगा दी है। यह एकतरफा फैसला है, जो गलत है।

सवाल 4: क्या नेपाल से होकर भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकते हैं और इसके लिए चीन का वीजा जरूरी है?

जवाब: किसी भी रास्ते से कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भारतीयों के पास चीन का वीजा होना जरूरी है। भारत से कैलाश मानसरोवर जाने के दो रास्ते हैं, जबकि कुछ लोग नेपाल के रास्ते भी यहां जाते हैं।

नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट का दावा है कि पिछले साल नेपाल से होकर कैलाश मानसरोवर जाने वाले 50 हजार यात्रियों को चीन ने इजाजत नहीं दी। इनमें नेपाल और भारत दोनों देशों के लोग शामिल हैं। भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए हैं। ये नियम इतना ज्यादा कड़े हैं कि भारतीयों के लिए नेपाल से होकर भी कैलाश मानसरोवर जाना मुश्किल हो गया है।

मई 2023 में एसोसिएशन ऑफ कैलाश टूर ऑपरेटर्स नेपाल (AKTON) ने नेपाल में चीनी राजदूत चेन सोंग को पत्र लिखकर कैलाश यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए नियम में बदलाव की मांग की थी। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि इस कड़े नियम की वजह से उनके परिवार की आमदनी न के बराबर हो गई है।

‘विऑन न्यूज वेबसाइट’ के मुताबिक भारतीय तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर भेजने वाली नेपाली कंपनियों को 60,000 डॉलर यानी 8 मिलियन नेपाली रुपए चीन सरकार के पास एडवांस में जमा करने होते हैं। चीन ने ये नियम 2020 के बाद बाद बनाए हैं।

चीन कब्जे वाले तिब्बत पर्यटन ब्यूरो ने भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा पैकेज की कीमत एक व्यक्ति के लिए 1800 अमेरिकी डॉलर यानी 1.5 लाख से बढ़ाकर 3000 अमेरिकी डॉलर यानी 2.50 लाख कर दी है। इतना ही नहीं नेपाल में कैलाश मानसरोवर जाने के लिए आवेदन करने वाले लोगों को खुद मौजूद रहना जरूरी है।

उनके बायोमेट्रिक लिए जाते हैं। इस तरह अब नियम इतने कड़े हो गए हैं कि भारतीयों के लिए यहां जाना लगभग असंभव है। जनवरी 2024 में 38 भारतीय नेपाल के नेपालगंज से चार्टर्ड विमान के जरिए ‘कैलाश मानसरोवर दर्शन के लिए गए थे।

सवाल 5: चीन भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से क्यों रोक रहा है?

जवाब: ORF के फेलो और विदेश मामलों के जानकार सुशांत सरीन कहते हैं कि पहली बात तो ये है कि चीन ऐसा फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। कैलाश मानसरोवर का हिस्सा उसके कब्जे में है, ऐसे में वह चाहे तो आपको वहां जाने देगा और नहीं चाहेगा तो नहीं जाने देगा। भले ही इससे किसी की भी धार्मिक भावनाएं आहत हों।

किसी धार्मिक स्थल पर जाने को लेकर कोई इंटरनेशनल कानून नहीं, बल्कि उस देश का कानून लागू होता है। कल को पाकिस्तान चाहे तो करतारपुर कॉरिडोर बंद कर सकता है। इसी तरह सऊदी अरब मक्का मदीना जाने वालों को लेकर कानून बनाता है।

अब दूसरी बात ये है कि अगर चीन भारत के साथ किए 2 समझौते को तोड़कर भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोक रहा है तो इसका मतलब है कि दोनों देशों के रिश्ते सही नहीं हैं। चीन यह बताने की कोशिश कर रहा है कि भारत अगर ताइवान, साउथ चाइना शी में चीन के खिलाफ जाएगा तो उसे LAC पर ही इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

वहीं, डिफेंस एक्सपर्ट जे.एस. सोढी का कहना है कि 2019 में आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद चीन ने दो आक्रामक फैसले लिए…

  • गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों से झड़प।
  • कैलाश मानसरोवर जाने वाले भारतीय लोगों पर रोक।

सोढ़ी का कहना है कि LAC पर 50 हजार जवानों की तैनाती। कई मौकों पर अलग-अलग जगहों पर सैनिकों में भिड़ंत। 2025 तक पूरे जिंजियांग प्रांत में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाकर तैयार करने का लक्ष्य और अब कैलाश मानसरोवर जाने से भारतीयों को रोकना। ये सारी बातें इस ओर इशारा कर रही हैं कि भारत और चीन के संबंध काफी बुरे दौर की तरफ बढ़ रहे हैं।

सवाल 6: भारत सरकार ने कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने के लिए क्या प्रयास किए हैं?

जवाब: 26 जून 2017 में आखिरी बार चीन ने ये बयान जारी किया था कि कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर उसकी भारत सरकार के साथ बातचीत हो रही है। चीन ने अपने बयान में कहा कि लिपुलेख के रास्ते यात्री कैलाश पर्वत तक जा सकेंगे, लेकिन फिलहाल सिक्किम के नाथूला से होकर कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते पर रोक लगाई गई है। 1981 में लिपुलेख से होकर मानसरोवर जाने की यात्रा शुरू हुई थी।

नाथूला से होकर कैलाश पर्वत जाने पर पाबंदी दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प की वजह से लगाई गई थी। 2020 के बाद से दोनों देशों के बीच यात्रा शुरू करने को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है।

भारत सरकार ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से 90 किलोमीटर दूर धारचूला में ओल्ड लिपुपास चोटी पर भी एक ऐसी जगह को विकसित किया है, जहां से कैलाश पर्वत की चोटी नजर आती है। इस जगह से कैलाश पर्वत करीब 50 किलोमीटर दूर है।

5 जुलाई को पिथौरागढ़ की जिलाधिकारी रीना जोशी ने बताया है कि 15 सितंबर से लिपुलेख के पास ओल्ड लिपुपास चोटी से कैलाश पर्वत के दर्शन शुरू हो जाएंगे। सीधे कैलाश पर्वत की चोटी यहां से नजर आती है।

इसके अलावा यात्री दूरबीन के जरिए भी यहां से कैलाश पर्वत और कैलाश मानसरोवर के खूबसूरत हिस्से को देख सकेंगे। पूजा-पाठ की व्यवस्था भी यहां की जा रही है। ओल्ड लिपुपास जाने के लिए लिपुलेख तक गाड़ी से और फिर कैलाश पर्वत को देखने के लिए लगभग 800 मीटर पैदल चलना होता है।

सवाल 7: क्या चीन कैलाश मानसरोवर के पास मिसाइल तैनात करने की कोशिश कर रहा है?

जवाब: अगस्त 2020 में ‘दि प्रिंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीयों को कैलाश मानसरोवर जाने से रोककर चीन यहां मिसाइल साइट्स बना रहा है। एक सैटेलाइट इमेज में भारतीय सीमा लिपुलेख से 100 किलोमीटर की दूरी पर चीन एक मिसाइल साइट्स बनाता दिख रहा है। रिपोर्ट में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों यानी SAM की तैनाती के लिए ये साइट्स बनाए जाने का दावा किया गया।

चीन ने 7 जगहों पर तैनात कीं SAM मिसाइलें

चीन ने लद्दाख से सटे अपने रुटोग काउंटी, नागरी कुंशा एयरपोर्ट, उत्‍तराखंड सीमा पर मानसरोवर झील, सिक्किम से सटे श‍िगेज एयरपोर्ट और गोरग्‍गर हवाई ठिकाने, अरुणाचल प्रदेश से सटे मैनलिंग और लहूंजे में सतह से हवा में मार करने वाली म‍िसाइलें तैनात की हैं।

इन ठिकानों पर चार से पांच म‍िसाइल लॉन्‍चर तैनात हैं। इसके अलावा उनकी मदद के लिए रेडॉर और जेनेटर भी दिखाई दे रहे हैं। कुछ तस्‍वीरों में नजर आ रहा है कि चीनी मिसाइलें भारत से होने वाले किसी हवाई हमले के खतरे को देखते हुए पूरे अलर्ट मोड में है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

