अमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बनें

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 10 अगस्त 2024 |  जयपुर :  21 साल 24 दिन की उम्र में अमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बन गए हैं। शुक्रवार को अमन ने पेरिस ओलिंपिक में भारत को रेसलिंग का पहला मेडल दिलाया। इसी के साथ अमन ने भारतीय रेसलर्स की उस विरासत को आगे बढ़ाया, जिसकी नींव 1952 में केडी जाधव ने ब्रॉन्ज जीतकर रखी थी।

अमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बनें

भारतीय रेसलर्स ने लगातार 5वें ओलिंपिक खेलों में मेडल जीता है। भारत ने पेरिस ओलिंपिक में छठा मेडल जीत लिया है। रेसलर अमन सहरावत ने फ्री-स्टाइल 57kg कैटेगरी में प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज को 13-5 से हराया। अमन पहले दौर के बाद 6-3 से आगे रहे। फिर दूसरे राउंड में 7 अंक लेकर मैट पर अपना दबदबा बनाया।

अमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बनें

जीत के बाद अमन ने कहा- यह मेडल माता-पिता और पूरे देश को समर्पित है। उन्होंने 11 साल की उम्र में माता और पिता को खो दिया था और मौसी के पास रहने लगे। अमन ने यह जीत जोरदार अटैक और स्टेमिना से हासिल की। पहला पॉइंट गंवाने के बाद अमन ने आक्रामक रुख अपनाया और विपक्षी को थकाया।

फिर दूसरे राउंड में 7 अंक बटोरकर एकतरफा अंदाज में ब्रॉन्ज जीता। अमन ने फ्री-स्टाइल 57kg कैटेगरी में प्यूर्टो रिको के डरियन टोई क्रूज को 13-5 से हराया। यह आसान नहीं था, इस मैच से ठीक पहले उनका वजन 61 किलो से ज्यादा हो गया था। लेकिन अमन और उनके कोच ने महज 10 घंटे के अंदर 4.6 KG वजन घटाया।

सेलिब्रेशन…

जीत के बाद अमन ने तिरंगे के साथ सेलिब्रेशन किया।

जीत के बाद अमन ने तिरंगे के साथ सेलिब्रेशन किया।

प्यूर्टो रिको के डरियन टोई क्रूज को 13-5 के एकतरफा अंतर से हराने के बाद अमन।

प्यूर्टो रिको के डरियन टोई क्रूज को 13-5 के एकतरफा अंतर से हराने के बाद अमन।

ब्रॉन्ज मेडल मैच में अमन की नाख से खून निकलने लगा था, लेकिन फिर भी उन्होंने मैच जीत लिया।

ब्रॉन्ज मेडल मैच में अमन की नाख से खून निकलने लगा था, लेकिन फिर भी उन्होंने मैच जीत लिया।

अब अमन की जीत की कहानी…

1. अमन ने 10 घंटे में घटाया 4.6 kg वजन

सेमीफाइनल के बाद अमन का वजन 61.5 KG हो गया था, जो उनकी वेट कैटेगरी 57 किलोग्राम से 4.5 किलो ज्यादा था। यहां सीनियर भारतीय कोच जगमंदर सिंह और वीरेंद्र दहिया के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती थी कि सुबह से पहले वजन कैसे कम करें।

दहिया बताते हैं कि यह एक मिशन जैसा था, क्योंकि विनेश के साथ जो हुआ उसके बाद हम एक और झटका बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। विनेश 100 ग्राम ज्यादा होने के कारण फाइनल के लिए अयोग्य हो गईं और अब कोर्ट में केस लड़ रही हैं। कोच वीरेंद्र दाहिया का मिशन कैसे पूरा हुआ। आगे कुछ पॉइंट्स में जानिए…

