मौतों का कब्रगाह बना दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे वजह ख़राब क्वालिटी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 14 जुलाई 2024 | जयपुर : देश का सबसे बड़ा दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे राजस्थान में हादसों का हाईवे बना हुआ है। लगातार हो रही दुर्घटनाओं में अब तक 156 लोगों की मौत हो चुकी है।

मौतों का कब्रगाह बना दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे वजह ख़राब क्वालिटी

अकेले दौसा में ही 50 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। एक्सप्रेस-वे पर कुछ ऐसे पॉइंट्स हैं, जहां बार-बार एक्सीडेंट हो रहे हैं। मई और जून के महीने में सबसे ज्यादा 15 एक्सीडेंट यहीं हुए, जिनमें 23 की मौत हुई, जबकि 55 लोग घायल हुए।

मौतों का कब्रगाह बना दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे वजह ख़राब क्वालिटी

खौफनाक हादसों वाले ये पॉइंट्स कौनसे हैं? आखिर यहीं सबसे ज्यादा एक्सीडेंट क्यों हो रहे हैं? क्या एक्सप्रेस-वे में इंजीनियरिंग खामियां हैं? ऐसे ही सवालों का जवाब तलाशने हम एक्सपर्ट इंजीनियर-रिसर्चर की टीम को साथ लेकर हादसे वाले पॉइंट्स पर ग्राउंड रिपोर्ट के लिए पहुंचे। 

15 किलोमीटर के सर्किल में कुछ दूरी में हुए हादसे

भास्कर रिपोर्टर ने मई और जून महीने में हुए 15 बड़े एक्सीडेंट की डिटेल निकाली। इस डिटेल के आधार पर राजस्थान के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में से एक मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MNIT), जयपुर के एक्सपट्‌र्स, शोधार्थी और सीनियर प्रोफेसर की मदद से स्टडी की।

एक्सपट्‌र्स ने राजस्थान के 7 जिलों से गुजर रहे 373 किलोमीटर लंबे 8 लेन एक्सप्रेस-वे का पूरा नक्शा खंगाला। सबसे ज्यादा हादसे वाली जगहों को नक्शे में ही चिह्नित किया। रिसर्च में सामने आया कि भांडारेज से एंट्री करने के बाद सबसे ज्यादा एक्सीडेंट बांदीकुई इलाके के 15 किलोमीटर रेंज में ही हुए हैं।

रूट मैप तैयार होने के बाद एक्सपट्‌र्स को साथ लेकर दौसा से एक्सप्रेस-वे पर दाखिल हुए और सबसे ज्यादा हादसे वाले सभी पॉइंट्स का मौका मुआयना किया। हादसों की 7 वजहें सामने आईं…

1. जहां-जहां घुमाव, एक्सीडेंट उन्हीं घुमावों के आस-पास

हम सबसे पहले दौसा के भांडारेज पर बने एंट्री पॉइंट से एक्सप्रेस-वे पर दाखिल हुए। हमने करीब 20 किलोमीटर लंबा सफर तय किया। हादसे वाले पॉइंट्स का मिलान करने के बाद MNIT के रिसर्चर अंकित गुप्ता ने बताया कि नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने जामरोली से लेकर सोमाड़ा गांव के बीच 15 किलोमीटर एरिया में ही 3 जगह घुमाव बना रखे हैं। करीब 90 फीसदी एक्सीडेंट घुमाव वाली जगह पर हो रहे हैं।

दो दिन पूर्व दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कुंतलवास पुलिया के पास एक स्कॉर्पियो बेकाबू होकर पलट गई। हादसे में दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई।

दो दिन पूर्व दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कुंतलवास पुलिया के पास एक स्कॉर्पियो बेकाबू होकर पलट गई। हादसे में दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। ये घुमाव 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार के पैरामीटर पर बिल्कुल सही बने हैं। लेकिन, गाड़ियां तेज रफ्तार में आती हैं और जैसे ही घुमाव को क्रॉस करने लगती हैं, बैलेंस बिगड़ने पर आगे और पीछे के वाहनों से टकरा जाती हैं।

दरअसल, एक्सप्रेस-वे को गांवों के बाहर से निकालने के लिए हाईवे अथॉरिटी ने ये घुमाव बनाए हैं। कुछ जगहों पर अरावली की पहाड़ियां भी बीच में आ रही थीं। एक्सपट्‌र्स का कहना है कि ऐसे घुमाव पर स्पीड लिमिट 100 या इससे भी कम करने की जरूरत है।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कई घुमाव हैं, जहां वाहन चालक सावधानी नहीं रख पाते।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कई घुमाव हैं, जहां वाहन चालक सावधानी नहीं रख पाते। MNIT में सिविल डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर महेश स्वामी ने बताया कि जहां घुमाव हैं, वहां NHAI को स्पीड कंट्रोल के साइन बोर्ड लगाने चाहिए। साथ ही चालकों को भी ऐसे घुमाव पर स्पीड बैलेंस करनी चाहिए, ताकि हादसा नहीं हो।