 

MOOKNAYAK MEDIA

At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

Related Posts | संबद्ध पोट्स

मोदी ने ट्रम्प का 4 बार फोन नहीं उठाया बातचीत से इनकार जर्मन अखबार का खुलासा

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 अगस्त 2025 | जयपुर – फ्रेंकफर्ट : अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने टैरिफ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को चार कॉल किये थे, लेकिन पीएम मोदी ने उनसे एक बार भी बात नहीं की। इससे दोनों नेताओं के बीच तनाव बढ़ गया। यह दावा जर्मन न्यूज पेपर #FAZ ने किया है। हालांकि अखबार ने अपनी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि ये कॉल कब किये गये थे।

मोदी ने ट्रम्प का 4 बार फोन नहीं उठाया बातचीत से इनकार जर्मन अखबार का खुलासा

एक जर्मन अखबार के मुताबिक ट्रम्प की आक्रामक ट्रेड पॉलिसी और भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहने से मोदी नाराज हैं। पहले दोनों नेताओं के बीच अच्छे रिश्ते थे, लेकिन अब भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए होने वाली बातचीत रद्द कर दी है। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को नई दिल्ली आने से रोक दिया गया।

ट्रम्प ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लगाया है, जिसमें से 25% टैरिफ जुर्माने के तौर पर लगाया गया है, जो 27 अगस्त यानी कल से लागू होगा। ट्रम्प का कहना है कि भारत के रूसी तेल खरीदने की वजह से पुतिन को यूक्रेन के खिलाफ जंग जारी रखने में मदद मिल रही है।

जर्मन अखबार में एक्सपर्ट्स के हवाले से लिखा है- आमतौर पर ट्रम्प का तरीका यह है कि पहले वे किसी देश पर व्यापार घाटे को लेकर हमला बोलते हैं, फिर ऊंचे टैरिफ की धमकी देते हैं। इसके बाद डरकर बातचीत शुरू होती है और आखिरकार वह ऊंचा टैरिफ लगाकर, फिर कुछ छूट देकर खुद को विजेता बताने की कोशिश करते हैं।

कई देशों के साथ ऐसा हुआ है और ट्रम्प ने यह दिखाया कि अमेरिकी बाजार पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, लेकिन मोदी ने इस बार झुकने से इनकार कर दिया।

न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल के भारत-चीन इंस्टीट्यूट के को-डॉयरेक्टर मार्क फ्रेजियर का कहना है कि अमेरिका की भारत को चीन के खिलाफ इस्तेमाल करने की रणनीति नाकाम हो रही है। भारत ने कभी भी चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ पूरी तरह खड़े होने का वादा नहीं किया था।

ट्रम्प के रवैये ने मोदी को एक दशक पुराना अपमान याद दिलाया

अखबार ने लिखा है कि पीएम मोदी को ट्रम्प के बर्ताव से बहुत ज्यादा बुरा महसूस हुआ है। वह मोदी को उस पुराने अपमान की याद दिला रहे हैं, जो लगभग एक दशक पहले उन्हें जिनपिंग से मिला था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तब गुजरात आए थे और मोदी से दोस्ती का वादा किया था, लेकिन उसी समय चीन की सेना हिमालय में भारतीय इलाके में घुस आई थी।

इसके बाद भी मोदी ने जिनपिंग से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश की, लेकिन हालात तब और बिगड़ गए जब चीनी सैनिकों से भारतीय जवानों की झड़प हो गई। उस घटना के बाद से कहा जाता है कि मोदी के मन में गहरी कड़वाहट बैठ गई।

यहां तक कि दिल्ली के पास ही ट्रम्प के नाम से लग्जरी टावर बने, जिनके 300 फ्लैट (कीमत 108 करोड़ रुपए तक) एक ही दिन में बिक गए, लेकिन हाल की घटनाओं ने माहौल बदल दिया। ट्रम्प ने भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहकर अपमानित किया। इससे दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई।