  • रात में डेढ़ घंटे का मैट सेशन किया। इसमें कोच ने खड़े होकर कुश्ती करवाई और उसके बाद एक घंटे गर्म पानी से नहलाया।
  • रात 12:30 बजे जिम में ट्रेडमिल पर एक घंटे तक बिना रुके दौड़ लगाई। पसीना बहाने से वजन कम करने में मदद मिली।
  • 30 मिनट का ब्रेक दिया गया, उसके बाद 5-5 मिनट के सौना बाथ के 5 सेशन हुए।
  • आखिरी सेशन के बाद अमन का वजन 900 ग्राम ज्यादा था। उसे मसाज दी।
  • उनसे हल्की जॉगिंग करने को कहा। इसके बाद 15-15 मिनट के 5 रनिंग सेशन हुए।
  • सुबह 4:30 बजे तक अमन का वजन 56.9 किलोग्राम हो गया था, जो 57 kg से 100 ग्राम कम था।
  • सेशन के बीच में अमन को नींबू और शहद के साथ गुनगुना पानी और थोड़ी-सी कॉफी पीने को दी गई। फिर अमन को नींद नहीं आई।
  • कोच दहिया ने रात भर कुश्ती के वीडियो देखे। हर घंटे अमन का वजन जांचते रहे।

मुकाबला जीतने के बाद भारतीय रेसलर अमन सहरावत।

प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज के खिलाफ डिफेंड करते भारतीय पहलवान अमन सहरावत।

प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज के खिलाफ डिफेंड करते भारतीय पहलवान अमन सहरावत।

प्रतिद्वंदी से अपनी टांग छुड़ाने का प्रयास करते हुए अमन सहरावत।

प्रतिद्वंदी से अपनी टांग छुड़ाने का प्रयास करते हुए अमन सहरावत।

2. एक्सपर्ट से मैच एनालिसिस- विपक्षी पहलवान को थकाकर पॉइंट्स लिए

अमन ने यह मुकाबला अपने जोरदार अटैक, स्टैमिना और रणनीति से जीता। पहला पॉइंट गंवाने के बाद अमन ने आक्रामक रुख अपनाया। उन्होंने विपक्षी पर लेग अटैक किया और उन्हें घुटनों पर ले जाकर अंक बटोरे। पहले राउंड में अमन ने बड़ा दांव नहीं खेला और अपना स्टेमिना बचाकर रखा। यहां अमन विपक्षी को थका रहे थे।

जब प्रतिद्वंद्वी थक गया तो फिर अटैक शुरू किया और दूसरे दौर से 7 अंक निकाल लिए। इसमें भी उन्होंने लेग अटैक से अंक निकाले। इतना ही नहीं, जब प्रतिद्वंदी ने अमन के लेग पर अटैक किया तो खुद को बखूबी बचाया। मेरे हिसाब से यह मुकाबला एकतरफा रहा। इस पूरे मुकाबले में अमन ही आगे रहे।

3. रोचक फैक्ट और रिकॉर्ड

  • सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट, सिंधु से भी छोटे अमन सहरावत भारत के सबसे युवा ओलिंपिक मेडलिस्ट बन गए हैं। उन्होंने 21 साल 24 दिन की उम्र में ओलिंपिक ब्रॉन्ज जीता। अमन से पहले पीवी सिंधु ने 21 साल एक महीने 14 दिन की उम्र में रियो ओलिंपिक का सिल्वर जीता था।
  • पेरिस ओलिंपिक में रेसलिंग का पहला मेडल दिलाया अमन सहरावत ने पेरिस ओलिंपिक में रेसलिंग का पहला मेडल दिलाया है। इससे पहले विनेश फोगाट फाइनल तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन अयोग्य घोषित होने के कारण उन्हें अब तक मेडल नहीं मिला।
  • भारत ने पेरिस में छठा मेडल जीता भारत ने पेरिस ओलिंपिक में छठा मेडल जीता है, इनमें एक सिल्वर और 5 ब्रॉन्ज शामिल हैं। एक दिन पहले नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में सिल्वर जीता है। वहीं, शूटर्स ने 3 ब्रॉन्ज दिलाए हैं।
  • लगातार 5वें ओलिंपिक में रेसलिंग का मेडल रेसलर्स ने लगातार 5वें ओलिंपिक में भारत को मेडल दिलाया है। सुशील कुमार ने 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में ब्रॉन्ज जीता था। उसके बाद से रेसलर्स हर ओलिंपिक में मेडल ला रहे हैं।
  • ओलिंपिक में रेसलिंग का 8वां मेडल रेसलिंग का पहला मेडल 1952 में केडी जाधव ने दिलाया था। तब से अब तक भारत रेसलिंग में 8 मेडल जीत चुका है। इनमें 2 सिल्वर और 6 ब्रॉन्ज शामिल हैं।