2. कई पॉइंट्स पर सड़क खराब, गलत पैचवर्क भी जानलेवा

भांडारेज से करीब 15 किलोमीटर आगे रेस्ट एरिया को क्रॉस करने के बाद एक अंडरपास बना हुआ है। यहां हमने देखा कि सड़क के बीच दूसरी लेन में एक लंबा पेच वर्क बना हुआ था। एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने गाड़ी को रुकवाया।

एक्सप्रेस-वे पर हुए पैचवर्क का ड्रोन शॉट।

एक्सप्रेस-वे पर हुए पैचवर्क का ड्रोन शॉट। हम उतर कर पैचवर्क वाली जगह के करीब पहुंचे और उसके ऊपर से गुजरने वाले वाहनों को देखा। नोटिस में आया कि ज्यादातर वाहनों का बैलेंस बिगड़ रहा था। पैचवर्क के कारण वाहन अपनी लेन बदल रहे थे।

अंकित गुप्ता ने बताया- यहां पैचवर्क गलत है। NHAI के नियमों के हिसाब से एक ही लेन में इतना लंबा पैचवर्क स्क्वायर शेप में नहीं कर सकते। मान लीजिए चार लेन हैं और उसमें से एक लेन में कोई छोटा-सा भी गड्ढा हो जाए तो उतने एरिया में हटाने के बाद क्रॉस मैथड (पैरलेलग्रैम) से पैचवर्क करते हैं।

यानी समानांतर चतुर्भुज बनाया जाता है। पैचवर्क को पूरी तरह से पुरानी सड़क के लेवल तक मिलाया जाता है। वो सड़क पर बिल्कुल भी उभरा हुआ नहीं होना चाहिए, ताकि रफ्तार में आने वाली गाड़ियों का बैलेंस नहीं बिगड़े।

3. एक्सप्रेस-वे पर जहां भी अंडरपास, वहां बिगड़ रहा वाहनों का बैलेंस

एक्सप्रेस-वे पर कई जगह एनीमल पास या फिर अंडरपास बनाए गए हैं। कई अंडरपास घुमाव वाली जगहों पर भी हैं। इन्हें बनाने में पूरे पैरामीटर का ध्यान रखा गया है। लेकिन, जब कोई वाहन 120 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड को क्रॉस करते हुए इन अंडरपास के ऊपर से गुजरता है तो बैलेंस बिगड़ जाता है।

हमने अंडरपास पर खड़े होकर 100 से ज्यादा गाड़ियों काे निकलते हुए नोटिस किया। कई वाहनों का बैलेंस बिगड़ रहा था।

हमने अंडरपास पर खड़े होकर 100 से ज्यादा गाड़ियों काे निकलते हुए नोटिस किया। कई वाहनों का बैलेंस बिगड़ रहा था। अंकित गुप्ता ने बताया कि अंडरपास पर चढ़ते समय कोई दिक्कत नहीं आती, लेकिन ढलान पर लोग स्पीड कम नहीं करते। इससे गाड़ी के सस्पेंशन और टायरों पर अचानक से प्रेशर पड़ता है। इससे गाड़ी एकदम थोड़ा-सा नीचे दब जाती है।

4. ओवर स्पीड बन रही मौत की वजह, 180 KMPH से भी क्रॉस कर रहे लोग

एक्सप्रेस-वे पर एक्सीडेंट की सबसे बड़ी वजह है वाहनों का स्पीड लिमिट क्रॉस करना। हमने एक्सप्रेस-वे की दोनों लेन पर खड़े होकर देखा। कई वाहनों की स्पीड 120 किलोमीटर प्रतिघंटा से भी कहीं अधिक थी। तेज स्पीड में ही कई गाड़ियों को ओवरटेक करते हुए भी देखा।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर स्पीड की लिमिट तो 120 किलोमीटर प्रति घंटा की है, लेकिन वाहन चालक इसे क्रॉस करने से नहीं हिचकते।

दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर स्पीड की लिमिट तो 120 किलोमीटर प्रति घंटा की है, लेकिन वाहन चालक इसे क्रॉस करने से नहीं हिचकते। भांडारेज पॉइंट पर बने कंट्रोल रूम के पास पेट्रोलिंग कर रहे ऑफिसर नीरज चौहान ने बताया कि ओवर स्पीड ही एक्सीडेंट की सबसे बड़ी वजह है।

पेट्रोलिंग वाहनों के जरिए हम लगातार ओवर स्पीड वाहनों को मॉनिटर कर उनके खिलाफ चालान भी कर रहे हैं। कई चालान तो ऐसे हैं जिनकी स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा की पाई गई। 90 फीसदी से ज्यादा चालान में वाहनों की स्पीड 150 किलोमीटर प्रति घंटा पाई गई है।

पेट्रोलिंग ऑफिसर नीरज चौहान ने बताया ज्यादातर हादसों की वजह 180 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा की रफ्तार है।

पेट्रोलिंग ऑफिसर नीरज चौहान ने बताया ज्यादातर हादसों की वजह 180 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा की रफ्तार है। कंट्रोल रूम में स्पीड चेक करने के लिए कैमरे लगे हुए हैं। 120 किलोमीटर की सीमा पार करने वालों को स्पीड मीटर की फोटो के साथ चालान भेजा जाता है। किसी तरह का एक्सीडेंट होने पर 1033 की गाड़ियां और एंबुलेंस 10 से 15 मिनट में ही तुरंत मौके पर पहुंच जाती है। लेकिन, फिर भी बहुत लोग स्पीड लिमिट का पालन नहीं करते।

5. अचानक लेन बदल रही गाड़ियां, स्टीयरिंग से हाथ उठाया तो मौत!

एक्सप्रेस-वे पर हुए कुछ हादसों के सीसीटीवी फुटेज खंगालने पर सामने आया कि तेज गति से आ रही गाड़ियां अचानक से लेन बदल लेती हैं और फिर पलटते हुए हादसे का शिकार हो जाती हैं। आखिर ऐसा क्यों है?

एक्सप्रेस-वे पर 50 से ज्यादा बार दिल्ली का सफर कर चुके सुरजीत सिंह ने हमें एक्सपेरिमेंट करके दिखाया। उन्होंने हमारी कार को 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाया। जरा सा स्टीयरिंग से हाथ हटाने पर हमारी कार अचानक ही तीसरी लेन से पहली लेन की तरफ मुड़ रही थी। सुरजीत सिंह ने बताया कि ऐसा उनके साथ कई बार हो चुका है।

एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने कारण जानने के लिए कार रुकवाई और कुछ देर मुआयना किया। फिर बताया कि देश के ज्यादातर हाईवे पर बरसात के पानी को निकालने के लिए लेफ्ट साइड में ढलान (स्लोप) दिया जाता है। लेकिन, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर कुछ जगहों पर ढलान राइट हैंड (अंदर की तरफ) साइड दी गई है। यह केवल उन जगहों पर एक्सप्रेस-वे के बीच ग्रीन बेल्ट है।

इसका मकसद है बारिश का पानी सड़क पर नहीं भरे और ग्रीन बेल्ट में लगे पौधों को मिल जाए। ये ढलान बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन तेज गति से आ रहे वाहनों के लिए तब खतरनाक हो जाती है, जब कोई रिलेक्स होकर या स्टीयरिंग से हाथ हटा लेता है। गाड़ी तीसरी या चौथी लेन से अंदर की तरफ घुस जाती है और हादसे हो जाते हैं।

6. मई-जून में सबसे ज्यादा हादसे और मौतें, 50 डिग्री! का पारा बड़ा कारण

स्टडी में सामने आया कि सबसे ज्यादा हादसे मई और जून के महीने में हुए हैं। अधिकांश हादसों की वजह एक्सप्रेस-वे पर टायरों का ब्रस्ट होना यानी फटना है।

एमएनआईटी के एक्सपर्ट शोधार्थी अंकित गुप्ता के मुताबिक गर्मियो में डामर की सड़क तपने लगती हैं। इससे गाड़ियों के टायर फटने का डर बना रहता है।

एमएनआईटी के एक्सपर्ट शोधार्थी अंकित गुप्ता के मुताबिक गर्मियो में डामर की सड़क तपने लगती हैं। इससे गाड़ियों के टायर फटने का डर बना रहता है। एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने बताया कि एक तो एक्सप्रेस-वे 300 किलोमीटर से ज्यादा लंबा है। जब गाड़ी बिना रुके इतने लंबे डामर रूट पर चलती हैं तो टायर गर्मी से काफी गर्म हो जाते हैं।