अब ट्रम्प का रवैया भी कुछ ऐसा ही हो गया है। फरवरी में वे मोदी को व्हाइट हाउस बुलाकर उनकी तारीफ कर रहे थे और उन्हें एक फोटो एल्बम भेंट कर रहे थे। दोनों देशों के रिश्ते काफी बेहतर चल रहे थे। 2014 में शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। इसके कुछ समय बाद ही डोकलाम में दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी।

2014 में शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। इसके कुछ समय बाद ही डोकलाम में दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई थी।

ट्रम्प-वियतनाम टैरिफ विवाद की वजह से सतर्क थे मोदी

अखबार में बताया गया है कि मोदी, वियतनाम लीडर और ट्रम्प के बीच हुए विवाद को लेकर भी सतर्क थे। दरअसल, ट्रम्प ने वियतनाम के सुप्रीम लीडर तो लम से टैरिफ मामले को लेकर फोन पर बात की थी।

इस बातचीत में कोई पक्का समझौता नहीं हुआ था। लेकिन ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया कि उन्होंने वियतनाम के साथ व्यापार समझौता कर लिया है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ था।

अखबार लिखता है कि मोदी नहीं चाहते कि भारत भी ऐसे किसी ‘स्टंट’ का हिस्सा बने, इसलिए उन्होंने ट्रम्प से बातचीत को लेकर साफ मना कर दिया। इसीलिए मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की प्रस्तावित दिल्ली यात्रा रद्द कर दी और संदेश दिया कि भारत ट्रम्प की इस कॉन्ट्रोवर्सी का हिस्सा नहीं बनेगा।

भारत की ग्रोथ रेट 1% तक घट सकती है

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के 50% टैरिफ से भारत के एक्सपोर्ट पर असर पड़ सकता है। भारत का 20% एक्सपोर्ट, जैसे कपड़े, ज्वेलरी और ऑटो पार्ट्स अमेरिका जाता है। इस भारी भरकम टैरिफ से भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5% से घटकर 5.5% हो सकती है।

इसके अलावा ट्रम्प ने पाकिस्तान में ऑयल रिजर्व डेवलप करने की बात कही थी और पाकिस्तानी सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। ये फैसले भी भारत को नाराज करने वाले थे।

ट्रम्प पिछले 3 महीने में करीब 30 बार भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का दावा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी साफ तौर पर इससे इनकार कर चुके हैं। भारत का साफ कहना है कि दोनों देशों के बीच सीजफायर आपसी बातचीत से हुआ है, इसमें किसी तीसरे पक्ष का रोल नहीं है।

रेफरेंस लिंक  https://www.faz.net/aktuell/wirtschaft/zollstreit-wie-modi-trump-die-stirn-bietet-110653695.html

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

मुनीर ने भारत को अमेरिका से दी परमाणु जंग की धमकी, अमेरिका का दोगलापन उजागर

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 12 अगस्त 2025 |  दिल्ली : मुनीर ने भारत को अमेरिका से दी परमाणु जंग की धमकी, अमेरिका का दोगलापन उजागर हुआ। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने भारत को परमाणु जंग की धमकी है। मुनीर ने सिंधु जल संधि स्थगित करने को लेकर भारत पर 10 मिसाइलों से हमला कर तबाह करने की बात कही।

मुनीर ने भारत को अमेरिका से दी परमाणु जंग की धमकी, अमेरिका का दोगलापन उजागर

पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान की नींव कलमे (इस्लाम धर्म का मूल मंत्र) पर रखी गई है। हम हर मामले में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा धर्म अलग है, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं। हमारी संस्कृति और सोच अलग है। यही टू-नेशन थ्योरी की नींव थी।

अमेरिका दौरे पर पहुंचे पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने एक बार फिर से कश्मीर को पाकिस्तान के ‘गले की नस’ बताया है। इससे पहले अप्रैल में भी मुनीर ने ऐसा ही बयान दिया था। उन्होंने कहा था- कश्मीर हमारी गले की नस था, है और रहेगा। हम इसे कभी नहीं भूलेंगे।