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एशियाई वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 इंडोनेशिया में भारत ने जीते सिल्वर और ब्रॉन्ज

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 27 अगस्त 2025 | जयपुर – जकार्ता : भारतीय एथलीटों ने इंडोनेशिया बोगोर के जेएसआई रिज़ॉर्ट में आयोजित 13वीं एशियाई कप वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 में कांस्य पदक जीता है। उद्घाटन समारोह में भारतीय वुडबॉल टीम का नेतृत्व हाथों में तिरंगा लहराते हुए डॉ प्रेम प्रकाश मीणा ने किया जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मी बाई कॉलेज में सहायक प्रोफ़ेसर हैं। किंतु मैन स्ट्रीम मीडिया से यह ख़बर गायब है। इस चैंपियनशिप में ताइवान, चीन, ईरान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, भारत और मेज़बान देश इंडोनेशिया सहित पूरे एशिया के सैकड़ों एथलीट भाग ले रहे हैं।

एशियाई वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 इंडोनेशिया में भारत ने जीते सिल्वर और ब्रॉन्ज

भारतीय वुडबॉल टीम ने 7वीं AICE इंडोनेशिया वुडबॉल चैंपियनशिप 2025 में अपना शानदार खेल दिखाया है। भारतीय पुरुष टीम ने जहां इस टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीता है तो सिंगल स्ट्रोक इवेंट में भरत कुमार ने सिल्वर मेडल जीता है।

वुडबॉल एक ऐसा खेल है जिसमें गेंद को गेट से पार कराने के लिए एक हथौड़े का इस्तेमाल किया जाता है। यह खेल घास, रेत या घर के अंदर खेला जा सकता है। यह खेल एशियाई समुद्र तट खेलों के कार्यक्रम में शामिल है और इसे 2008 में शामिल किया गया था। जल्द ही ओलंपिक गेम्स में भी हो सकता है शामिल। 

राजस्थान के भरत कुमार ने पुरुष एकल स्ट्रोक इवेंट में रजत पदक जीता

राजस्थान के भरत कुमार ने पुरुष एकल स्ट्रोक इवेंट में असाधारण कौशल और दृढ़ता दिखाते हुए रजत पदक जीता। उनके शानदार स्ट्रोक और दबाव में शांत रहने की क्षमता ने उन्हें मेडल दिलाया, जिससे वह भारत के सबसे होनहार वुडबॉल खिलाड़ियों में से एक बन गए। इसके अलावा, भारतीय पुरुष टीम ने स्ट्रोक प्रतियोगिता (टीम इवेंट) में कांस्य पदक हासिल कर शानदार सामूहिक प्रदर्शन किया। पदक विजेता टीम में शामिल थे:  
– विश्वराज परमार (गुजरात)  
– डॉ प्रेम प्रकाश मीणा (नई दिल्ली)  
– ललित डांगी (मध्य प्रदेश)  
– जयराज राठवा (गुजरात)  
– रितेश येतू गवास (गोवा)  
– सतीश चकाला (आंध्र प्रदेश)  

भारतीय वुडबॉल खिलाडियों की खूब हुई तारीफ

इंडोनेशियाई वुडबॉल एसोसिएशन (IWbA) के अध्यक्ष आंग सुनादजी ने खिलाड़ियों की उपलब्धियों की सराहना की और सुधार की गुंजाइश भी जताई। उन्होंने बुधवार, 20 अगस्त, 2025 को जकार्ता से एक आधिकारिक बयान में कहा, “मेजबान देश होने के नाते, अभी भी बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है। हालाँकि, ये केवल प्रारंभिक परिणाम हैं। कल, सभी टीमें अंतिम दौर में फिर से प्रतिस्पर्धा करेंगी, इसलिए सभी प्रतिभागियों के लिए अवसर खुला रहेगा।”