टायर अगर घिसे हुए हैं तो वे लगातार चलने पर फट जाते हैं। मई-जून के महीने में इस बार कई शहरों में तापमान 48 डिग्री से ऊपर चला गया था। अधिक तापमान से सड़क भी काफी तपने लग जाती हैं। पहले NHAI का दावा था कि एंट्री पॉइंट्स पर टायरों की कंडीशन का चेकअप किया जाएगा। अगर टायर ज्यादा कमजोर हुए तो ऐसे वाहनों को एक्सप्रेस-वे पर जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

7. एंट्री पॉइंट्स पर टायरों में नाइट्रोजन का चेकअप नहीं

हम दौसा के भांडारेज में NHAI एक्सप्रेस-वे के एंट्री पॉइंट पर पहुंचे। एक्सप्रेस-वे पर चढ़ने से पहले एंट्री पाइंट पर टोल प्लाजा बना हुआ है। एक्सपर्ट अंकित गुप्ता ने बताया- NHAI ने पहले दावा किया था कि एक्सप्रेस-वे पर चलने वाली गाड़ियों के टायरों में नाइट्रोजन हवा का चेकअप करेंगे। टायरों में नाइट्रोजन हवा होना अनिवार्य किया जाएगा।

एक्सपर्ट के मुताबिक एक्सप्रेस-वे पर टायर फटने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

एक्सपर्ट के मुताबिक एक्सप्रेस-वे पर टायर फटने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। जिन वाहनों के टायरों में नाइट्रोजन हवा नहीं होगी, उनकी एंट्री नहीं होगी। क्योंकि नाइट्रोजन गैस टायर को ठंडा रखती है। सामान्य गैस टायरों को गर्म कर देती है, जिससे टायर फट जाते हैं। लेकिन, अभी ऐसी कोई बाध्यता नहीं लगाई गई है।

एक्सप्रेस-वे पर पैदल चलते हुए वाहन से टकराए तो क्लेम भी नहीं

एक्सप्रेस-वे को पूरी तरह से पैदल आवागमन से फ्री रखा गया है। किसी तरह की क्रॉसिंग लाइन और रेड लाइट नहीं है। अगर एक्सप्रेस-वे को पार करते समय किसी व्यक्ति को स्पीड में आ रहा वाहन टक्कर मार देता है तो मौत पर भी इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम नहीं मिल सकता है।

अंकित गुप्ता ने बताया कि एक्सप्रेस-वे को पूरी तरह से सेफ तरीके से बनाया गया है। यह देश के बेहतरीन हाईवे में से एक है। लेकिन, चालकों को अपने वाहनों की मेंटेनेंस और एक्सप्रेस-वे पर आते समय स्पीड पर कंट्रोल रखना चाहिए।

एक्सप्रेस-वे के आस-पास एक्सीडेंट के बाद कचरे को हटाया नहीं गया है। इन कारणों से भी हादसों से इनकार नहीं किया जा सकता।

एक्सप्रेस-वे के आस-पास एक्सीडेंट के बाद कचरे को हटाया नहीं गया है। इन कारणों से भी हादसों से इनकार नहीं किया जा सकता।

दौसा में NHAI के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डीके चौधरी से सवाल-जवाब

1. एक्सप्रेस-वे पर जहां कर्व हैं, वहां एक्सीडेंट सबसे ज्यादा हुए हैं?

जवाब : एक्सप्रेस-वे का कंस्ट्रक्शन IRCSP-99 के मानकों के अनुसार हुआ है। ऐसे में कर्व को एक्सीडेंट का कारण नहीं मान सकते। पिछले दिनों में हुए अधिकांश एक्सीडेंट में वाहन ड्राइवर को नींद आना सबसे बड़ा कारण था।

2. कई जगह अंडरपास के आगे-पीछे सड़क का लेवल डाउन होने से भी हादसे हुए हैं?

जवाब : निर्माण के दौरान कई जगह गांवों के लोगों ने उनके आवागमन की सहूलियत के लिए लेवल नहीं बढ़ाने दिया। ऐसी जगहों पर लेवल डाउन है, लेकिन उससे हादसे नहीं हो सकते।

3. एक्सप्रेस-वे पर आवारा जानवर भी हादसे का कारण हैं, जबकि सुरक्षित सफर का दावा किया गया था?