मुनीर ने कहा कि कश्मीर, भारत का आंतरिक मसला नहीं है, बल्कि एक अधूरा अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। उन्होंने कहा कि कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में है और पाकिस्तान उसका समर्थन करता है। फ्लोरिडा के टैम्पा में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर (बाएं) और अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल डैन केन।

फ्लोरिडा के टैम्पा में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर (बाएं) और अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल डैन केन।

मुनीर की डेढ़ महीने में दूसरी बार अमेरिका यात्रा

पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक मुनीर एक बार फिर से अमेरिका पहुंचे हैं, लेकिन वे कब पहुंचे इसकी तारीख नहीं बताई गई है। मुनीर की यह डेढ़ महीने में दूसरी अमेरिका यात्रा है। उन्होंने फ्लोरिडा के टैम्पा शहर में रविवार को पाकिस्तानी प्रवासियों को संबोधित किया।

मुनीर ने कहा कि भारत क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने पर तुला हुआ है। उन्होंने आगाह किया कि कोई भी गलती इलाके में बड़े संघर्ष की वजह बन सकती है। मुनीर ने भारत पर झूठे बहाने बनाकर पाकिस्तान पर हमला करने का आरोप लगाया।

भारत-PAK जंग रोकने के लिए ट्रम्प को शुक्रिया कहा

मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प को धन्यवाद दिया और कहा कि उनकी रणनीति से पाकिस्तान-भारत के बीच युद्ध टला। मुनीर ने इस दौरान उन्होंने भारतीय एजेंसी रॉ (R&AW) को आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया।

मुनीर ने कहा कि अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते से पाकिस्तान में बड़े निवेश की संभावना है। उन्होंने बताया कि अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई और चीन के साथ कई समझौते चल रहे हैं, जो आर्थिक सहयोग को बढ़ाएंगे।

विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानियों की तारीफ की

मुनीर ने विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानियों को गर्व बताया और कहा कि उनका पाकिस्तान छोड़ना ‘प्रतिभा पलायन’ का मामला नहीं है, बल्कि ‘प्रतिभा हासिल’ करने का मामला है।

उन्होंने कहा कि विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानी भी अपने देश के लिए उतने ही भावुक हैं, जितना पाकिस्तान में रहने वाले पाकिस्तानी। मुनीर ने उनसे कहा कि वे यकीन रखें पाकिस्तान का भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने लोगों से पाकिस्तान में निवेश बढ़ाने में योगदान देने की अपील की।

अमेरिकी अधिकारियों से भी मिले मुनीर

मुनीर ने अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया। उन्होंने निवर्तमान कमांडर जनरल माइकल कुरिल्ला की तारीफ की और नए कमांडर एडमिरल ब्रैड कूपर को शुभकामनाएं दीं।

इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल डैन केन से भी मुलाकात की और उन्हें पाकिस्तान आने का न्योता दिया। उन्होंने अन्य देशों के रक्षा प्रमुखों से भी बातचीत की।

इससे पहले जून में अपनी पिछली यात्रा में मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ मुलाकात की थी। वह पहले ऐसे पाकिस्तानी सेना प्रमुख बने, जिन्होंने किसी मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति से आमने-सामने बातचीत की।

पाकिस्तानी सेना के फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर के हालिया बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया 

मंत्रालय ने कहा है कि, ‘परमाणु हमले की धमकी देना पाकिस्तान की आदत में शामिल है।’ विदेश मंत्रालय का यह बयान दिप्रिंट में प्रकाशित उस रिपोर्टके बाद आया है, जिसमें आसिम मुनीर की एक चेतावनी का ज़िक्र किया गया है।

अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान आसिम मुनीर ने कहा था कि अगर भारत के साथ भविष्य की जंग में पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरा हुआ तो वह पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देगा।

जिस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, ”हमारा ध्यान उन बयानों की ओर गया है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने अमेरिका की यात्रा के दौरान दिए हैं। परमाणु हमले की धमकी देना पाकिस्तान की आदत में शामिल है।”

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Color

Secondary Color

Layout Mode