भारत में बढ़ रहा है वुडबॉल का क्रेज

भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प की बदौलत यह कामयाबी हासिल की है। दोहरे पदक ने न केवल भारत को गौरव दिलाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वुडबॉल में देश की स्थिति को और मजबूत किया है। इस चैंपियनशिप में भारत के विभिन्न हिस्सों से कुल 24 सदस्यों की टीम ने हिस्सा लिया, जो देश में वुडबॉल की बढ़ती लोकप्रियता और पहुंच को दर्शाता है।

क्या बोले भारतीय कप्तान

भारतीय टीम की अगुवाई महाराष्ट्र के एडवोकेट सुदीप मनवटकर ने किया, जिनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जीत पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए सुदीप ने कहा कि यह जीत भारतीय वुडबॉल की बढ़ती ताकत और देश में इस खेल के उज्ज्वल भविष्य को दिखाती है।

टीम मैनेजर राजेंद्र पिरनकर ने भी अपने मैनेजमेंट और नेतृत्व क्षमताओं के साथ खिलाड़ियों को प्रेरित किया और मैदान के अंदर और बाहर बेहतर कोऑर्डिनेशन सुनिश्चित किया। इंडोनेशिया में यह जीत भारतीय वुडबॉल के लिए एक मील का पत्थर है, जो न केवल व्यक्तिगत प्रतिभा की ताकत बल्कि टीम वर्क की भावना को भी दर्शाती है। विदेशी धरती पर तिरंगे का ऊंचा होना पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है।

वुडबॉल को भारत में 2002 में लाया गया था और इसे वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा बढ़ावा दिया जाता है , जो एक सरकारी पंजीकृत निकाय है जो राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन करता है और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में टीमें भेजता है। खिलाड़ी गेंद को गेटों की एक श्रृंखला के माध्यम से मारने के लिए एक मैलेट का उपयोग करते हैं, यह खेल गोल्फ या क्रोकेट के समान है, और इसे विभिन्न सतहों पर खेला जा सकता है। भारत में वुडबॉल समुदाय बढ़ रहा है, जिसका प्रमाण एशियाई और विश्व चैंपियनशिप में भारतीय टीम की भागीदारी और नागपुर और वडोदरा जैसे शहरों में राष्ट्रीय आयोजनों का आयोजन है।

यह भी पढ़ें : जैसलमेर में मेघा गांव में जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म मिले

नागपुर 22 से 26 मार्च तक सीनियर और सब-जूनियर पुरुष एवं महिला राष्ट्रीय वुडबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी की। भारतीय वुडबॉल कैलेंडर में एक प्रमुख आयोजन होगा। इसके अतिरिक्त, वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WAI) ने इसी सत्र से राष्ट्रीय बीच वुडबॉल टूर्नामेंट शुरू करने का निर्णय लिया है।

भारत में वुडबॉल के बारे में मुख्य तथ्य:
परिचय: वुडबॉल को भारत में 2002 में पेश किया गया था।
शासी निकाय: वुडबॉल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WbAI) इस खेल को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय निकाय है, जिसके 26 संबद्ध राज्य संघ हैं।
गेमप्ले: गोल्फ की तरह, खिलाड़ी एक निर्दिष्ट कोर्स में गेट के माध्यम से गेंद को मारने के लिए मैलेट का उपयोग करते हैं। यह खेल घास, रेत या घर के अंदर खेला जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी: भारतीय टीम ने पहली बार 2003 में किसी अंतर्राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लिया था और उसके बाद से विभिन्न विश्व और एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लिया है।
राष्ट्रीय कार्यक्रम: डब्ल्यूबीएआई सीनियर और सब-जूनियर राष्ट्रीय वुडबॉल चैंपियनशिप जैसे आयोजनों का आयोजन करता है, जो हाल ही में नागपुर जैसे स्थानों पर आयोजित किया गया ।
विश्वविद्यालय स्तर: यह खेल विश्वविद्यालयों में भी लोकप्रिय है, तथा पारुल विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में अखिल भारतीय अंतर-विश्वविद्यालय वुडबॉल चैम्पियनशिप जैसे आयोजन किये जाते हैं।