जवाब : पिछले दिनों एक एक्सीडेंट आवारा पशु की वजह से हुआ था। इसकी जांच करने पर सामने आया कि आसपास के लोग आवागमन के लिए सुरक्षा दीवार को खोल देते हैं। इससे आवारा पशु चढ़ जाते है, इन्हें रोकने के निर्देश दिए हैं।

दौसा स्थित नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया के दफ्तर की तस्वीर।
दौसा स्थित नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया के दफ्तर की तस्वीर

4. वाहनों की ओवर स्पीड पर क्या कार्रवाई की जाती है?

जवाब : कमर्शियल वाहनों की स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा और फोर व्हीलर की 120KMPH तय की हुई है। इससे तेज स्पीड चलने वाले वाहनों की सीसीटीवी कैमरे से मॉनिटरिंग कर NIC के जरिए चालान की व्यवस्था की गई है। उनसे अनुबंध हो गया है, अब जल्द ही चालान शुरू किया जाएगा।

1355 किलोमीटर लंबा होगा दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे

दिल्ली से मुंबई तक 1355 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बनाया जा रहा है। एक्सप्रेस-वे को बनाने के लिए पांच राज्यों में 1500 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था। एक्सप्रेस-वे की गुजरात में लंबाई 426 किलोमीटर, राजस्थान में लंबाई 373 किलोमीटर, मध्यप्रदेश में 244 किलोमीटर, महाराष्ट्र में 171 लंबाई, हरियाणा में 129 किलोमीटर की लंबाई रहेगी। एक्सप्रेस-वे राजस्थान के 7 जिलों से होकर निकल रहा है, जिनमें अलवर, दौसा, भरतपुर, कोटा, बूंदी, सवाईमाधाेपुर और टोंक हैं।

दैनिक भास्कर से साभार : जनहित में संपादित रिपोर्टिंग 

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

 

MOOKNAYAK MEDIA

At times, though, “MOOKNAYAK MEDIA’s” immense reputation gets in the way of its own themes and aims. Looking back over the last 15 years, it’s intriguing to chart how dialogue around the portal has evolved and expanded. “MOOKNAYAK MEDIA” transformed from a niche Online News Portal that most of the people are watching worldwide, it to a symbol of Dalit Adivasi OBCs Minority & Women Rights and became a symbol of fighting for downtrodden people. Most importantly, with the establishment of online web portal like Mooknayak Media, the caste-ridden nature of political discourses and public sphere became more conspicuous and explicit.

Related Posts | संबद्ध पोट्स

डूँगरी बाँध और डीएमआईसी भूमि-हड़प अभियान

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 03 अगस्त 2025 | दिल्ली : शायद यह सिर्फ एक संयोग हो, या शायद नियति और न्याय की कोई  ज्यादा उलझी हुई पहेली। देश की कुल आबादी में मात्र 9 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का है, लेकिन वन और खनिज संपदा का ज्यादातर  उखड़े हुए टूटी हुई हिस्सेदारी उनकी रिहाइश वाले इलाकों में ही मौजूद है। बिजली और खनन से जुड़ी देश की 40 प्रतिशत विकास परियोजनाएं भी इन्हीं इलाकों में चल रही हैं। विकास यहाँ किसी अंधड़ या चक्रवात की तरह आता है, जिसमें रातों-रात गाँव के गाँव उजड़ जाते हैं।

डीएमआईसी के तहत डूँगरी बाँध ऐसे ही एक अन्य भूमि-हड़प अभियान का हिस्सा बनने जा रहा है। आर्य और द्रविड़ सभ्यताओं की शुरुआत के भी हजारों साल पहले से सैंधव लोग यहाँ रहते आ रहे हैं। पीड़ित  लोग बुलडोजरों और अर्थमूवरों की गड़गड़ाहट सुनते अपने-अपने मवेशी लिये बंजारों की तरह नया ठौर तलाशने निकलने को मजबूर हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनावों में वे जिन नेताओं को वोट देते आयें हैं, उनमें से अधिकाँश मुँह फ़ेर चुके हैं या उनके मुँह में दही जम चुका है।

गाँवों में डीएलसी दरें कम है। भूमि अवाप्त कर मुआवजा राशि डीएलसी दर से दी जायेगी। काश्तकारों की भूमि अवाप्त की जा रही है तो बाजार मूल्य से मुआवजा राशि मिलनी चाहिए। दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआईसी) को केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ने नेशनल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इम्प्लेंटेशन ट्रस्ट (एनआईसीडीआईटी) का दर्जा दे दिया है। अब यह ट्रस्ट विभिन्न राज्यों से आने वाले इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के प्रस्ताव को फंडिंग, जमीन अधिग्रहण में मदद और उसे एप्रूव करने संबंधी सभी काम करेगा।