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जैसलमेर में मेघा गांव में जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म मिले

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 21 अगस्त 2025 | जयपुर – जैसलमेर : जैसलमेर में मेघा गांव के पास तालाब के किनारे जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म (फॉसिल) मिले हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अभी जो सतह के बाहर दिख रहा है, वो जुरासिक काल के डायनासोर की रीढ़ की हड्डी हो सकती है। बाकी का पार्ट जमीन में 15 से 20 फीट नीचे है।

जैसलमेर में मेघा गांव में जुरासिक काल के उड़ने वाले डायनासोर के जीवाश्म मिले

जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया ने बताया- 2 दिन पहले 19 अगस्त को ग्रामीणों को जीवाश्म मिले तो वे चौंक गए। इसके बाद 20 अगस्त को फतेहगढ़ प्रशासन को इसकी जानकारी जैसलमेर कलेक्टर प्रताप सिंह को दी। जैसलमेर प्रशासन ने इसकी सूचना हमें दी। गुरुवार को हम फतेहगढ़ उपखंड क्षेत्र के मेघा गांव पहुंचे।

जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया का दावा है कि

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ये जैसलमेर के इतिहास में अब तक सबसे बड़ा कंकाल मिला है। जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, हजारों साल पहले जैसलमेर समुद्र का किनारा रहा था, जहां डायनासोर खाने की तलाश में आते थे। ऐसे में यहां इनके जीवाश्म मिल रहे हैं।

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अब जियोलॉजिकल सर्वे की टीम जांच करेगी। जीवाश्म कितना पुराना है? किस जानवर का है? ऐसे सवालों के जवाब तभी मिल पाएंगे। भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे जुरासिक काल का होने का अनुमान लगाया है।

पहले वो तस्वीर, जिसमें जीवाश्म दिख रहे हैं…

भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे जुरासिक काल का होने का अनुमान लगाया है।

लाखों साल पुराना कंकाल सुरक्षित

डॉ. इणखिया ने बताया- प्राथमिक जांच करने पर यह जुरासिक काल का होने का अंदाजा लगा है। यानी ये डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव की हड्डियों का कंकाल हो सकता है। अगर यह किसी अन्य जानवर की हड्डियां होती तो इसे अन्य मांसाहारी जानवर खा सकते थे।

ये कंकाल सुरक्षित है तो ये जीवाश्म बनने की प्रक्रिया में है और जम गया है। ऐसे में यह हजारों साल पुराना होने का अंदाजा है। इसके संरक्षण और शोध की आवश्यकता है। प्रशासन के माध्यम से जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लिखा जाएगा। इसके साथ ही शोध करने वालों को भी आमंत्रित किया जाएगा ताकि वे इसकी जांच कर हकीकत बता सकें।

डॉ. इणखिया ने बताया- जीवाश्म मिलना तो आम है। इसके साथ स्केलेटन मिलने से यह माना जा रहा है कि यह लाखों-करोड़ों साल पुराने अवशेष हो सकते हैं। ये किसी उड़ने वाले डायनासोर का हो सकता है, जिसकी लम्बाई करीब 20 फीट या उससे भी ज्यादा हो।

2 साल पहले खोज चुके डायनासोर का अंडा

जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक नारायण दास इणखिया को 2023 में जेठवाई पहाड़ी के पास ही मॉर्निंग वॉक के दौरान एक अंडे का जीवाश्म मिला था। यह लाखों वर्ष पुराने किसी अंडे का अवशेष था। इससे पहले थईयात की पहाड़ियों में भी डायनासोर के पदचिन्हों के निशान मिले थे, जिसे बाद में कोई चुराकर ले गया।