डूँगरी बाँध के पहले चरण में करौली सवाई माधोपुर जिलों के 76 गाँवों की बारी है, पर यह सिलसिला यहाँ यूकने वाला कदापि नहीं है। जैसे-जैसे बाँध की ऊँचाई बढ़ेगी वैसे-वैसे इसकी जद में न जाने ऐसे कितने इलाके और आयेंगे। अभी से लोगों दिलोंदिमाग में ऐसे-ऐसे मंजर दिखने लगे हैं मानो उनकी आँखें उस मायावी सपने को को देखने के लिए तैयार ही नहीं है। यहाँ जाकर लगता ही नहीं कि यहाँ कभी लोग रहते रहे होंगे, उनके मांदलों की थाप और गीतों की हेक गूंजती होगी। कुतर्कों का एक दुष्चक्र अर्से से आदिवासी विस्थापन के मुद्दे को घेरे हुए है। क्या देश हाई वे के बगैर रह सकता है?  

अडानी-अंबानी, टाटा-बिड़ला के बगैर क्या यह तरक्की के रास्ते पर एक कदम भी आगे बढ़ा सकता है?  अगर नहीं तो आदिवासी हितों पर हंगामा करना भूलकर काम की बात कीजिए। जान कर आश्चर्य होता है कि इस तर्क की काट पहली बार भारत सरकार द्वारा गठित एक कमिटी ने की है। पिछली यूपीए सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहल पर बनी इस कमिटी की रिपोर्ट कहती है कि भारत में आदिवासी जमीनों पर देसी-विदेशी कंपनियों के कब्जे की मौजूदा लहर कोलंबस के बाद संसार के सबसे बड़े भूमि हड़प अभियान का रूप ले रही है।  

डीएमआईसी (दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा) परियोजना का कुल क्षेत्रफल लगभग 436,000 वर्ग किलोमीटर है। यह गलियारा डीएफसी के दोनों तरफ 150-200 किलोमीटर की पट्टी में फैला हुआ है। निवेश क्षेत्रों का न्यूनतम क्षेत्रफल 200 वर्ग किलोमीटर और औद्योगिक क्षेत्रों का न्यूनतम क्षेत्रफल 100 वर्ग किलोमीटर होगा। इस परियोजना में 100 अरब डॉलर अर्थात 87,20,29,64,90,000/ रुपए का अनुमानित निवेश होगा। 

राजस्थान का इतिहास गौरवशाली रहा उसमें आदिवासी सर्वोपरि है। यहाँ के प्रकृति पुत्र आदिवासी इस धरा पर आदिमकाल से ही रहते आये है उनमें प्रमुख मीणा और भील है। खास तौर पर खनन और हाई वे के मामले में तो स्थिति जंगल राज जैसी है। डूँगरी बाँध पर हुई खोजबीन से पता चला है कि ज्यादातर कंपनियों को प्रतिवर्ष जितनी जमीन ख़रीदने की अनुमति दी गई थी, उसका चार से पांच गुना वे पिछले कई सालों से बेचती आ रही हैं और अब तक उनके खिलाफ कोई सरकारी नोटिस भी जारी नहीं हुआ है।

जाहिर है, डीएमआईसी के इलाकों में सरकारी जानकारी से भी कहीं ज्यादा विस्थापन हो रहा है और आगे यह भयावहता विकराल रूप धारण करेगी। केंद्र और राज्य सरकारों की चिंता कंपनियों को आदिवासियों की जमीन कोडियों के भाव बेचकर लाइसेंस देकर खत्म हो जाती है और लाइसेंस का कई गुना काम वे अफसरों को घूस खिला के कर लेती हैं। कानूनी तौर पर इन इलाकों में रहने वालों का न तो कोई हक अपने आस-पास की वन संपदा पर है, न ही अपने पैरों के नीचे पड़ी खनिज संपदा पर।

उनके हिस्से सिर्फ विनाश और विस्थापन आता है, और एक आत्मघाती गुस्सा, जो कभी माओवादियों के तो कभी मधु कोड़ा जैसे नेताओं के दरवाजे लाकर छोड़ जाता है। हाल के अपने एक बयान में प्रधानमंत्री ने भी आदिवासियों की तकलीफ से हामी भरी है। लेकिन वन और खनिज संपदा में अगर स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाती तो ऐसे सहानुभूतिपूर्ण बयानों का भी क्या फायदा है।

25 साल बाद भी बीसलपुर बांध परियोजना के विस्थापित को जमीन आवंटित क्यों नहीं की। बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र के विस्थापित पुनर्वास कॉलोनियों में सड़क जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं। बीसलपुर बांध 18 साल पहले बन गया, विस्थापितों को सड़कों के नाम पर मिले गड्‌ढे। 30 से ज्यादा गाँवों के हजारों लोगों को डूब क्षेत्र से पुनर्वास कॉलोनियों में विस्थापित किया गया। हमारा कसूर इतना था कि बीसलपुर बांध के डूब क्षेत्र में हमारे गाँव और ढाणियां आ गए। अपना गाँव छूटा और विस्थापित हो गए।

आधे से ज्यादा राजस्थान को पानी पिलाने वाले विस्थापित खुद फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर है। बीसलपुर परियोजना के कारण कुल 63 गॉव विस्थापित हुए है। जिसमें डूब से प्रभावित परिवारों की संख्या 5700 है एवम् जनसंख्या लगभग 30,000 है। डूब क्षेत्र की कुल भूमि 21836 हैक्टेयर है। अब बात करते हैं बीसलपुर परियोजना के विस्थापितों के दर्द की, तो बांध बनने के 23 साल बाद भी 118 पुर्नवास कॉलोनियों में से 6 कॉलोनियाँ अभी तक विकसित नहीं हुई हैं। पुर्नवास कॉलोनियों में सम्पर्क सड़क, आन्तरिक सड़के, हैण्ड पम्प, कुंआ, स्कूल, चिकित्सा भवन, बीज गोदाम, सामुदायिक भवन का आज भी अभाव है। यदि बन गये है तो उनकी हालत जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव में हमेशा की तरह बैकफुट पर बीजेपी

मूकनायक मीडिया ब्यूरो | 22 नवंबर 2024 | दिल्ली : राजस्थान की 7 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे शनिवार को सामने आयेंगे। सियासी गलियारों में चर्चा है कि इस बार भी उपचुनाव में बीजेपी अपना इतिहास दोहरायेगी और जीत-हार की परंपरा बदल नहीं पायेगी।

राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव के नतीजे बीजेपी बैकफुट पर

प्रदेश में हुए पिछले 16 उपचुनाव के नतीजों पर गौर करें तो ये परंपरा रही है कि – ‘बीजेपी उपचुनाव में हमेशा बैकफुट पर रहती है’ और ‘मतदान घटने पर कांग्रेस को फायदा होता है।’ इस बार 7 में से 6 सीट पर मुख्य चुनाव से वोटिंग घटी है। तो घटी हुई वोटिंग का बीजेपी को नुकसान होगा? 

राजस्थान की 7 सीटों के उपचुनाव में हमेशा की तरह बैकफुट पर बीजेपी

विधानसभा चुनाव की बजाय उप चुनाव में वोटिंग गिरी

उपचुनाव वाली 7 सीटों पर विधानसभा चुनाव, 2023 में कांग्रेस ने 4 और बीजेपी, आरएलपी व बीएपी ने 1-1 सीटों पर कब्जा जमाया था। इस बार हुए इन सीटों के मतदान प्रतिशत को देखें तो खींवसर सीट को छोड़ सभी पर मतदान के आंकड़े मुख्य चुनाव की तुलना में गिरे हुए हैं।

2013 से अब तक हुए उपचुनाव में इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें, तो मुख्य चुनाव के मुकाबले लगभग हर सीट पर वोटिंग प्रतिशत गिरा ही है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि राजस्थान के उपचुनाव में एक बार भी सरकार के बनने-बिगड़ने जैसे समीकरण नहीं बने। यदि ऐसे समीकरण बनते हैं, तो वोटर्स में अलग ही उत्साह नजर आता है।

राजनीतिक एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा के अनुसार सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने के कारण वोटर्स अमूमन सुस्त हो जाते हैं। ऐसा ही हाल 7 सीटों के मतदान में भी देखने को मिला है। केवल एक सीट खींवसर को छोड़ दें तो बाकी 6 सीटों पर मतदान प्रतिशत मुख्य चुनाव की तुलना में कम ही हुआ है।

उपचुनाव वाली मौजूदा सीटों पर मतदान के आंकड़े और उससे बन रहे समीकरण जान लेते हैं….