जैसलमेर में जुरासिक काल के प्रमाण मौजूद

डॉ. इणखिया बताते हैं- जैसलमेर में इससे पहले भी थईयात के आसपास के इलाकों में डायनासोर के पंजे के निशान मिले थे। इसके साथ ही आकल गांव में भी 18 करोड़ साल पहले के पेड़ मिले हैं, जो अब पत्थर हो गए हैं। आकल गांव में ऐसे पेड़ों के जीवाश्म को लेकर ‘वुड फॉसिल पार्क’ भी बनाया गया है।

तीन जगहों को कहते हैं डायनासोर का गांव

डॉ. इणखिया बताते हैं- जैसलमेर शहर में जेठवाई की पहाड़ी, यहां से 16 किलोमीटर दूर थईयात और लाठी को ‘डायनासोर का गांव’ कहा जाता है। इसकी वजह है कि इन जगहों पर ही डायनासोर होने के प्रमाण मिलते हैं। जेठवाई पहाड़ी पर पहले माइनिंग होती थी। लोग घर बनाने के लिए यहां से पत्थर लेकर जाते थे।

ऐसे ही थईयात और लाठी गांव में सेंड स्टोन के माइनिंग एरिया में डायनासोर के जीवाश्म मिलते हैं। तीनों गांवों में ही माइनिंग से काफी सारे अवशेष तो नष्ट हो गए थे। जब यहां डायनासोर के जीवाश्म मिलने लगे तो सरकार ने माइनिंग का काम रुकवा दिया। अब तीनों जगहों को संरक्षित कर दिया गया है।

मेघा गांव के पास प्राचीन जीवाश्म और कंकाल का ढांचा मिला है। कुछ ऐसे पत्थर हैं, जो जीवाश्म बन चुके हैं।

मेघा गांव के पास प्राचीन जीवाश्म और कंकाल का ढांचा मिला है। कुछ ऐसे पत्थर हैं, जो जीवाश्म बन चुके हैं।

जैसलमेर में थे डायनासोर ऐसे पता चला

डॉ. इणखिया बताते हैं- जुरासिक प्रणाली पर 9वीं इंटरनेशनल कांग्रेस आयोजित होने के बाद जयपुर के वैज्ञानिक धीरेंद्र कुमार पांडे और विदेशी वैज्ञानिकों की टीम वर्ष 2014 में जैसलमेर घूमने आई थी। तब टीम ने वुड फॉसिल पार्क विजिट किया और जुरासिक युग के फॉसिल (जीवाश्म) देखे।

इस दौरान टीम को जैसलमेर शहर से 16 किलोमीटर दूरी पर जैसलमेर-जोधपुर हाईवे के पास थईयात गांव के पास मिट्टी हटाने पर डायनासोर के पैरों के निशान मिले थे। तब स्टडी से अनुमान लगाया गया कि यह थेरोपोड डायनासोर के थे।

पैरों के निशान बलुआ पत्थर पर मिट्टी हटाने के बाद ऊपरी सतह पर मिले थे। इसी गांव में बाद में टेरोसॉरस रेप्टाइल डायनासोर की हड्डियां भी मिली थीं। भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया का मानना है कि ये जीवाश्म व कंकाल डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव के हो सकते हैं।

भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया का मानना है कि ये जीवाश्म व कंकाल डायनासोर या उसके किसी समकक्ष जीव के हो सकते हैं।

डायनासोर खाना ढूंढने आते थे

डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया- जैसलमेर में डायनासोर खाने की तलाश में आते थे। आज से करीब 25 करोड़ साल पहले जैसलमेर से गुजरात के कच्छ तक बसा रेगिस्तान जुरासिक युग में टेथिस सागर हुआ करता था। यह वो समय था जब अमेरिका, अफ्रीका और इंडिया सभी देश एक ही महाद्वीप में थे। तब जैसलमेर से लगे टेथिस सागर में व्हेल और शार्क की ऐसी दुर्लभ प्रजातियां थीं, जो आज विलुप्त हो गई हैं।

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