राजनीतिक एक्सपर्ट नारायण बारेठ के मुताबिक मुख्य चुनाव के मुकाबले 7 में से 6 सीटों पर कम वोटिंग हुई है। माना जाता है कि कम वोटिंग का फायदा कांग्रेस को मिलता है, लेकिन इस बार समीकरण इतने उलझे हुए हैं कि ये बात खरी उतरती नहीं दिख रही।

वहीं, वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर मीणा ने मूकनायक मीडिया को बताया कि यह कहना भी मुश्किल है कि पिछले उप चुनाव के जैसे कांग्रेस इस उप चुनाव में भी एक तरफा प्रदर्शन करेगी। किंतु बीजेपी का प्रदर्शन इस उप चुनाव में सुधरने की संभावना नहीं है और कांग्रेस कुछ सीटें गंवा सकती है।

अब पिछले 11 साल में हुए 16 सीटों पर जानते हैं, उप चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहा?

मुख्य चुनावों के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता रहा है कि अगर उपचुनाव में वोटिंग परसेंटेज कम रहता है तो फायदा कांग्रेस को मिलता है और अधिक रहने पर बीजेपी को। यह पैटर्न राजस्थान के उपचुनावों में अब तक सटीक भी साबित हुआ है।

भास्कर ने 2013 से अब तक 16 सीटों के उपचुनाव में हुए मतदान का रिकॉर्ड खंगाला। सामने आया कि एक-दो सीटों को छोड़कर वोटिंग प्रतिशत गिरा ही है। पैटर्न के मुताबिक बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस भारी पड़ी है। उपचुनावों में कांग्रेस ने 16 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की है। बीजेपी ने मात्र 3 और बीएपी व आरएलपी ने 1-1 सीट जीती हैं।

अब एक नजर पिछली 16 सीटों पर उपचुनाव के नतीजों और वोटिंग पैटर्न के प्रभाव पर डालते हैं… जब सत्ता में थी बीजेपी, फिर भी उपचुनाव वाली 8 में से 6 सीटें हारी

2013 से 2024 के बीच 8 सीटों के उपचुनाव तब हुए जब बीजेपी सरकार सत्ता में थी। फिर भी बीजेपी 2 सीटें ही सीटें जीत पाई, कांग्रेस ने 5 पर कब्जा जमाया। मौजूदा बीजेपी सरकार में दो सीटों पर उपचुनाव पहले हो चुके हैं।

श्रीकरणपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और तत्कालीन विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर के निधन के कारण चुनाव स्थगित करना पड़ा था। यहां उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा बागीदौरा सीट पर भी बीजेपी को हार मिली। यहां कांग्रेस ने सीट गंवाई और बीएपी को जीत हासिल हुई।

इन 8 सीटों के चुनाव में केवल 2 बार अपवाद देखने को मिला। सूरजगढ़ सीट पर हुए 2014 के उपचुनाव में मुख्य चुनाव से अधिक मतदान हुआ, जो कांग्रेस के खाते में गई। वहीं, कोटा साउथ पर 2014 के उपचुनाव में मतदान गिरने के बावजूद बीजेपी ने जीत दर्ज की।

सत्ता में कांग्रेस (2018 से 2023) – उप चुनाव वाली 8 सीटें

कांग्रेस जब सत्ता में रही, उस दौरान हुए 8 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे भी उसके पक्ष में आए। कांग्रेस ने 8 में से 6 पर जीत हासिल की। बीजेपी को एक और आरएलपी को 1 सीट मिली।

पिछले 9 उप चुनावों में वोटिंग पैटर्न से जो रिजल्ट आये, क्या इस बार वैसे ही रिजल्ट देखने को मिलेंगे?

एक्सपर्ट्स के अनुसार पिछले 9 उप चुनाव में कम वोटिंग का फायदा सीधे तौर पर कांग्रेस को मिला। इस बार 7 सीटों के उप चुनाव में 6 सीटों पर वोटिंग परसेंटेज गिरा है, लेकिन सीधा फायदा कांग्रेस को होगा, यह कहना मुश्किल है। इस बार समीकरण बहुत उलझे हुए हैं।

यह भी पढ़ें : राहुल गाँधी की अडानी को तत्काल अरेस्ट करने की माँग, फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस एक्ट अडानी रिश्वत मामले में आगे क्या होगा

आमतौर पर देखा गया है कि सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी का उपचुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। जबकि कांग्रेस ने सरकार होते हुए भी और विपक्ष में रहते हुए भी बीजेपी के मुकाबले अधिक सीटें जीती हैं। लेकिन इस बार संकेत कुछ अलग मिल रहे हैं। कम वोटिंग परसेंटेज से कांग्रेस को फायदा होने जैसी बातों पर इस उप चुनाव का रिजल्ट विराम लगा सकता है।

बिरसा अंबेडकर फुले फातिमा मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ‘मूकनायक मीडिया’ को आर्थिक सहयोग जरूर कीजिए 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Color

Secondary Color

Layout Mode